घाटशिला के आदिवासी युवा श्याम मुर्मू के नाम जुड़ी ये बड़ी उपलब्धि, संताली भाषा की लिपि ओलचिकी का डिजिटल फोंट किया तैयार

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डिजिटल फोंट तैयार करने में श्याम को लगभग तीन साल का वक्त लगा। कम्प्यूटर की कोई औपचारिक डिग्री न होने के बावजूद अपनी लगन के कारण श्याम ने यह मुकाम हासिल किया है….

Shyam Murmu : झारखण्ड राज्य के पूर्वी सिंहभूम ज़िले के घाटशिला का रहने वाले आदिवासी युवक श्याम मुर्मू ने मेहनत और लगन के बल पर अपना नाम ​इतिहास में दर्ज करवा दिया है। जी हां, घाटशिला के आदिवासी युवक श्याम मुर्मू ने कम्प्यूटर का कोई औपचारिक कोर्स न करने के बावजूद संताली भाषा की लिपि ओलचिकी का डिजिटल फोंट तैयार कर एक बड़ा मुकाम हासिल किया है।

गौरतलब है कि वर्ष 2013 में श्याम मुर्मू ने एक वेबसाइट बनायी थी, जो संताली सीखने के इच्छुक लोगों के लिए काफी उपयोगी साबित हुई। वेबसाइट के माध्यम से श्याम मुर्मू ने ई-स्कूलिंग के माध्यम से संताली भाषा सिखायी। संताली भाषा के लिए इस महान योगदान के बाद श्याम ने अब संताली भाषा की लिपि ओलचिकी का डिजिटल फोंट तैयार कर लिया है। इस फोंट का इस्तेमाल पब्लिकेशन में किया जा सकता है।

प्रभात खबर में छपी खबर के मुताबिक डिजिटल फोंट तैयार करने में श्याम को लगभग तीन साल का वक्त लगा। कम्प्यूटर की कोई औपचारिक डिग्री न होने के बावजूद अपनी लगन के कारण श्याम ने यह मुकाम हासिल किया है और वह आगे भी वेबसाइट डिजाइन से लेकर अन्य तकनीकी कार्यों में न केवल रुचि रखते हैं, बल्कि एक मिसाल कायम करना चाहते हैं।

मीडिया से बातचीत में श्याम कहते हैं, ओलचिकी का फोंट पहले से इंटरनेट पर उपलब्ध था, मगर उसमें तकनीकी रूप से कई खामियां थीं। पहले से जो फोंट मौजूद है उसमें किसी लेख के हेडिंग और बॉडी टेक्स्ट का साइज बराबर है, जो देखने में बहुत खराब लगता था। अब श्याम ने इन्हीं खामियों में सुधार किया है।

फिलहाल श्याम मुर्मू ऐसे फोंट पर भी काम कर रहे हैं, जिसे फैशन एसेसरीज में इस्तेमाल किया जा सके। श्याम का कहना है वह जिस फोंट पर काम कर रहे हैं उसका इस्तेमाल कपड़ों, बैग या अन्य चीजों में हो सकेगा।

गौरतलब है कि श्याम ने 11 साल पहले 2013 में संताली दिशोम डॉट कॉम नाम से वेबसाइट बनायी थी। इसी के माध्यम से श्याम संताली भाषा में रुचि​ रखने वाले लोगों को संताली भाषा सिखाते थे। बकौल श्याम अभी हाल में उन्हें मुंबई की एक संस्था ने कॉफी टेबल बुक बनाने का काम दिया है। श्याम का कहना है कि यह पुस्तक भी संताली में होगी।

गौरतलब है कि वर्ष 2025 में ओलचिकी लिपि के 100 साल पूरे हो जायेंगे। संताली भाषा की ओलचिकी लिपि का आविष्कार वर्ष 1925 में पंडित रगुनाथ मुर्मू ने किया था जिसकी वजह से संताली भाषा के विकास में बहुत मदद मिली थी। फिलहाल श्याम जैसे कई अन्य युवा अपनी स्वचेतना से संताली भाषा को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

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