“बाढ़ में दलित” अस्त व्यस्त होता जीवन

Share News:

भारत में जातिवाद की जड़े काफी मजबूत हैं हालाँकि जातिवाद को एक सामाजिक बुराई माना जाता है। यह एक अन्यायपूर्ण व्यवस्था है जो समाज के एक वर्ग का बेरहमी से शोषण कर रही है। निम्न वर्ग के लोग समाज में जगह बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। भले ही निम्न वर्ग का व्यक्ति शिक्षा चाहता हो और उसे अच्छी नौकरी मिले, फिर भी उसे समाज में उस तरह का सम्मान नहीं दिया जाना चाहिए जैसा उसे मिलना चाहिए। यह निम्न वर्ग के लोगों के लिए संकट का कारण रहा है।
हाल में तमिलनाडु के चेन्नई, कांचीपुरम और तिरुवल्लूर जिलों के कई इलाकों में भारी बारिश का सिलसिला जारी है. लेकिन इस आपदा की घड़ी में भी जातिवाद पूरी तरह अपने पैर पसार रही हैं जिससे जिलों के बाढ़ से प्रभावित तमिलनाडु के उत्‍तरी जिलों में राहत कार्य में दलितों और ओबीसी के बीच की खाई रोड़े अटका रही है। कड्डलोर जिले के कई गांवों में ओबीसी अनुसूचति जाति के लोगों के लिए राहत सामग्री वाले ट्रक पहले भेजने का विरोध कर रहे हैं। सुदूर के गांवों में राहत कार्यों के लिए जा रहे आम वॉलंटियर्स को कई मुश्‍क‍िलों का सामना करना पड़ रहा है.

बता दें कि यहां 2012 में हुए धर्मपुरी दंगों के बाद से ही जातिगत तनाव ने जड़ें जमा रखी हैं। तमिलनाडु के उत्‍तरी हिस्‍सों में ओबीसी वनियार समुदाय की आबादी 11 से 12 प्रतिशत है। वहीं, दलित समुदाय परायार करीब 6 पर्सेंट हैं। दोनों समुदायों के बीच अक्‍सर झड़प होती रही है। सबसे बुरा वाकया नवंबर 2012 का है। वनियार समुदाय की लड़की और दलित समुदाय के एक लड़के के साथ भाग जाने के बाद उपजे तनाव और बाद में भड़की हिंसा में धर्मपुरी जिले में कई दलित बस्‍त‍ियों को जला दिया गया था।

द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कुरिंजीपडी का ओनाक्‍कापम गांव बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित है। और यहा के ओबीसी वर्ग गांव के ही पिछड़ी जाति के लोगों के साथ भेद-भाव करने पर उतारू हैं, यहां राहत सामग्री से भरे ट्रकों के सामान का इस्‍तेमाल पहले ओबीसी करते हैं। इसके बाद ही, बची हुई राहत सामग्री दलितों के इलाकों में आवंटित हो पाती है। हाल ही में गांव में एक बार सेना जब मेडिकल कैंप लगाने पहुंची, तो वहां के ओबीसी लोगों ने गांव के बीचों बीच स्‍थित एक घर में यह कैंप लगवाया लेकिन हालत इतने ख़राब थे उस वजह से दलित ओबीसी लोगों के घरों के करीब लगे इस मेडिकल कैंप तक जाने का जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं हुए। जिससे उनको मेडिकल कैंप का लाभ ही नहीं मिला।

ओबीसी समुदाय के लोगों की भी शिकायत हैं एक ओबीसी महिला ने बताया कि गांव में बने एक संकरे पुल की वजह से उन्‍हें काफी दिक्‍कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसकी वजह से उन्‍हें मेन रोड तक जाने के लिए अनुसूचित जाति के लोगों के घरों के पास से निकलना पड़ता है। महिला का आरोप है कि अनुसूचित जाति के लोगों के घरों के करीब से जाने पर उनकी जवान बेटियों के साथ छेड़छाड़ की जाती है।

महिलाओ का कहना हैं उनके बाढ़ के कारण कई तरह इन मुसीबत का सामने करना पड़ रहा हैं।वहीं, एक दलित महिला ने बताया, ”हमारे झोपड़े गांव के दायरे में हैं, इसलिए हमें सबसे ज्‍यादा दिक्‍कतों का सामना करना पड़ता है। जब भी कोई राहत सामग्री से भरा ट्रक आता है तो वो पहले ओबीसी लोगों के इलाके में जाता है। उस इलाके में हम बरसों से नहीं गए।” दलितों का यह भी आरोप है कि एक बार पानी की सैंकड़ों बोतलों से भरा एक ट्रक जब गांव में आया तो उसे पहले ओबीसी लोगों के घरों की तरफ भेज दिया गया। जब ट्रक वापस लौटा तो उसमें पानी के महज दस कार्टन ही बचे थे। कड्डलोर में राहत कार्यक्रम में पंचायत प्रमुखों को शामिल किए जाने को लेकर भी विरोध है क्‍योंकि इनमें से अधिकतर ओबीसी समुदाय से ताल्‍लुक रखते हैं।

निःसंदेह जाति प्रथा एक सामाजिक कुरीति है। ये विडंबना ही है कि देश को आजाद हुए सात दशक से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी हम जाति प्रथा के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाएं हैं। हालांकि एक लोकतांत्रिक देश के नाते संविधान के अनुच्छेद 15 में राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किए जाने की बात कही गई है। लेकिन विरोधाभास है कि सरकारी औहादे के लिए आवेदन या चयन की प्रक्रिया के वक्त जाति को प्रमुखता दी जाती है।

*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *

महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।

  Donate

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *