गौतम बुद्ध ने जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी वर्चस्व को खुली चुनौती दी। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति जन्म से श्रेष्ठ या नीच नहीं होता, बल्कि उसके कर्म और आचरण ही उसकी पहचान तय करते हैं। बुद्ध के ये विचार दलित, शूद्र और बहुजन समाज के लिए सामाजिक क्रांति का संदेश थे।
गौतम बुद्ध, जिनका असली नाम सिद्धार्थ गौतम था, एक महान दार्शनिक, समाज सुधारक और बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे। उनका जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में एक क्षत्रिय राजकुमार के रूप में हुआ था।
लेकिन राजसी वैभव छोड़कर, उन्होंने जीवन के सत्य की खोज की। वर्षों की तपस्या और ध्यान के बाद बोधगया में उन्होंने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया और “बुद्ध” (जाग्रत) बन गए। लेकिन राजसी वैभव छोड़कर, उन्होंने जीवन के सत्य की खोज की। वर्षों की तपस्या और ध्यान के बाद बोधगया में उन्होंने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया और “बुद्ध” (जाग्रत) बन गए।
उन्होंने समाज में फैली जाति-व्यवस्था, अंधविश्वास और भेदभाव का विरोध किया और लोगों को अहिंसा, करुणा, समता और प्रज्ञा का मार्ग दिखाया। उनका धम्म (धर्म) अन्याय के खिलाफ संघर्ष और आत्मज्ञान की राह दिखाता है।
प्रसिद्ध उपदेश:
✅ बुद्धं शरणं गच्छामि (मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ)
✅ धम्मं शरणं गच्छामि (मैं धर्म की शरण में जाता हूँ)
✅ संघं शरणं गच्छामि (मैं संघ की शरण में जाता हूँ)
उनकी शिक्षाएँ आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरित कर रही हैं और जातिविहीन, समतामूलक समाज की नींव रखती हैं।
बुद्ध के जाति-विरोधी विचारों का महत्व
गौतम बुद्ध ने जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी वर्चस्व को खुली चुनौती दी। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति जन्म से श्रेष्ठ या नीच नहीं होता, बल्कि उसके कर्म और आचरण ही उसकी पहचान तय करते हैं। बुद्ध के ये विचार दलित, शूद्र और बहुजन समाज के लिए सामाजिक क्रांति का संदेश थे।
लेकिन समय के साथ ब्राह्मणवादी व्यवस्था ने बुद्ध के विचारों को विकृत कर दिया और बौद्ध धर्म को कमजोर करने की साजिशें रचीं।
आज हम बात करेंगे इतिहास पर और इतिहास के साथ होने वाले खिलवाड़ के बारे में. भारत में हाशिये के समाज के इतिहास और उनके महापुरुषों के विचारों के साथ छेड़छाड़ और तोड़मरोड़ कर मिटाने का प्रयास किया गया. जिसकी शुरुआत भगवान गौतम बुद्ध और उनके के विचारों के साथ छेड़छाड़ से हुयी. और इनके विचारों और उनके इतिहास को डिसटॉर्ट करने की कोशिश लगातार जारी है.
🔹 बुद्ध और उनके विचारों का विकृतिकरण कैसे हुआ?
1️⃣ बुद्ध को विष्णु का अवतार बताना
– बुद्ध को विष्णु का अवतार घोषित करना ,यह हिंदूकरण की सबसे बड़ी साजिश थी |
– बुद्ध को “दशावतार” में शामिल करके उनकी मूल पहचान को खत्म करने की कोशिश की गई।
– इससे यह प्रचारित किया गया कि बुद्ध कोई अलग क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि वेदों और सनातन धर्म का ही हिस्सा थे।
– “मनुस्मृति” (जिसे बुद्ध ने अस्वीकार किया था) में ही बुद्ध को ‘वेद न मानने वाला मूढ़’ बताया गया।
2️⃣ बौद्ध मठों और भिक्षुओं पर हमले
– गुप्त काल (4-6वीं शताब्दी) में ब्राह्मणवाद को पुनर्स्थापित किया गया और बौद्ध धर्म को योजनाबद्ध तरीके से समाप्त किया गया।
– बौद्ध मठों पर हमले किए गए, भिक्षुओं की हत्या कर दी गई और बौद्ध शिक्षा केंद्रों को तहस-नहस किया गया।
– नालंदा और तक्षशिला जैसे बौद्ध शिक्षा केंद्रों को सनातनी ताकतों ने जलवा दिया।
3️⃣ मूर्तिपूजा और कर्मकांड का समावेश
– बुद्ध ने मूर्ति पूजा और अंधविश्वास का विरोध किया था, लेकिन बौद्ध धर्म में बाद में इन्हें घुसा दिया गया।
– ब्राह्मणों ने बौद्ध मंदिरों में यज्ञ, हवन और कर्मकांड शुरू करवा दिए, जिससे बौद्ध धर्म अपनी मूल क्रांतिकारी विचारधारा से भटक गया।
– बुद्ध की शिक्षाओं को सरल जीवनशैली से हटाकर कर्मकांडों से जोड़ दिया गया।
4️⃣ जाति-विरोधी विचारों को दबाना
– बुद्ध ने कहा था:
“न जाति ब्राह्मणो होति, न जाति होति अब्राह्मणो।”
(अर्थात् कोई जन्म से ब्राह्मण या शूद्र नहीं होता।)
– लेकिन बुद्ध के इन विचारों को हिंदू ग्रंथों में कभी प्रचारित नहीं किया गया।
– इसके बजाय, यह झूठ फैलाया गया कि बुद्ध ने भी जाति व्यवस्था को स्वीकार किया था, जबकि उनका पूरा जीवन इसके खिलाफ संघर्ष था।
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