उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की दूरी बनाए रखने की ख़बरें जोर पकड़ रही हैं। कांग्रेस का उपचुनाव से दूरी बनाना और सपा का समर्थन करना, इस बात का प्रमाण है कि मायावती का राजनीतिक करिश्मा और चार बार मुख्यमंत्री रहने का उनका अनुभव आज भी विरोधियों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है।
UP News: उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती का नाम सुनते ही विपक्षी दलों के खेमों में हलचल मच जाती है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और राज्य की राजनीति में उनका योगदान ऐसा है कि उनकी उपस्थिति मात्र से ही विरोधी दल चिंतित हो जाते हैं। अब, जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव हो रहे हैं, कांग्रेस ने अचानक इस चुनाव से दूरी बनाने का फैसला किया है। विश्लेषक मानते हैं कि यह निर्णय कहीं न कहीं मायावती के डर से प्रेरित है।
क्या कांग्रेस मायावाती से डर गई?
मायावती के चार बार मुख्यमंत्री रहने का अनुभव, उनकी मजबूत संगठनात्मक क्षमता और दलित वोट बैंक पर उनकी पकड़ ने कांग्रेस और सपा दोनों को डरा दिया है। यूपी की राजनीति में बसपा का वजूद और मायावती का करिश्माई नेतृत्व दोनों ही विपक्षी दलों के लिए हमेशा चुनौती रहा है। कांग्रेस, जिसने कई बार मायावती का सामना किया है, अब शायद समझ चुकी है कि उपचुनावों में सीधे बसपा से टकराने में उसे भारी नुकसान हो सकता है।
सपा का कांग्रेस के समर्थन से चुनाव लड़ना
कांग्रेस की यूपी विधानसभा उपचुनाव से दूरी और सपा को हर सीट पर समर्थन देने की खबरें भी मायावती के राजनीतिक प्रभाव को उजागर करती हैं। सपा, जो यूपी में क्षेत्रीय स्तर पर एक मजबूत दल मानी जाती है, को भी यह एहसास हो गया है कि मायावती के सामने अकेले खड़े होने में उसकी चुनावी संभावनाएं कम हो सकती हैं। सपा और कांग्रेस के गठजोड़ का सीधा मतलब है कि दोनों पार्टियां मिलकर भी मायावती के प्रभाव का सामना करने के लिए एकजुट हो रही हैं।
कांग्रेस और सपा दोनों को किस बात का डर सता रहा है
मायावती का बसपा संगठन न केवल दलितों के बीच अपनी पकड़ बनाए हुए है, बल्कि ब्राह्मण और मुस्लिम वोट बैंक में भी उनका महत्वपूर्ण समर्थन है। कांग्रेस और सपा दोनों को इस बात का डर सता रहा है कि अगर उन्होंने बसपा का मुकाबला सीधे तौर पर किया तो उनकी राजनीतिक जमीन खिसक सकती है। मायावती के कुशल राजनीतिक नेतृत्व और चार बार के मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी प्रभावशाली छवि ने विपक्षी दलों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि बसपा के सामने उन्हें अपने पत्ते बहुत सावधानी से खेलने होंगे।
कांग्रेस और सपा की रणनीति
कांग्रेस का यह फैसला कि वह यूपी उपचुनाव से दूर रहेगी और सपा को समर्थन देगी, एक प्रकार से मायावती के खिलाफ बचाव की रणनीति के रूप में देखा जा सकता है। यह गठजोड़ कहीं न कहीं इस बात को दर्शाता है कि सपा और कांग्रेस, दोनों को इस बात का एहसास हो गया है कि मायावती के खिलाफ सीधे मुकाबले में उन्हें बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
मायावती की राजनीतिक रणनीति
मायावती की राजनीतिक रणनीति और जनता के बीच उनकी छवि ने हमेशा उन्हें विपक्षी दलों के लिए एक मुश्किल प्रतिद्वंद्वी बनाया है। उनकी पार्टी बसपा का जातिगत गणित और सामाजिक न्याय का एजेंडा उन्हें यूपी के चुनावी मैदान में बेहद प्रभावशाली बनाता है। कांग्रेस और सपा, जो एक समय पर मायावती के सामने अपने दम पर खड़े होते थे, अब एक दूसरे का सहारा लेकर मायावती के प्रभाव को कम करने की कोशिश कर रहे हैं।
भविष्य की राजनीति: मायावती का प्रभाव कायम
भविष्य की राजनीति को देखते हुए यह स्पष्ट है कि मायावती का प्रभाव यूपी में बरकरार रहेगा। कांग्रेस और सपा के गठजोड़ से भले ही यह लगे कि वे मायावती को टक्कर देने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन असल में यह गठजोड़ मायावती के डर से ही बनाया गया है। चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती ने यूपी की राजनीति में जिस प्रकार से अपनी पहचान बनाई है, उसे हटाना कांग्रेस और सपा दोनों के लिए आसान नहीं होगा।
कांग्रेस का उपचुनाव से दूरी बनाना और सपा का समर्थन करना
कुल मिलाकर, मायावती का प्रभाव और उनकी पार्टी की पकड़ ने कांग्रेस और सपा को इस हद तक मजबूर कर दिया है कि वे अपने कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं। कांग्रेस का उपचुनाव से दूरी बनाना और सपा का समर्थन करना, इस बात का प्रमाण है कि मायावती का राजनीतिक करिश्मा और चार बार मुख्यमंत्री रहने का उनका अनुभव आज भी विरोधियों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।