Jai Bhim Review : सच को उजागर करती भेदभाव और पुलिस सिस्टम की कहानी

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भारत देश में हमेशा से ही निचले तबके के लोगों के साथ शोषण होता हुआ आया हैं चाहे फिर वो शारीरिक रूप से हो या मानसिक रूप से समाज के चंद ठेकेदारों के जुल्मों से आज भी ये पिछड़ी जातियां तरह तरह से शोषित की जाती है। अमेजन प्राइम वीडियो (Amazon Prime Video) पर स्ट्रीम हो रही टीएस गनानवेल की फिल्म जयभीम (Jai Bhim movie) तमिलनाडु में आदिवासी समुदाय पर हुई बर्बरता के अतीत से पर्दा उठाती है पिछड़ी जातियों के साथ हुए शोषण की आवाज को इस फ़िल्म जय भीम में बखूबी उठाया गया है। फिल्म में मुख्य किरदार सूर्या (Suriya), लिजो मोल जोस (Lijo Mol Jose), प्रकाश राज (Prakash Raj), मणिकंदन(Manikandan) हैं।

जय भीम 90 के दशक में तमिलनाडु में हुई सच्ची घटनाओं पर आधारित है। फिल्म जय भीम’ इरुलुर आदिवासी समुदाय के एक जोड़े सेंगगेनी और राजकन्नू की कहानी है। जिसमे राजकन्नू को झूठे आरोप में पुलिस गिरफ्तार कर लेती है और इसके बाद वह पुलिस हिरासत से लापता हो जाता है। ऐसे में उसकी पत्नी सेंगगेनी उसकी तलाश के लिए वकील चंद्रू सूर्या का सहारा लेती है।इस फ़िल्म में आपको 1995-96 में पुलिस का पिछड़ी जातियों के साथ किए गये अत्याचार आपका रोंगटे खड़े कर देगा और जैसा की फिल्म के नाम से ही पता चलता हैं की पूरी कहानी केवल पिछड़े जातियों के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। वर्ष 1995-96 मे हुई घटनाओ को समाज के सामने तरोताजा करने में ये फ़िल्म काफी हद तक सफल भी रही है।

 

‘जय भीम’ मे सभी किरदारों को बखूबी दर्शाया गया हैं साथ ही न्यायपालिका और पुलिस विभाग जंहा एक तरफ फिल्म में पुलिस के अत्याचारों को दिखाया गया है तो वहीं सिस्टम पर भी तंज कसते हुए दिखाया गया है फिल्म में जयभीम फिल्‍म की कहानी जिस दौर की है जब सत्ता के शीर्ष पर पेरियार के अनुयायी काबिज होते हैं. द्रविण राजनीति के दो धड़े लगातार सत्ता में बने रहते हैं और उसी राज्य में ईरुला जैसा सबसे हाशिए का समुदाय- इंसान होने तक की हैसियत नहीं रखता हैं। वो सूर्या का किरदार जंहा लोगो को अंधकार में आशा की किरण दिखाता हैं वही एक संदेश भी देता हैं की जुल्म चाहे कितना भी हो एक वक्त बाद घुटने टेक ही देता हैं।

जय भीम अपने पहले ही सीन में दर्शकों का ध्यान खींचने में कामयाब रही है। पहले सीन कुछ इस तरह हैं कि कुछ लोग लोकल जेल से बाहर निकले हैं और उनका परिवार बाहर इंतजार कर रहा है। साथ ही बाहर निकल रहे कैदियों से उनकी कास्ट पूछकर रोका जाता है और जो कैदी निचली कास्ट के होते हैं, उन्हें फिर से किसी पुराने केस में आरोपी बनाकर पुलिस को सौंप दिया जाता है। आज भी हालात बहुत से हिस्सों में निचले कास्ट के लोगों के लिए कुछ खास बदले नहीं हैं। फिल्म में शोषण इस तरह से दर्शाया गया हैं की कठोर से कठोर हृदय का व्यक्ति तक अमानवीयता के खिलाफ घृणा और निजी पश्चाताप से भर जाएगा। कुल मिलाकर इस फिल्म को देखने से आपको समाज में छुपे जातिवाद को एक बार फिर से बहुत करीब से देख पाएंगे। जय भीम के आर्ट डिपार्टमेंट (Art Department) ने 90 के दशक को बखूबी दिखाया है. हाई कोर्ट की कार्यवाही और सेट का काम इस फिल्म को बेहतर बनाने में सबसे महत्वपूर्ण है. एस आर कथिर की सिनेमाटोग्राफी (Cinematography) फिल्म के दूसरे साइलेंटे हीरो हैं.

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