अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए भारत सरकार की योजनाएँ एवं संवैधानिक प्रावधान

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संविधान के भाग IV के अंतर्गत राज्य के नीति निर्देशक तत्व में सम्मिलित अनुच्‍छेद 46 प्रावधान करता है कि राज्‍य समाज के कमजोर वर्गों में शैक्षणिक और आर्थिक हितों विशेषत: अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का विशेष ध्‍यान रखेगा और उन्‍हें सामाजिक अन्‍याय एवं सभी प्रकार के शोषण से संरक्षित रखेगा।

89वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 2003:

इस संशोधन द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति हेतु गठित पूर्ववर्ती राष्ट्रीय आयोग को वर्ष 2004 में दो अलग-अलग आयोगोंमें बदल दिया गया । इसके तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (National Commission for Scheduled Castes- NCSC) औरअनुच्छेद 338-A के तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes- NCST) का गठन किया गया।

क्या है राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग:

NCSC एक संवैधानिक निकाय है जो भारत में अनुसूचित जातियों (SC) के हितों की रक्षा हेतु कार्य करता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 338 इस आयोग से संबंधित है।
यह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति हेतु कर्तव्यों के निर्वहन के साथ एक राष्ट्रीय आयोग के गठन का प्रावधान करता हैजो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से संबंधित सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच और निगरानी करसकता है, अनुसूचित जाति एवं जनजाति से संबंधित विशिष्ट शिकायतों के मामले में पूछताछ कर सकता है तथा उनकीसामाजिक-आर्थिक विकास योजना प्रक्रिया में भाग लेने के साथ सलाह देना का अधिकार रखता है।
आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं तीन अन्य सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा लिखित आदेश से की जाती है।

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  • आयोग के प्रमुख कार्य:संविधान के तहत SCs को प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों के संबंध में सभी मुद्दों की निगरानी और जाँच करना।
  • SCs को उनके अधिकार और सुरक्षा उपायों से वंचित करने से संबंधित शिकायतों के मामले में पूछताछ करना।
  • अनुसूचित जातियों से संबंधित सामाजिक-आर्थिक विकास योजनाओं पर केंद्र या राज्य सरकारों को सलाह देना।
  • इन सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन हेतु राष्ट्रपति को नियमित तौर पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना।
    SCs के सामाजिक- आर्थिक विकास और अन्य कल्याणकारी गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु उठाए जाने वाले कदमों कीसिफारिश करना।
  • SC समुदाय के कल्याण, सुरक्षा, विकास और उन्नति के संबंध में कई अन्य कार्य करना, इत्यादि।

अनुसूचित जाति के उत्थान हेतु अन्य संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 15 (4) : अनुसूचित जाति की उन्नति हेतु विशेष प्रावधानों को संदर्भित करता है।
  • अनुच्छेद 16 (4 अ) : यदि राज्य के तहत प्रदत्त सेवाओं में अनुसूचित जाति का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, तो पदोन्नति के मामलेमें यह किसी भी वर्ग या पदों हेतु आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • अनुच्छेद 17 : अस्पृश्यता को क़ानून समाप्त करना।
  • अनुच्छेद 46 : अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा समाज के कमज़ोर वर्गों के शैक्षणिक व आर्थिक हितों को प्रोत्साहन औरसामाजिक अन्याय एवं शोषण से सुरक्षा प्रदान करना।
  • संविधान के अनुच्छेद 330 और अनुच्छेद 332 क्रमशः लोकसभा एवं राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों व अनुसूचितजनजातियों के पक्ष में सीटों को आरक्षित करते हैं।
  • अनुच्छेद 335 : संघ और राज्यों के मामलों में सेवाओं और पदों पर नियुक्तियों हेतु अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचितजनजातियों के सदस्यों के दावे को लगातार प्रशासनिक दक्षता के साथ ध्यान में रखना।
  • पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX और नगर पालिकाओं से संबंधित भाग IXA में SC तथा ST के सदस्यों हेतु आरक्षणकी परिकल्पना की गई है जो कि SC और ST को प्राप्त है।

केंद्र सरकार द्वारा चलायी जा रहीं कुछ महत्वपूर्ण लाभकारी योजनाएँ :

अनुसूचित जाति विकास (एससीडी) ब्यूरो का उद्देश्य अनुसूचित जातियों के कल्याण को उनके शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण के माध्यम से बढ़ावा देना है।

शैक्षिक सशक्तिकरण

छात्रवृत्ति को मोटे तौर पर निम्नलिखित तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है :

a) प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप : इनका सारांश नीचे दिया गया है:

1 अनुसूचित जाति के छात्रों को प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति:

2 सफाई और स्वास्थ्य संबंधी खतरों से जुड़े व्यवसायों में लगे लोगों के बच्चों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति: यह योजना 1977-78 में शुरू की गई थी।

b) अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति (पीएमएस-एससी): यह योजना 1944 से प्रचालन में है।

c) उच्च शिक्षा और कोचिंग योजना प्राप्त करने के लिए छात्रवृत्ति : इनमें शामिल हैं:

  1. अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए शीर्ष श्रेणी की शिक्षा

  2. राष्ट्रीय फैलोशिप

  3. राष्ट्रीय विदेशी छात्रवृत्ति

  4. अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों के लिए नि: शुल्क कोचिंग

आर्थिक सशक्तिकरण

a) राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त और विकास निगम (NSFDC) : मंत्रालय के तहत गरीबी रेखा की सीमा से दोगुने से नीचे रहने वाले अनुसूचित जाति के लाभार्थियों (वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 98,000/- रुपये प्रति वर्ष और 1,20,000 रुपये/ – शहरी क्षेत्रों के लिए प्रति वर्ष)।

b) राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम (एनएसकेएफडीसी)

c) अनुसूचित जाति उप-योजना (एससीएसपी) के लिए विशेष केंद्रीय सहायता (एससीए)

d) अनुसूचित जाति विकास निगमों (एससीडीसी) को सहायता की योजना

e) अनुसूचित जातियों के लिए वेंचर कैपिटल फंड

f) अनुसूचित जातियों के लिए ऋण वृद्धि गारंटी योजना

सामाजिक सशक्तिकरण

a) नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955: भारत के संविधान के अनुच्छेद 17 के अनुसरण में, यह अधिनियम पूरे भारत में फैला हुआ है और अस्पृश्यता की प्रथा के लिए दंड का प्रावधान करता है। इसे संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।

b) अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989:

c) अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) नियम, 1995:

d) ‘मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013′ (एमएस अधिनियम, 2013) : इस दिशा में, एक बहु-आयामी रणनीति का पालन किया गया, जिसमें निम्नलिखित विधायी और साथ ही कार्यक्रम संबंधी हस्तक्षेप शामिल थे

  1. “हाथ से मैला ढोने वालों का नियोजन और शुष्क शौचालयों का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 (1993 अधिनियम)” का अधिनियमन;

  2. शहरी क्षेत्रों में सूखे शौचालयों को स्वच्छता शौचालयों में बदलने के लिए एकीकृत कम लागत स्वच्छता (आईएलसीएस) योजना; तथा

  3. मैला ढोने वालों की मुक्ति और पुनर्वास के लिए राष्ट्रीय योजना (NSLRS) का शुभारंभ।

  4. हाथ से मैला उठाने वालों के पुनर्वास के लिए स्वरोजगार योजना।

सरकार द्वारा किए गए उपरोक्त उपायों के बावजूद, हाथ से मैला ढोने की प्रथा का अस्तित्व बना रहा जो 2011 की जनगणना के आंकड़ों के जारी होने से स्पष्ट हो गया, जो देश में 26 लाख से अधिक अस्वच्छ शौचालयों के अस्तित्व को दर्शाता है। मैला ढोने वालों के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013′ (एमएस अधिनियम, 2013) संसद द्वारा सितंबर, 2013 में पारित किया गया था और यह 6 दिसंबर, 2013 से लागू हुआ है। इसके उद्देश्य:

  1. अस्वच्छ शौचालयों की पहचान करना और उन्हें समाप्त करना।

  2. निषेध:- i) मैला ढोने वालों के रूप में रोजगार और ii) सीवर और सेप्टिक टैंक की खतरनाक मैनुअल सफाई

  3. हाथ से मैला उठाने वालों की पहचान करना और उनका पुनर्वास करना।

सरकार द्वारा चलायी जा रही इन तमाम लाभकारी योजनाओं के बावजूद आज भी समाज के लोगों को निचले पायदान पर जीने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है जिसकी मुख्या वजह में से एक है अज्ञानता की वजह से इन योजनाओं का लोगों तक न पहुंच पाना, सरकार को चाहिए की इन योजनाओ की जानकारी हर जरुरतमंद तक पहुंचे ताकि वह लोग इन सभी योजनाओं का लाभ लेने मे सक्षम हो सकें।

उद्देश्य :  इस लेख का मुख्य उद्देश्य लोगों को इनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना है, यह लेख जितेन्द्र गौतम  (Twitter @ErJKGautam) द्वारा संकलित किया गया है, संकलन कर्ता मानवाधिकार, महिला सशक्तिकरण, जातिवाद एवं सामाजिक मुद्दों इत्यादि पर लेख और कवितायेँ लिखते रहते हैं।

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