एससी आयोग का कार्यालय उद्घाटन: दलित नेताओं को क्यों नहीं दिया न्योता?

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नाहन गौरव विकास संस्था के अध्यक्ष सुधीर कांत रमौल ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जहां एक ओर एससी आयोग का कार्यालय खोला गया, वहां किसी दलित नेता को आमंत्रित नहीं किया गया। यह घटना दलित समुदाय के प्रति उदासीन रवैये और उनके अधिकारों को दरकिनार करने का स्पष्ट उदाहरण है।

MP: नाहन के नौणी का बाग क्षेत्र में अवैध पेड़ कटान और दलित अधिकारों की उपेक्षा को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। नाहन गौरव विकास संस्था के अध्यक्ष सुधीर कांत रमौल ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जहां एक ओर एससी आयोग का कार्यालय खोला गया, वहां किसी दलित नेता को आमंत्रित नहीं किया गया। यह घटना दलित समुदाय के प्रति उदासीन रवैये और उनके अधिकारों को दरकिनार करने का स्पष्ट उदाहरण है। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय और दलित सशक्तिकरण के नाम पर बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में इन्हें लागू नहीं किया जाता।

अवैध कटान का मामला: पर्यावरण और कानून दोनों की अनदेखी

नौणी का बाग में नगर परिषद की भूमि पर सैकड़ों पेड़ों का अवैध कटान किया गया, लेकिन प्रशासन ने सिर्फ 7 पेड़ों पर जुर्माना लगाकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। रमौल ने कहा कि वन संरक्षण अधिनियम 1980 की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। जिस भूमि पर पेड़ काटे गए, वह गैर-मुमकिन चारागाह और दरख्तान की श्रेणी में आती है, जहां बिना अनुमति के किसी भी प्रकार की कटाई गैरकानूनी है। लेकिन न तो एफआईआर दर्ज की गई और न ही आरोपियों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई हुई।

दलित मुद्दों की उपेक्षा: प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम

रमौल ने यह भी आरोप लगाया कि यह मामला केवल पर्यावरण संरक्षण का नहीं है, बल्कि दलितों और कमजोर वर्गों के प्रति प्रशासन के उदासीन रवैये का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि पेड़ों की कटाई के जरिए न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया गया, बल्कि यह क्षेत्र में रहने वाले दलित समुदाय के जीवन और अधिकारों पर भी हमला है। वन और चारागाह भूमि का संरक्षण दलितों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उनके आजीविका के साधनों में से एक है।

सरकार और प्रशासन की चुप्पी पर सवाल

नाहन गौरव विकास संस्था ने 6 मार्च 2024 को इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री को शिकायत सौंपी थी, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। रमौल ने कहा कि यदि दलित नेतृत्व को इस मुद्दे में शामिल किया गया होता, तो शायद स्थिति अलग होती। सरकार की चुप्पी और प्रशासन की धीमी कार्रवाई यह दर्शाती है कि वे पर्यावरण संरक्षण और दलित अधिकारों को प्राथमिकता देने के बजाय केवल रस्म अदायगी कर रहे हैं।

अवैध कटान के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग

रमौल ने मीडिया के माध्यम से सरकार से अपील की है कि पर्यावरण और वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। उन्होंने कहा कि यह मामला केवल अवैध कटान का नहीं है, बल्कि यह दलित समुदाय के अधिकारों और उनकी सामाजिक सुरक्षा से भी जुड़ा है। यदि सरकार और प्रशासन समय रहते इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करते हैं, तो यह दलितों और अन्य कमजोर वर्गों के प्रति गंभीर अन्याय होगा।

नगर परिषद की सफाई: निशानदेही के बाद एफआईआर का आश्वासन

नगर परिषद नाहन के कार्यकारी अधिकारी संजय तोमर ने कहा कि मामले की निशानदेही के लिए राजस्व विभाग को लिखा गया है। निशानदेही के बाद एफआईआर दर्ज करवाई जाएगी। लेकिन रमौल ने इस सफाई को प्रशासन की ढिलाई करार देते हुए कहा कि जब तक सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक अवैध कटान करने वालों के हौसले बुलंद रहेंगे।

यह घटना इस बात का प्रमाण है कि दलित अधिकारों और पर्यावरण संरक्षण जैसे गंभीर मुद्दों को किस हद तक नजरअंदाज किया जा सकता है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस मामले में क्या कदम उठाती है और क्या दलित समुदाय को न्याय मिलता है।

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