राजनीति में दो और दो चार नहीं होते…

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2019 का दौर था,कांग्रेस बहुत ज़्यादा मज़बूत नहीं थी,और प्रियंका को तब पश्चिमी यूपी का प्रभारी बना कर भेजा गया तब उन्होंने दो नेताओं को पश्चिमी यूपी में मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर चुनाव लड़वाया। मुरादाबाद से इमरान प्रतापगढ़ी और सहारनपुर से इमरान मसूद,दोनों ही मुस्लिम चेहरे,और दोनों ही जनता के चहेते भी,लेकिन चुनाव दोनों हार गए,इमरान प्रतापगढ़ी की तो ज़मानत ज़ब्त हो गयी।

बहरहाल हार जीत है चलती रहती है 2021 में इमरान प्रतापगढ़ी का प्रमोशन हुआ और उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष अल्पसंख्यक कांग्रेस बनाया गया मसूद साहब नाराज़ से हुए तो दिल्ली का सहप्रभारी बना दिया। मगर यहां भी चर्चाओं का दौर गर्म था,इमरान मसूद कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव थे और उन्हें टिकट वितरण को लेकर फ्री हैंड दिया गया था उनका पार्टी में कद बड़ा था लेकिन तब भी उन्होंने सपा के पक्ष में बदलते माहौल को देखते हुए बयान देने शरू कर दिये।

2022 की चुनाव की सुगबुगाहट हुई, मीडिया में अखिलेश यादव विपक्षी नेता की तरह उभरे,तो इमरान मसूद ने अपने 15 साल के राजनीतिक सूखे को ख़त्म करने का ख्याल किया या यूं कह ले कि वो बहक गए और जनता के दबाव में सपा में आ गए लेकिन दूसरे इमरान कांग्रेस पार्टी के साथ ही रहें,कांग्रेस हारी या जीती वो पार्टी के साथ खड़े रहें और प्रियंका गांधी और राहुल गांधी को अपना लीडर बताते रहें।

कांग्रेस के राजनीतिक इतिहास के जानकार रशीद किदवई जब कांग्रेस में नेताओं किस्म पर बात करते हैं तो वो दो तरह के नेताओं के बारे में बताते हैं, पहले जो ज़मीनी तौर पर मेहनत करते हैं,संगठन के लिए काम करते हैं और पार्टी का मान मनोव्वल बढाते हैं और दूसरी तरह के नेता होते हैं दरबारी नेता जिन्हें 10 जनपथ के अनुसार काम करने होते हैं और वो नेता स्टार की तरह से होते हैं। इमरान मसूद और इमरान प्रतापगढ़ी को आप इस तरह से जान सकते हैं।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि 2022 के चुनावों से पहले ही ये तय था कि इमरान प्रतापगढ़ी को बड़ा पद (राष्ट्रीय अध्यक्ष अल्पसंख्यक कांग्रेस) दे दिया गया है राज्यसभा पार्टी के वफादार और दिग्गज मुस्लिम नेता इमरान मसूद को दिया जाएगा, प्रियंका ऐसा चाहती हैं। लेकिन राजनीतिक मौसम का मिजाज़ भांपने में इमरान मसूद नाकामयाब रहें वो ये भूल गए की बदली हुई कांग्रेस राहुल और प्रियंका की कांग्रेस G-23 नेताओं के खिलाफ काम रही है और उसमें ग़ुलाम नबी आजाद का पत्ता साफ होना है और एक मुस्लिम नेता की जगह बननी ही है।

ये वो जगह थी जिसे कांग्रेस किसी भी तरह से भरना चाह रही थी और उसे ऐसे नेता की तलाश थी जो पार्टी में शीर्ष नेतृत्व पर रहें और “मुस्लिम” चेहरे की तरह काम करें इमरान मसूद ये कर सकते थे लेकिन कर नहीं पाए,और इस मौके को इमरान प्रतापगढ़ी ने अच्छे से समझ लिया था।

अब सवाल ये था कि ये जगह लेगा कौन? बिजनोर की एक सीनियर रपत्रकार बताती हैं कि राजनीति में कदम रखने के लिए इमरान प्रतापगढ़ी का ज़हन भी सपा की ही तरफ था और पार्टी ने उन्हें संभल लोकसभा से लड़ने का सुझाव भी दिया गया था,लेकिन इस शायर ने खुद को “राष्ट्रीय” राजनीति में चमकाने की ठान ली थी इसलिए बुरे दौर में भी वो कांग्रेस ही के साथ रहें नतीजा आपके सामने हैं।

इमरान प्रतापगढ़ी 3 साल के राजनीतिक करियर में “दरबारी राजनीति” अच्छे से समझ चुके थे,उन्हें प्रियंका गांधी के साथ अक्सर देखा जाता था,वो प्रचार प्रसार और स्टार प्रचारक के तौर पर पार्टी के लिए लगातार काम कर रहे थे। ओवैसी के खिलाफ कांग्रेस की मज़बूत आवाज़ बन रहे थे बिहार हो या यूपी उन्होंने अपना मोर्चा संभाले रखा और आख़िर में उन्हें इसका फायदा भी हुआ वहीं इमरान मसूद बिल्कुल धारा के विपरीत चलें।

इमरान मसूद गलत समय पर कांग्रेस छोड़ गए,जब उनके 30 साल को राजनीति का उन्हें फल मिलने वाला था उनकी दरबारी राजनीति में राष्ट्रीय नेता के तौर पर एंट्री खुलने ही वाली थी और “नई” कांग्रेस में वो मज़बूत जगह बनाने वाले थे तभी वो पार्टी को अलविदा कह गए और ऐसी जगह चले गए जहां आज़म खान जैसा दिग्गज मौजूद है वहां आखिर किसी और मुस्लिम नेता का क्या ही महत्व है ?

बहरहाल इन दो इमरान की कहानी एक साथ चली थी साथ रही भी थी, लेकिन राहें बदल गयी,समय का पहिया ऐसा चला कि इमरान प्रतापगढ़ी जिन्हें राजनीति में आये हुए सिर्फ 3 साल हुए हैं वो राष्ट्रीय पार्टी के अल्पसंख्यक अध्यक्ष हैं और राज्यसभा सांसद भी हैं और टीम प्रियंका के महत्वपूर्ण चेहरे भी हैं। लेकिन इमरान मसूद?

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अपने 30 साल के राजनीतिक करियर के सबसे निचले पायदान पर पहुंच गए हैं इमरान मसूद जहां सपा में उन्हें 4 महीनों में विधानसभा टिकट नहीं दिया गया और विधान परिषद में उनका नाम चला लेकिन दरबारी तिकड़म में वो फंस गए। हाल ये हो चुका है कि वो पार्टी से वफादारी का वायदा कर रहे हैं… क्योंकि उनके बाकी सभी रास्ते अब बंद हैं।

इमरान प्रतापगढ़ी शायद इतिहास के उन नेताओं में शुमार हैं जिन्होंने बहुत कम वक्त में राष्ट्रीय नेता की तरह खुद को स्थापित कर लिया है और अब उन्हें पीछे मुड़ कर नहीं देखना है,वहीं इमरान मसूद 30 साल के राजनीतिक करियर के बाद शायद सबसे बुरे दौर से गुज़र रहे हैं जहां उन्हें अपनी राजनीति को शायद विराम देना पड़ सकता है और अगर वो बहुत कुछ करेंगें भी तो अपने दामाद शज़ान मसूद के लिए,बस यही फ़र्क़ है फिलहाल की राजनीति में।

राजनीति में बदलता हुआ वक़्त.. बहुत जल्दी आता है अर्श से फर्श तक पहुंचा देता है किसी को भी,वो दिग्गज नेताओं को पीछे कर देता है और अचानक से नये नेता को हीरो बना देता है। राजनीति इसी का नाम है।

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