पुण्यतिथि विशेष: रोहित वेमुला के रूप में हमने एक क्रांतिकारी युवा लेखक को खो दिया

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रोहित चक्रवर्ती वेमुला (30 जनवरी 1989 – 17 जनवरी 2016) हैदराबाद विश्वविद्यालय, तेलंगाना में एक पीएचडी छात्र था जिसने 17 जनवरी 2016 को आत्महत्या कर ली थी।

और उसकी लिखी आखिरी चिट्ठी समाज में फैले जातिवाद के मुंह पर एक करारा तमाचा है. रोहित का लिखा सुसाइड नोट किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को झकझोर देने के लिए काफी है. भारतीय समाज में एक दलित के साथ होने वाले पक्षपातपूर्ण रवैया किस हद तक किसी को मानसिक रूप से प्रताड़ित कर सकता है, वह वेमुला की खुदकुशी से सामने आती है. चिट्ठी में रोहित ने लिखा – ‘एक आदमी की क़ीमत उसकी तात्कालिक पहचान और नज़दीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है. एक वोट तक. आदमी महज़ एक आंकड़ा बन कर रह गया है. अब एक आदमी को उसके दिमाग़ से नहीं आंका जाता.’

 

रोहित वेमुला के लिए इंसाफ की मांग लेकर धरने पर बैठे लोग (साभार: दी वायर)

 

‘साइंस फिक्शन’ लिखने की चाहत रखने वाला छात्र जब अपने सुसाइड नोट में  हिला देने वाली पंक्तियां लिख जाता है तो लगता है कि शायद हमने एक अच्छे इंसान के साथ-साथ भविष्य के एक युवा क्रांतिकारी लेखक को भी खो दिया.

क्या विडंबना है कि सामजिक अध्ययन में पीएचडी कर रहा रोहित वेमुला जाते-जाते सिद्ध कर गया कि एक समाज के रूप में हम बुरी तरह फेल हो गए हैं.

17 जनवरी, 2016 को सुसाइड करने वाले वेमुला ने ‘आसा’ (अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन) का बैनर फांसी के फंदे के रूप में इस्तेमाल किया. उसी ‘आसा’ का बैनर जिसका वो सदस्य था और जिसके चक्कर में ही उसे कॉलेज हॉस्टल से निकाला गया था.

जानिए इस विवाद की पूरी टाइमलाइन को-

सबसे पहले रोहित और उसके ‘आसा’ के साथियों का ‘एबीवीपी’ (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) के साथ विवाद हुआ.‘एबीवीपी’ के एक सदस्य सुशील ने अपने को हॉस्पिटल में भर्ती करवा लिया, ‘आसा’ के सदस्यों पर ये आरोप लगाते हुए कि उन्होंने ही सुशील की पिटाई की है. हालांकि बाद में पता चला कि उसके शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं हैं, जिनसे सिद्ध हो सके कि उसकी पिटाई हुई है.

रोहित वेमुला (साभार: दी हिंदु)

 

इस सबके चलते ‘आसा’ के पांच लोगों को हॉस्टल से बाहर निकाल दिया, इनमें वेमुला भी शामिल था. लेकिन दूसरी तरफ ‘एबीवीपी’ के सदस्यों को वार्निंग देकर छोड़ दिया गया. न केवल इन पांच लोगों को हॉस्टल से बाहर निकाला बल्कि लाइब्रेरी, मेस जैसी कॉमन जगहों पर भी इन पांचों के आने-जाने पर प्रतिबंध लग गया.कुछ दिनों तक इन पांच सदस्यों की हॉस्टल कैंपस के भीतर ही भूख हड़ताल चली. और इसी बीच रोहित ने आत्महत्या कर ली.इसके बाद देश भर में रोहित वेमुला का सुसाइड नोट वायरल हो गया और विरोध प्रदर्शन होने लगे. पक्ष और विपक्ष बने.

रोहित वेमुला का अंतिम पत्र-

गुड मॉर्निंग,

आप जब ये पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं नहीं होऊंगा. मुझ पर नाराज मत होना. मैं जानता हूं कि आप में से कई लोगों को मेरी परवाह थी, आप लोग मुझसे प्यार करते थे और आपने मेरा बहुत ख्याल भी रखा. मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है. मुझे हमेशा से खुद से ही समस्या रही है. मैं अपनी आत्मा और अपनी देह के बीच की खाई को बढ़ता हुआ महसूस करता रहा हूं. मैं एक दानव बन गया हूं. और मैं अतिक्रूर हो चला.

मैं तो हमेशा लेखक बनना चाहता था. विज्ञान का लेखक, कार्ल सेगन की तरह और अंततः मैं सिर्फ यह एक पत्र लिख पा रहा हूं… मैंने विज्ञान, तारों और प्रकृति से प्रेम किया, फिर मैंने लोगों को चाहा, यह जाने बगैर कि लोग जाने कब से प्रकृति से दूर हो चुके. हमारी अनुभूतियां नकली हो गई हैं हमारे प्रेम में बनावट है. हमारे विश्वासों में दुराग्रह है. इस घड़ी मैं आहत नहीं हूं, दुखी भी नहीं, बस अपने आपसे बेखबर हूं.

एक इंसान की कीमत, उसकी पहचान एक वोट… एक संख्या… एक वस्तु तक सिमट कर रह गई है. कोई भी क्षेत्र हो, अध्ययन में, राजनीति में, मरने में, जीने में, कभी भी एक व्यक्‍ति को उसकी बुद्धिमत्ता से नहीं आंका गया. इस तरह का खत मैं पहली दफा लिख रहा हूं. आखिरी खत लिखने का यह मेरा पहला अनुभव है. अगर यह कदम सार्थक न हो पाए तो मुझे माफ कीजिएगा.
हो सकता है इस दुनिया, प्यार, दर्द, जिंदगी और मौत को समझ पाने में, मैं गलत था. कोई जल्दी नहीं थी, लेकिन मैं हमेशा जल्दबाजी में रहता था. एक जिंदगी शुरू करने की हड़बड़ी में था. इसी क्षण में, कुछ लोगों के लिए जिंदगी अभिशाप है. मेरा जन्म मेरे लिए एक घातक हादसा है. अपने बचपन के अकेलेपन से मैं कभी उबर नहीं सका. अतीत का एक क्षुद्र बच्चा.

रोहित वेमुला का आखिरी ख़त (साभार: सोशल मीडिया)

इस वक्त मैं आहत नहीं हूं… दुखी नहीं हूं, मैं बस खाली हो गया हूं. अपने लिए भी बेपरवाह. यह दुखद है और इसी वजह से मैं ऐसा कर रहा हूं. लोग मुझे कायर कह सकते हैं और जब मैं चला जाऊंगा तो स्वार्थी, या मूर्ख भी समझ सकते हैं. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुझे क्या कहा जा रहा है. मैं मौत के बाद की कहानियों, भूतों या आत्माओं पर विश्वास नहीं करता. अगर किसी बात पर मैं विश्वास करता हूं तो वह यह है कि मैं अब सितारों तक का सफर कर सकता हूं. और दूसरी दुनिया के बारे में जान सकता हूं.

जो भी इस खत को पढ़ रहे हैं, अगर आप मेरे लिए कुछ कर सकते हैं, तो मुझे सात महीने की फेलोशिप‌ मिलनी बाकी है जो एक लाख और 75 हजार रुपये है, कृपया ये कोशिश करें कि वह मेरे परिवार को मिल जाए. मुझे 40 हजार रुपये के करीब रामजी को देना है. उसने कभी इन पैसों को मुझसे नहीं मांगा, मगर कृपा करके ये पैसे उसे दे दिए जाएं.

मेरी अंतिम यात्रा को शांतिपूर्ण और सहज रहने दें. ऐसा व्यवहार करें कि लगे जैसे मैं आया और चला गया. मेरे लिए आंसू न बहाएं. यह समझ लें कि जिंदा रहने की बजाय मैं मरने से खुश हूं.

‘परछाइयों से सितारों तक’

उमा अन्ना, मुझे माफ कीजिएगा कि ऐसा करने के लिए मैं आपके कमरे का इस्तेमाल कर रहा हूं.

एएसए (आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोशिएशन) परिवार के लिए, माफ करना मैं आप सबको निराश कर रहा हूं. आपने मुझे बेहद प्यार किया. मैं उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं दे रहा हूं.

आखिर बार के लिए
जय भीम

मैं औपचारिकताएं पूरी करना भूल गया. मेरी खुदकुशी के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है. किसी ने ऐसा करने के लिए मुझे उकसाया नहीं, न तो अपने शब्दों से और न ही अपने काम से.

यह मेरा फैसला है और मैं अकेला व्यक्ति हूं, जो इस सबके लिए जिम्मेदार है. कृपया मेरे जाने के बाद, इसके लिए मेरे मित्रों और शत्रुओं को परेशान न किया जाए.

इन तमाम परिस्थितियों में एक युवा की मौत का राष्ट्रीय असर होता है और दलितों के संगठित विरोध की अभिव्यक्ति होती है. इसी का ज्यादा सघन रूप 2018 में 2 अप्रैल को देखने को मिला, जब दलितों और आदिवासियों ने एससी-एसटी एक्ट को कमजोर किए जाने के खिलाफ भारत को सफलतापूर्वक बंद कर दिया.

*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *

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