“इतिहास की गूंज तब तक अधूरी रहती है, जब तक वंचितों की आवाज़ को सम्मानजनक स्थान नहीं मिलता। सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहन कुमारी मायावती जी ने उसी अधूरे इतिहास को न्यायपूर्ण पूर्णता प्रदान करने का ऐतिहासिक कार्य किया है।”
भारत की लोकतांत्रिक यात्रा में जब-जब सामाजिक न्याय, समता, स्वाभिमान और वंचितों के अधिकारों की बात होगी, तब बहन कुमारी मायावती जी का नाम एक ऐसी साहसी और सशक्त लोहमूर्ति के रूप में लिया जाएगा, जिन्होंने सत्ता को केवल एक शासन प्रणाली के रूप में नहीं देखा, बल्कि उसे संविधान की आत्मा – सामाजिक परिवर्तन व न्याय और समता – के उद्देश्य को साकार करने का सशक्त माध्यम बनाया।
उन्होंने सत्ता को वंचितों, शोषितों और समाज के हाशिए पर खड़े वर्गों के जीवन को सम्मान और अवसर प्रदान करने वाली मशाल में परिवर्तित कर दिया। बहनजी ने बहुजन महापुरुषों और महानायिकाओं के नाम पर शैक्षणिक संस्थानों – स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, मेडिकल व इंजीनियरिंग संस्थानों – की स्थापना कर न केवल विचारधारा को संस्थागत स्वरूप दिया, बल्कि पीढ़ियों को आत्मगौरव, जागरूकता और अधिकार बोध से जोड़ने का सशक्त प्रयास किया।
यह वही विचारधारा है जिसे सदियों तक पददलित करने का प्रयास किया गया, परंतु मान्यवर कांशीराम जी और बहनजी के सतत संघर्षों और असाधारण नेतृत्व ने इसे मिटने से बचाया, जीवंत रखा, और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमिट इतिहास रच दिया।
आज, उन्हीं बहुजन महापुरुषों में से एक अद्वितीय युगपुरुष – राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज – के परिनिर्वाण दिवस पर, हमें स्मरण करना चाहिए कि सामाजिक परिवर्तन की इस यात्रा में बहन मायावती जी की भूमिका कितनी निर्णायक रही है। उन्होंने इस महान समतावादी नायक को जनमानस में स्थापित करने के लिए ऐसे अनेक ऐतिहासिक कार्य किए हैं जिनकी छाप समय और सत्ता से परे है।
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राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज: लोकतांत्रिक मूल्यों के आदिग्रंथकार
छत्रपति शाहूजी महाराज उन विरले नायकों में से एक हैं जिन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान भी सामाजिक न्याय, समता और आरक्षण जैसे क्रांतिकारी विचारों को साकार करने की दिशा में ठोस कदम उठाए। उन्होंने पिछड़े, दलित, और वंचित वर्गों के लिए शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण देकर भारत में एक समतामूलक समाज की नींव रखी।
बहन मायावती जी ने शाहूजी महाराज के योगदान को केवल श्रद्धांजलि और भाषणों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्हें जीवंत स्मृति में बदलने का महान कार्य किया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि जो समाज अपने महापुरुषों को विस्मृत कर देता है, वह अपने अस्तित्व को ही खो बैठता है।
बहनजी द्वारा स्थापित कुछ प्रमुख संस्थान इस प्रकार हैं:
- छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर – उच्च शिक्षा में समावेशिता और अवसर का प्रतीक।
- चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ – स्वास्थ्य क्षेत्र में वंचित समाज के लिए क्रांतिकारी पहुंच।
- भागीदारी भवन, लखनऊ – सामाजिक संवाद, भागीदारी और समरसता की स्थली।
- शिक्षण व प्रशिक्षण केंद्र, लखनऊ – UPSC, PCS, मेडिकल, इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में बहुजन युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास।
- जनपद नामकरण, स्मारक व प्रतिमाएँ – इतिहास को जनचेतना से जोड़ने की ऐतिहासिक पहल।
मान्यवर कांशीराम साहब के सपनों को मूर्त रूप देने वाली विरासत
कांशीराम साहब वह युगद्रष्टा थे जिन्होंने बहुजन समाज को चेतना, संगठन और राजनीतिक ताकत का स्वरूप दिया। बहन मायावती जी की उनके प्रति श्रद्धा केवल वैचारिक श्रद्धांजलि नहीं रही, बल्कि उन्होंने अपने कर्म और नीतियों से उनके अधूरे सपनों को आकार दिया।
“मान्यवर कांशीराम साहब यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, बांदा” इसी प्रतिबद्धता की गवाही है। बहुजन समाज को राजनीतिक विमर्श से आगे बढ़ाकर शिक्षा, कृषि, विज्ञान, तकनीक, पशुपालन और गृह विज्ञान जैसे व्यावसायिक क्षेत्रों में नेतृत्व देने की दिशा में यह विश्वविद्यालय एक मील का पत्थर है।
यह संस्थान 600 एकड़ भूमि में फैला हुआ है और छह प्रमुख कॉलेजों में विभाजित है:
- कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर
- कॉलेज ऑफ हॉर्टिकल्चर
- कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री
- कॉलेज ऑफ होम साइंस
- कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी
- कॉलेज ऑफ वेटरनरी साइंस एंड एनिमल हसबेंड्री
यह न केवल एक विश्वविद्यालय है, बल्कि बहुजन आत्मसम्मान, स्वावलंबन और ज्ञान के विस्तार की सजीव मूर्ति है।
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दुर्भाग्यपूर्ण परिवर्तन: नाम बदलने की साज़िश
समाजवादी पार्टी की सरकार, जिसकी मानसिकता जातिवाद से ग्रसित है, ने सत्ता में आते ही बहुजन प्रतीकों को मिटाने की घृणित साज़िश रची। इसी मानसिकता के चलते “मान्यवर कांशीराम साहब विश्वविद्यालय” का नाम बदलकर “बांदा यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी” कर दिया गया। ठीक उसी तरह, लखनऊ मेडिकल कॉलेज जिसे बहनजी ने छत्रपति शाहूजी महाराज के नाम पर समर्पित किया था, उसका नाम पुनः बदलकर “किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज” कर दिया गया।
यह केवल नाम परिवर्तन नहीं था, यह बहुजन चेतना और सामाजिक न्याय के प्रतीकों पर सीधा हमला था। स्मारकों, जनपदों, कॉलेजों के नाम बदलकर बहुजन आंदोलन की जीवित विरासत को मिटाने का प्रयास किया गया।
लेकिन आज भी इन संस्थानों की दीवारें, पुस्तकालय, कक्षाएँ और प्रयोगशालाएँ मान्यवर साहब और बहनजी के संघर्षों की गवाही देती हैं। यह संघर्ष आज भी जीवित है, और यह विचारधारा मिटाई नहीं जा सकती।
बहनजी: विचारधारा से कभी समझौता न करने वाली योद्धा
बहन मायावती जी का पूरा राजनीतिक जीवन इस बात का उदाहरण है कि सत्ता में होते हुए भी कैसे वैचारिक प्रतिबद्धता को सर्वोपरि रखा जा सकता है। उन्होंने संविधान को अपने हर निर्णय में मार्गदर्शक बनाया। उन्होंने अम्बेडकर प्रेरणा स्थल, बहुजन स्मारक, भव्य प्रतिमाएँ, और सामाजिक उत्थान की योजनाओं के ज़रिए बहुजन समाज को नई चेतना दी। उनका नेतृत्व विचारधारा की रीढ़ है – आत्मसम्मान, अधिकार, समानता और गरिमा। उन्होंने सत्ता को साधन नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति का यंत्र बनाया।
समाज के नाम संदेश: जागो, पहचानो और संगठित हो
आज समय की सबसे बड़ी माँग है कि बहुजन समाज अपने सच्चे नायकों को पहचाने, उनके विचारों को आत्मसात करे और अवसरवादियों से सावधान रहे। सच्चा सम्मान केवल स्मरण में नहीं, क्रियान्वयन में होता है।
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श्रद्धा के साथ उत्तरदायित्व का निर्वहन आवश्यक है – हमें संगठित होकर शिक्षा, रोजगार, सामाजिक न्याय और आत्मसम्मान की लड़ाई को और अधिक शक्ति के साथ आगे बढ़ाना होगा।
बहनजी के कार्यों की अमिट छाप
बहन कुमारी मायावती जी का योगदान केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है। उन्होंने पूरे भारत में वंचितों, दलितों, पिछड़ों और महिलाओं के लिए एक नई आशा, नया आत्मबल और नया दर्शन दिया है।
उन्होंने इतिहास को पुनर्लिखा, विस्मृत महापुरुषों को जनमानस में स्थान दिलाया और संविधान के सपनों को ज़मीन पर उतारकर उन्हें साकार किया।
लेखिका: दीपशिखा इन्द्रा (सोशल एक्टिविस्ट)