स्वयम् सैनिक दल (एस. एस. डी.) नामक सामाजिक संगठन का उद्भव और विकास ऐसे दौर में हो रहा है, जब दलित राजनीति अपने सून्यकाल से गुजर रही है। जिस दौर में भारत की सारी शक्तियाँ ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी सरकार के हाथ की कठपुतली बन गयी है। एक ऐसा दौर जब सरकार और सरकार से संबन्धित विचारों, अस्थाओं, संस्थाओं और व्यक्तियों की आलोचना करना कानूनन जुर्म माना जा रहा है। एक ऐसा दौर जब सत्ता या सरकार का विरोध और उससे असहमति राष्ट्र द्रोह माना जा रहा है। यह काल है छ्द्म और उग्र राष्ट्रवाद का जब एस. एस. डी. जैसा संगठन का उद्भव और विकास गुजरात प्रांत से हो रहा है।
गुजरात प्रांत सिंधु सभ्यता के काल से ही सांस्कृतिक, राजनीतिक, व्यापारिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल रहा है। मध्यकाल में भी बहुत सारी ऐतिहासिक घटनाओ और युद्धों के कारण अपनी महत्ता बनाए रखा। इसी के साथ साथ आधुनिक काल में भी बहुत सारे स्वतन्त्रता सेनानियों और राष्ट्रीय नेताओं से कारण भी भारत की राष्ट्रीय राजनीति में अपना दबदबा बनाए हुये है। यहाँ तक कि 2014 के लोकसभा के आम चुनाव में गुजरात एक माडल प्रदेश के रूप में स्थापित किया गया। इसके इतर गुजरात को हिन्दुत्व के नर्सरी के रूप में जाना जाता है। जहाँ हिन्दू धर्म के प्रमुख संगठन राष्ट्रीय स्वंमसेवक संघ (आर.एस.एस.) बहुत बड़े स्तर पर प्रभावी है। गुजरात प्रांत न केवल मनुवाद बल्कि पूंजीवाद का भी गढ़ माना जाता है। ऐसे में ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी ताकत के खिलाफ़ एस. एस. डी. जैसे संगठन का उदय गुजरात में होना अपने आप में एक युगांतकारी घटना है। एस. एस. डी. जैसे संगठन का उदय होने में न केवल दौर बल्कि स्थान भी अति महत्वपूर्ण है। इसके कार्यकर्ताओं के समर्पण और संघर्ष का परिणाम है कि एस. एस. डी. अब भारत के दूसरे प्रान्तों जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी तेजी से अपने पैर पसार रहा है। इस संगठन की उपलब्धि यह है कि आने वाले 14 अप्रैल बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के जन्म जयंती पर गुजरात प्रांत के राजधानी गांधीनगर में एक विशाल सभा का आयोजन करने जा रहा।
एस. एस. डी. के कार्यकर्ताओ की माने तो उस सभा के दौरान लगभग चार से पाँच लाख लोग एकत्रित होंगे। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यह बाबासाहेब अंबेडकर के बाद अब तक का सबसे बड़ा धार्मिक परिवर्तन कार्यक्रम होगा।
लोग बहुत बड़ी संख्या में बौद्ध धम्म स्वीकार कर हिन्दू धर्म का परित्याग करेंगे और बौद्ध धम्म को ग्रहण करेंगे। इसके साथ साथ हजारों बसें, कारों और मोटर साइकल से एक विशाल जुलूश निकालेंगे और एक बड़ी सभा करेंगे।
एस. एस. डी. का भविष्य का प्लान भी तैयार है जैसे 14 अप्रैल 2024 में दिल्ली, 14 अप्रैल 2025 में कोलकाता, 14 अप्रैल 2026 में बैंगलोर, 14 अप्रैल 2027 में भोपाल और 14 अप्रैल 2028 में मुंबई में राष्ट्रीय अधिवेशन और इसबार की ही भाँति बड़ा कार्यक्रम करना।
क्या है स्वयम् सैनिक दल (एस. एस. डी.)
एस. एस. डी. एक स्वशासित संगठन है जो बिना किसी फंड या योगदान के बहुजन महानायकों की विचारधारा के लिए अनुशासित तरीके से गुजरात के लाखों लोगों को संगठित में लोगों के आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है। राजनीतिक गलियारों से दूर एस. एस. डी. सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई प्रतिदिन लड़ रहा है। जहाँ एक तरफ यह जाति आधारित शोषण के खिलाफ़ संघर्ष कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज को अंधविश्वास और आडंबर के प्रति जागरूक कर रहा है। इसके साथ साथ उपरोक्त शोषित समाज के नई पीढ़ी को बेहतर शिक्षा दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
बेरोजगार युवाओं को छोटे मोटे आय के अवसर दिलाने में भी मदद कर रहा है। इस तरह पिछड़े समाज में जन्मे महापुरुषों के आदर्शों को समाज में स्थापित कर समता मूलक समाज की नीव मजबूत कर रहा है। एस. एस. डी. के कार्यकर्ता प्रत्येक अवसर को अपने आंदोलन के लिए उपयोग करते हैं। चाहे किसी का जन्म दिवस या अंतिम संस्कार हो हर अवसर पर महापुरुषों और वीरांगनाओं के विचारों की चर्चा परिचर्चा करने लगते है। इसके साथ साथ मृत भोज, ब्राह्मणवादी संस्कार और पूजा पाठ इत्यादि के प्रति लोगों को तर्क और मानवता के आधार पर जागरूक करते हैं। जैसा कि मान्यवर कांशीराम ने कहा था ‘जिस समाज की गैर राजनीतिक जड़ें मजबूत नहीं होती उस समाज की राजनीतिक जड़ें मजबूत नहीं होती’। मान्यवर कांशीराम के इस विचार को गंभीरता को समझते हुये एस. एस. डी. के कार्यकर्ता राजनीतिक जड़ों को मजबूत करने के बजाय सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक जड़ों को मजबूत करने पर बल दे रहे हैं।
एस. एस. डी. की संरचना
प्रतिक्रियावादी आंदोलन के बजाय एस. एस. डी. का रचनात्मक और क्रियावादी आंदोलन पर ज्यादा बल देना महत्वपूर्ण विशेषता है। एस. एस. डी. के सांगठानिक संरचना की बात करें तो इसने अपने संगठन की संरचना को कोई मूर्त रूप नहीं दिया है, और न ही कोई पद निर्माण किया है। एस. एस. डी. का मानना है कि पद निर्माण से पदाधिकारी लालची हो जाते हैं, और आंदोलन को विरोधियों के हाथ में बेच देते है। बजाय पद निर्माण या संगठन को मूर्त रूप देने के ये लोग सभी कार्यकर्ता को एकसमान मानकर बराबर काम करते हैं।
कार्यक्रमों के दौरान सभी लोग चाहे वो अमीर हो या गरीब हो, बड़ा हो या छोटा हो सभी एक समान मानकर एक साथ मंच के सामने बैठते हैं। मंचों पर केवल महापुरुषों एवं वीरांगनाओं की तस्वीर होती है। किसी प्रकार का किसी भी कार्यकर्ता को स्पेशल सुविधा नहीं दी जाती। संगठन निर्माण के बजाय ये लोग समाज निर्माण पर बल दे रहे हैं। हालाँकि सांगठानिक ढाँचा न होने के तमाम सीमाएँ भी होती हैं। परन्तु आंदोलन के प्रति सच्ची निष्ठा, समर्पण और त्याग आने वाली समस्या का हल निकाल सकती है।
गतिविधियाँ
एस. एस. डी. मूलतः गुजरात प्रदेश में सन 2006 से शुरू होकर आज पड़ोसी प्रदेशों जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में अपने को स्थापित कर रहा है। एस. एस. डी. के कार्यकर्ताओं की माने तो यह गुजरात के दूर-दराज के गाँवों में घर-घर जाकर बहुजन महानायकों की विचारधारा को ले जाने वाले ईमानदार सैनिकों की एक सेना है। गुजरात में आज तक के बहुजन आंदोलन के इतिहास में एस. एस. डी. वह संस्था है जो बहुजन विचारधारा वाली महिलाओं को उनके अधिकारों और अधिकारों के लिए घर की चारदीवारी से बाहर लाने के लिए सबसे बड़ी संख्या में लाती है।
6 दिसंबर, 2019 को वडोदरा में डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के निर्वाण दिवस को सलामी देने के लिए अनुमानित 400 लग्जरी बसों, 500 कारों और 2000 से अधिक बाइकों के साथ भीम सैनिकों को पेश करके पूरे गुजरात को स्तब्ध कर देने वाली घटना, वर्षों की कड़ी मेहनत का परिणाम थी और योजना स्वयम् सैनिक दल (एस. एस. डी.) द्वारा बनाई गई थी। दो वर्ष तक कोरोना महामारी के कारण लोक व्यवस्था बनाये रखने के कारण कार्यक्रम स्थगित रहे।
लेकिन इस साल एसएसडी ने 6 दिसंबर को अपने जिला मुख्यालय पर प्रत्येक जिला इकाई द्वारा अभिनंदन का कार्यक्रम आयोजित किया। जिसमें लाखों लोगों ने भाग लिया और बहुजन महानायकों और उनकी विचारधारा के प्रति समर्पण दिखाया। एस. एस. डी. के प्रत्येक भीम सैनिक ने बहुत कम समय में इस कार्यक्रम को, आयोजित करने के लिए अथक प्रयास किया और इसके परिणामस्वरूप कार्यक्रम को जबरदस्त सफलता भी मिली। एस. एस. डी. के हर उस बहादुर सिपाही को सलाम जो बिना किसी अपेक्षा के हर कार्यक्रम को पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ भव्य रूप से आयोजित करता है।
इसका परिणाम आज पूरे गुजरात में देखने को मिला कि गुजरात के हर जिले में एस. एस. डी. द्वारा राज्य स्तरीय कार्यक्रम दिया गया जो एक दिन का प्रयास नहीं है, यह वर्ष का 365 दिन का प्रयास है स्वयम् सैनिक दल (एस. एस. डी.) केवल इसी दिन नहीं निकलता है 14 अप्रैल या 6 दिसंबर समाज को विचारधारा से अवगत कराने के लिए लगातार मेहनत करता है। आज भी स्वयम् सैनिक दल का एक-एक सिपाही गुजरात के गाँवों को खंगाल रहा है और तब तक गुजरात के गाँवों को छानता रहेगा जब तक बहुजन विचारधारा गुजरात के 18,000 गाँवों के घर-घर तक नहीं पहुँच जाती।
लेखक- डॉ. हवलदार भारती,
असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. बी. आर. अंबेडकर राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय
सोनीपत हरियाणा।
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