क्या होता है NFS  ? जिसका प्रयोग कर शैक्षिक संस्थानों में SC, ST और OBC वर्ग को आने से रोका जा रहा है

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ओबीसी, एससी, और एसटी के लिए आरक्षित सीटों को दो बार NFS कर दिया जाता है तो वे सीटें अनारक्षित (GEN) हो जाती हैं।इस प्रकार बार-बार NFS का उपयोग करके इन वर्गों के उम्मीदवारों को अवसरों से वंचित किया जाता है।

 

story By : Annu Yada 

Edited By : Sushma Tomar 

 

NFS यानी Not Found Suitable ये वो शब्द है जो आज कल चर्चा का मुद्दा बना हुआ है। संसद से लेकर यूनिवर्सिटी में NFS पर बात की जा रही है और कहा जा रहा है कि ये शैक्षणिक संस्थान (Academic institution) का वो हथियार है जिससे दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लोगों को शैक्षणिक संस्थान में आगे बढ़ने से रोका जा रहा है। पहले यूनिवर्सिटी अपने यहाँ प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती के लिए विज्ञापन निकालती है। उसमें सभी वर्गों को मौका देने की बात करती है लेकिन इंटरव्यू में कभी SC उम्मीदवार को अयोग्य ठहरा दिया जाता है तो कभी Sc और OBC उम्मीदवार को। 

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NFS मतलब है कि जिस पद को लिए भर्ती निकली थी उस के लिए किसी भी उम्मीदवार को उपयुक्त नहीं पाया गया। हाल ही में, इस टर्म का उपयोग उच्च शिक्षा संस्थानों और सरकारी नियुक्तियों में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग), एससी (अनुसूचित जाति), और एसटी (अनुसूचित जनजाति) वर्गों के उम्मीदवारों को अयोग्य ठहराने के लिए किया जा रहा है। NFS के मुद्दे को समाजवादी पार्टी के नेता और अंबेडकरनगर से सपा सांसद लालजी वर्मा ने संसद में उठाया वहीं केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल द्वारा NFS को लेकर चिंता जाहिर की गई है।

उम्मीदवार योग्य नहीं

2 जुलाई को सपा सांसद लालजी वर्मा ने लोकसभा में ओबीसी (OBC) और एससी (SC) वर्गों की सीटों के एनएफएस (NFS) किए जाने का मुद्दा उठाया संसद में उठाया। उन्होंने कहा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी और लखनऊ के एसजीपीजीआई कॉलेजों (SGPGI college) में इन वर्गों के लिए आरक्षित सीटों (Reserved seat) को एनएफएस (NFS) कर दिया गया है। उदाहरण के तौर पर, दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्री राम कॉलेज ( lady shri ram college)में प्रोफेसर के चार पदों के लिए विज्ञापन जारी किया गया था, जिसमें एक पद ओबीसी (OBC) के लिए आरक्षित था। हालांकि 377 ओबीसी उम्मीदवारों के इंटरव्यू के बाद भी किसी को भी योग्य नहीं पाया गया और वह पद खाली छोड़ दिया गया। वर्मा ने इस पर सवाल उठाया कि क्या दिल्ली यूनिवर्सिटी इतनी घटिया पढ़ाई कराती है कि 377 उम्मीदवारों में से कोई भी योग्य नहीं हो सका।

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आरक्षण का हनन :

लालजी वर्मा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर भी इस मुद्दे को उठाया। उन्होंने बताया कि दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी किए हुए नेट (NET) क्वालिफाइड उम्मीदवारों को भी योग्य नहीं ठहराया गया। इसी तरह  लखनऊ के एसजीपीजीआई कॉलेज (SGPGI college) में 48 रिजर्व पदों के लिए इंटरव्यू हुआ लेकिन किसी भी ओबीसी या एससी उम्मीदवार का चयन नहीं हुआ। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इन पदों को बाद में अनारक्षित घोषित कर दिया जाता है। जिससे आरक्षण की मूल भावना का हनन हो रहा है।

NFS करके SC,ST और OBC को  छांटा जा रहा : अनुप्रिया पटेल

वहीं दूसरी तरफ केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा। पत्र में उन्होंने कहा कि साक्षात्कार वाली नियुक्तियों में ओबीसी , एससी, और एसटी के अभ्यर्थियों को NFS कहकर छांटा जा रहा है। पटेल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से यह अनुरोध किया है कि चाहे जितनी बार भी जरूरी हो लेकिन नियुक्ति प्रक्रिया में यह सुनिश्चित किया जाए कि आरक्षित सीटें उन्हीं वर्गों से भरी जाएं  जिनके लिए यह रिजर्व की गई हैं।

 

दलित, आदिवासी, पिछड़े से छिना जा रहा उनका हक :  

कहा जा रहा है कि NFS का उपयोग उच्च शिक्षा संस्थानों और सरकारी नियुक्तियों में आरक्षण की मूल भावना को कमजोर करने के लिए किया जा रहा है। यह पिछड़े और दलित वर्गों के उम्मीदवारों को बड़े संस्थानों में प्रवेश से रोकने का एक तरीका है। जब ओबीसी, एससी, और एसटी के लिए आरक्षित सीटों को दो बार NFS कर दिया जाता है तो वे सीटें अनारक्षित (GEN) हो जाती हैं। इस प्रकार बार-बार NFS का उपयोग करके इन वर्गों के उम्मीदवारों को अवसरों से वंचित किया जाता है।  

हमें समान अवसर दिया जाए :

समाज में व्याप्त असमानता को हटाने और SC, ST, OBC वर्गो को मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण जैसे प्रावधान किए गए है। जिसके तहत शिक्षा संस्थानों, सरकारी नौकरियों में इन वर्गों को सही प्रतिनिधित्व देने के लिए सीटें रिजर्व की गयी है। लेकिन NFS का मुद्दा न केवल शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में आरक्षण की भावना को कमजोर कर रहा है बल्कि यह सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों का भी उल्लंघन कर रहा है।

जरूरी है कि उच्च शिक्षा संस्थानों और सरकारी नियुक्तियों में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित की जाए ताकि सभी वर्गों के उम्मीदवारों को समान अवसर मिल सकें। संसद में इस मुद्दे पर हो रही चर्चा और विभिन्न नेताओं द्वारा उठाए गए सवाल इस बात का प्रमाण हैं कि यह मुद्दा कितना जरूरी है। और इसको लेकर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

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दो बार NFS करने के बाद सीट रिजर्व नहीं रहती :

एक ऐसा हथियार है जिसके माध्यम से हायर एजुकेशन के संस्थानों में आरक्षण की मूल भावना का गला घोटा जाता है। ये पिछड़ों और दलितों को बड़े संस्थानों में आने से रोकने का ब्रह्मास्त्र है।  जिसके माध्यम से OBC और SC की सीटों को NFS कर दिया जाता है। यह जानकर आपको हैरानी होगी कि यदि OBC, SC के लिए आरक्षित सीटों को अगर दो बार NFS कर दिया जाय तो वह सीट GEN. में बदल जाती है। यानी अब उस सीट पर कोई Sc या ST या OBC वर्ग का उम्मीदवार नौकरी नहीं ले सकता। अब वो सीट सवर्ण यानी जनरल खाते में चली गयी है इसलिए बड़े-बड़े संस्थानों में बार-बार OBC, SC सीटों को NFS कर दिया जाता है ताकि पिछड़ों-दलितों को यहां आने से रोका जा सके। इसे एक साजिश के तौर पर देखा जाना चाहिए क्योंकि हाशिए पर मौजूद वर्गों को आगे बढ़ने के लिए जो सीढ़ी मिली है उसे भी लगातार छीना जा रहा है। 

  

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