केरल के स्कूल में जातिवाद का घिनौना चेहरा: 6 साल के दलित बच्चे से कराई गई सहपाठी की उल्टी की सफाई

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केरल के सेंट बेनेडिक्ट्स एलपी स्कूल में एक शिक्षिका, मारिया जोसेफ, ने 6 साल के दलित बच्चे को सहपाठी की उल्टी साफ करने के लिए मजबूर किया। इस जातिवादी घटना की शिकायत के बावजूद प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। पीड़ित बच्चा मानसिक रूप से आहत है, और सामाजिक संगठनों ने शिक्षिका के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।

केरल के पथनमथिट्टा जिले के स्लीवमाला क्षेत्र में स्थित सेंट बेनेडिक्ट्स एलपी स्कूल से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसने समाज में जातिवाद की गहरी जड़ों को उजागर किया है। स्कूल की एक शिक्षिका, मारिया जोसेफ, पर आरोप है कि उन्होंने एक 6 साल के अनुसूचित जाति के छात्र को उसके सहपाठी की उल्टी साफ करने के लिए मजबूर किया। यह घटना उस समय हुई जब कक्षा में पढ़ाई चल रही थी, और एक अन्य छात्र ने अचानक उल्टी कर दी।

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शिक्षिका पर आरोप

शिक्षिका ने अपनी जिम्मेदारी निभाने के बजाय, पीड़ित बच्चे को जातिगत आधार पर नीचा दिखाते हुए अपने सहपाठी की उल्टी साफ करने का आदेश दिया। इस अमानवीय कार्य को अंजाम देते समय शिक्षिका ने यह भी सुनिश्चित किया कि अन्य बच्चे इस दृश्य को देखें, जिससे दलित बच्चे की मानसिक स्थिति और खराब हो गई।

परिवार और समाज की प्रतिक्रिया

इस घटना से आहत बच्चे के माता-पिता ने स्कूल प्रशासन से शिकायत की। उन्होंने शिक्षिका के इस जातिवादी और अमानवीय व्यवहार पर कड़ी आपत्ति जताई और शिक्षक के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। बच्चे की मां ने बताया कि इस घटना के बाद बच्चा मानसिक रूप से परेशान है और स्कूल जाने से डर रहा है। बच्चे के पिता ने इसे दलित समुदाय का अपमान बताते हुए समाज में व्याप्त भेदभाव और अन्याय पर गंभीर सवाल उठाए।

प्रशासन की उदासीनता

शिकायत दर्ज होने के बावजूद, स्कूल प्रशासन और स्थानीय शिक्षा विभाग ने अब तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की है। शिकायत को दरकिनार करते हुए इसे मामूली घटना बताने का प्रयास किया गया। स्कूल प्रबंधन ने शिक्षिका को बचाने के लिए इसे “अनजाने में हुई गलती” करार दिया।

कानूनी और सामाजिक पहलू

यह घटना न केवल मानवता के खिलाफ है, बल्कि यह संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन है। भारत में अनुसूचित जातियों के खिलाफ भेदभाव को रोकने के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं, लेकिन इस मामले में इन कानूनों को नजरअंदाज किया गया। सामाजिक संगठनों और दलित अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस घटना की कड़ी निंदा की है और शिक्षिका के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।

जातिवाद के खिलाफ उठते सवाल

यह घटना केवल एक स्कूल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज में जातिगत भेदभाव की गहरी पैठ को दर्शाती है। यह सवाल उठता है कि शिक्षा, जो समाज में समानता और न्याय का प्रचार करती है, कैसे जातिवादी मानसिकता का अड्डा बन सकती है।

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आवश्यक कार्रवाई की मांग

इस घटना ने पूरे केरल में हड़कंप मचा दिया है। मानवाधिकार संगठनों, दलित संगठनों, और जागरूक नागरिकों ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए शिक्षिका को निलंबित करने, स्कूल प्रशासन पर जुर्माना लगाने, और पीड़ित बच्चे को मानसिक सहायता प्रदान करने की मांग की है।

यह घटना एक बार फिर यह याद दिलाती है कि जब तक जातिवाद के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाए जाते, समाज में समानता और न्याय का सपना अधूरा ही रहेगा।

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