यूपी उपचुनाव: गाज़ियाबाद की सामान्य सीट पर अखिलेश यादव ने उतारा दलित उमीदवार, यहां भी होगा अयोध्या वाला खेल? क्या कहता है समीकरण?

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यूपी गाजियाबाद उपचुनाव में अखिलेश यादव ने दलित उम्मीदवार सिंहराज जाटव को उतारते हुए दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर दांव लगाया है। क्या अयोध्या की तरह यहां भी काम करेगा समीकरण?

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद सदर सीट पर हो रहे उपचुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) ने एक नया और साहसी प्रयोग किया है। अखिलेश यादव ने इस बार दलित समाज से आने वाले सिंहराज जाटव को उम्मीदवार बनाकर राजनीतिक समीकरणों में हलचल मचा दी है। गाजियाबाद की इस सामान्य सीट पर सपा द्वारा दलित उम्मीदवार उतारना कई मायनों में खास है। यह कदम न केवल पार्टी की पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) रणनीति को मजबूत करने का प्रयास है, बल्कि मुस्लिम और दलित मतदाताओं का समर्थन हासिल करने की भी एक कोशिश है। अखिलेश यादव पहले भी अयोध्या में इस रणनीति का उपयोग कर चुके हैं, जिसमें उन्हें सफलता मिली थी। अब देखना यह होगा कि क्या गाजियाबाद में भी वही रणनीति काम आएगी?

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जातीय समीकरण का गणित

गाजियाबाद की राजनीतिक जमीन जातीय समीकरणों पर आधारित है। यहां विभिन्न जातियों की अच्छी खासी संख्या है, जिनमें लगभग 75,000 दलित, 70,000 ब्राह्मण, 70,000 वैश्य, 75,000 मुस्लिम और 50,000 पंजाबी शामिल हैं। इन आंकड़ों से साफ है कि दलित और मुस्लिम मतदाता यहां निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। यही कारण है कि सपा ने यहां सिंहराज जाटव को टिकट दिया है, ताकि दलित और मुस्लिम गठजोड़ का फायदा उठाया जा सके। बीजेपी ने ब्राह्मण उम्मीदवार संजीव शर्मा को और बसपा ने वैश्य समुदाय के परमानंद गर्ग को मैदान में उतारा है। ऐसे में तीनों प्रमुख दलों के बीच जातीय समीकरणों का दिलचस्प खेल देखने को मिल रहा है।

सपा की रणनीति और पीडीए फॉर्मूला

अखिलेश यादव ने इस उपचुनाव में दलित और मुस्लिम गठजोड़ पर नजर गड़ाई है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फॉर्मूले को लगातार आगे बढ़ा रहे हैं, जिसका सकारात्मक असर उन्होंने अयोध्या के चुनावों में देखा था। अयोध्या में दलित विधायक अवधेश प्रसाद को टिकट देकर बीजेपी उम्मीदवार को हराने में सपा ने सफलता पाई थी। अब अखिलेश ने उसी रणनीति को गाजियाबाद में आजमाने का फैसला किया है, जहां दलित मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। गाजियाबाद के दलित मतदाताओं में एकजुटता दिखे तो सपा को इस उपचुनाव में फायदा मिल सकता है।

पार्टी बदलने वाले उम्मीदवारों का मुकाबला

गाजियाबाद की इस चुनावी लड़ाई में एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि सपा के उम्मीदवार सिंहराज जाटव पहले बसपा के सदस्य थे, जबकि बसपा के उम्मीदवार परमानंद गर्ग पहले सपा में थे। इसका मतलब है कि दोनों उम्मीदवार अपने-अपने विरोधी दल के कोर वोटरों से अच्छी तरह वाकिफ हैं और उनके समर्थन को तोड़ने की क्षमता रखते हैं। यह मुकाबला कठिन और दिलचस्प बनता जा रहा है, क्योंकि दोनों दलों के कोर वोटरों में सेंध लगाने का प्रयास जारी है।

गाजियाबाद में वोटिंग पैटर्न और पिछले नतीजे

गाजियाबाद सदर सीट पर चुनावी इतिहास भी दिलचस्प है। यहां के मतदाताओं ने हमेशा जाति से ऊपर उठकर मतदान किया है। 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के अतुल गर्ग ने इस सीट पर एक लाख 50 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी, जबकि सपा के विशाल वर्मा को 44 हजार और बसपा के केके शुक्ल को 32 हजार वोट मिले थे। यह दर्शाता है कि गाजियाबाद के मतदाता जाति के साथ-साथ पार्टी की नीति और उम्मीदवार की योग्यता को भी महत्व देते हैं। अतुल गर्ग के सांसद चुने जाने के बाद यह उपचुनाव हो रहा है और यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार किस उम्मीदवार को मतदाता प्राथमिकता देंगे।

उपचुनाव का महत्व और सपा की उम्मीदें

गाजियाबाद उपचुनाव समाजवादी पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती है। इस उपचुनाव में सपा का मकसद न केवल दलित और मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में करना है, बल्कि बीजेपी की लगातार बढ़ती ताकत को चुनौती देना भी है। अखिलेश यादव ने गाजियाबाद में एक दलित उम्मीदवार को उतारकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि सपा दलित और पिछड़े समाज की आवाज बनना चाहती है। यह कदम इसलिए भी खास है क्योंकि गाजियाबाद देश के उन गिने-चुने शहरों में है जहां आंबेडकर जयंती विशेष रूप से मनाई जाती है और दलित मतदाता यहां मुखर रहते हैं।

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नतीजों का इंतजार और भविष्य की दिशा

गाजियाबाद का यह उपचुनाव अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा साबित हो सकता है। अगर सपा दलित और मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में सफल रही तो यह न केवल गाजियाबाद बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी सपा की स्थिति को मजबूत कर सकता है। हालांकि, नतीजों का फैसला 23 नवंबर को ही होगा, लेकिन इस बार का मुकाबला जातीय समीकरणों और सपा की नई रणनीति पर निर्भर है।

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