आगरा में आसान नहीं है भाजपा की राह, बसपा से इस चुनौती का करना होगा सामना।

mayawati
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उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण में चंद दिन ही बचे है ऐसे में देश के सबसे बड़े राज्य में राजनितिक सरगर्मिया तेज होना लाजमी है।
इसका एक कारण यह भी है की यूपी विधानसभा का चुनाव लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जाता है। आज हम बात करेंगे आगरा जिले की जो दो चीजों के लिए जाना जाता है पहला खूबसूरत ताजमहल के लिए तो दूसरा राजनीती में दलित राजधानी के रूप में।

बेशक 2017 में भाजपा ने आगरा की सभी 9 सीटों पर कब्ज़ा जमाया था लेकिन आगरा बसपा का पुराना गढ़ रहा चूका है जिस कारण आगरा को दलित राजधानी के तौर पर भी जाना है। जिले की 21% आबादी अनुसूचित जाति से संबंधित है। यहां बड़ा फुटवियर उद्योग है, जो इन समुदायों, विशेष रूप से जाटवों को रोजगार देता है। जाटव बसपा का मुख्य वोट बैंक है। चुनाव के नतीजों में भी यह देखने को मिलता है।

बसपा के सामने अपना पुराना गढ़ बचाने की चुनौती होगी क्योंकि वर्तमान में जिले की सभी नौ सीटों पर भाजपा का कब्जा है। सभी पर भगवा झंडा लहरा रहा है। हालांकि भाजपा के लिए भी मुश्किलें कम नहीं होंगी। उसके सामने अपना किला बचाने की चुनौती होगी। क्योंकि भगवा जमीन पर कभी नीला रंग चढ़ा हुआ था।

2007 में जब बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और मायावती मुख्यमंत्री बनीं तो बसपा ने आगरा की 9 विधानसभा सीटों में से 6 पर जीत हासिल की। 2012 में वह सत्ता से बेदखल हो गईं, लेकिन तब भी बसपा ने यहां 9 में से 6 सीटों पर जीत दर्ज की। इसके बाद 2017 में कुछ अकल्पनीय हुआ और भाजपा ने सभी 9 सीटों पर जीत का परचम फहराया। जबकि यहां की 7 सीटों पर बसपा उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे।

2017 में कुछ जाटव बसपा से अलग हो गए थे लेकिन इस बार स्थानीय निवासियों का कहना है की -पिछली बार कुछ जाटव बसपा से अलग हो गए और भाजपा में चले गए। इस बार हम ऐसी गलती नहीं करेंगे। बाबासाहब, बाबू जगजीवन राम और कांशीराम के बाद मायावती ही हैं। वे ही हमारी सर्वमान्य नेता है।

बसपा सुप्रीमो मायावती अपने चुनाव अभियान का आगाज 2 फरवरी को आगरा से ही कर रही है। मायावती आगरा में चुनावी बिगुल फूंककर जनसभा से कार्यकर्ताओं में जोश भरेगी। अपने पुराने किले को वापस पाने के लिए बसपा कार्यकर्ता भी लगातार जनता के बिच जाकर बसपा सुप्रीमो मायावती का संदेश पंहुचा रहे है।

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