हाथरस कांड में दलित युवती के साथ दुष्कर्म और हत्या के चार साल बाद भी पीड़ित परिवार न्याय के लिए संघर्षरत है। प्रशासन पर बिना अनुमति रात में अंतिम संस्कार करने का आरोप है। राहुल गांधी ने परिवार से मुलाकात कर वीडियो साझा किया और सरकार पर हमला बोला, लेकिन कांग्रेस और बीजेपी दोनों की दलितों के प्रति नीतियों पर सवाल उठे। यह मामला राजनीति और न्याय व्यवस्था की विफलता का प्रतीक बन चुका है।
UP News: हाथरस का चंदपा गांव एक ऐसी घटना का गवाह बना जिसने न केवल दलित समाज को झकझोरा, बल्कि पूरे देश की न्याय व्यवस्था और सामाजिक संरचना पर सवाल खड़े कर दिए। 14 सितंबर 2020 को 19 वर्षीय दलित युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया। 28 दिनों तक पीड़िता अस्पताल में जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करती रही और आखिरकार उसने दम तोड़ दिया। परिवार का आरोप है कि प्रशासन ने दबाव बनाकर बिना उनकी अनुमति के रातों-रात पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया।
चार साल बाद भी यह परिवार न्याय के लिए संघर्षरत है। पीड़िता की मां कहती हैं, “अगर मेरी बेटी जिंदा होती, तो मैं उसकी शादी कर देती। सरकार ने हमें नौकरी और घर देने का वादा किया था, लेकिन हमें जेल जैसी जिंदगी जीने पर मजबूर कर दिया गया।” यह परिवार आज भी न्याय की आस में हर दरवाजा खटखटा रहा है, लेकिन उन्हें सिर्फ सियासी बयानबाज़ियों का सामना करना पड़ा है।
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राहुल गांधी की पीड़ित परिवार से मुलाकात और राजनीति के मायने
चार साल बाद, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पीड़िता के परिवार से मुलाकात की और उनका दर्द साझा किया। इस मुलाकात का वीडियो उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर साझा किया। उन्होंने लिखा, “हाथरस रेप पीड़िता के परिवार के हताशा से भरे एक-एक शब्द को सुनिए। यह परिवार आज भी दहशत में है। दलितों को न्याय मिलना बेहद मुश्किल हो गया है। हम इनके साथ हैं। इनके घर का रिलोकेशन करेंगे और हर संभव सहायता देंगे।”
राहुल गांधी ने इस मामले को लोकसभा में भी उठाया और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर तीखे आरोप लगाए। उन्होंने कहा, “यूपी में कानून-व्यवस्था का यह हाल है कि एक दलित परिवार को न्याय भी नहीं मिल सकता। सरकार ने न केवल परिवार की आवाज दबाई, बल्कि उन्हें धमकाया भी।” लेकिन सवाल उठता है कि क्या इस तरह के बयान और वीडियो साझा करने भर से दलितों को न्याय मिल जाएगा?
कांग्रेस के लिए असुविधाजनक सवाल
राहुल गांधी का यह कदम दलितों के साथ सहानुभूति दिखाने का प्रयास हो सकता है, लेकिन यह सवाल उठता है कि जब कांग्रेस सत्ता में थी, तब दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों पर क्या ठोस कदम उठाए गए? एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस के शासनकाल में भी दलितों के खिलाफ अपराधों की संख्या कम नहीं थी।
https://x.com/RahulGandhi/status/1868861170532467012?t=84itldGT3B5bfi0a62iP7A&s=19
राहुल गांधी का दलितों के अधिकारों की लड़ाई में सक्रिय होना महत्वपूर्ण है, लेकिन यह केवल तब तक असरदार होगा जब कांग्रेस अपने पुराने रिकॉर्ड पर आत्ममंथन करे। क्या यह सिर्फ राजनीति का हिस्सा है, या वाकई दलित समाज को न्याय दिलाने के लिए कांग्रेस कोई ठोस योजना लेकर आएगी?
बीजेपी सरकार की जवाबदेही
उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार भी इस मामले में सवालों के घेरे में है। हाथरस कांड के दौरान प्रशासन ने पीड़िता के परिवार को न्याय दिलाने के बजाय दबाव बनाने की कोशिश की। रातों-रात अंतिम संस्कार करना, मीडिया कवरेज पर रोक लगाना, और परिवार को अलग-थलग करना यह साबित करता है कि सरकार ने इस मुद्दे को संवेदनशीलता से नहीं लिया।
योगी आदित्यनाथ की सरकार ने मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया, लेकिन चार साल बाद भी दोषियों को सजा नहीं मिली। यह सवाल खड़ा करता है कि बीजेपी, जो “सबका साथ, सबका विकास” का नारा देती है, दलितों के न्याय के प्रति इतनी उदासीन क्यों है?
दलितों की पीड़ा और राजनीति का पाखंड
हाथरस कांड केवल एक घटना नहीं है, यह भारत में दलित समाज के साथ हो रहे अन्याय की तस्वीर है। दलितों को न्याय दिलाने की राह में केवल प्रशासनिक लापरवाही ही नहीं, बल्कि सियासी पाखंड भी बड़ी बाधा है। राहुल गांधी का हाथरस जाना और वीडियो साझा करना दलितों के प्रति सहानुभूति दिखाने का प्रयास हो सकता है, लेकिन यह घटना कांग्रेस और बीजेपी दोनों की विफलताओं को उजागर करती है।
कांग्रेस सत्ता में रहते हुए दलितों के लिए क्या ठोस कदम उठाती, यह सवाल उठाना जरूरी है। वहीं, बीजेपी सरकार जो खुद को हिंदुत्व की रक्षक मानती है, वह भी दलित समाज को न्याय दिलाने में नाकाम रही है।
क्या न्याय मिलेगा?
चार साल बाद भी हाथरस कांड का परिवार न्याय के लिए संघर्षरत है। यह घटना केवल दलित समाज के लिए न्याय की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह भारत की न्याय व्यवस्था और राजनीति के लिए एक कड़वा सच है। सवाल यह है कि क्या इस घटना के दोषियों को सजा मिलेगी, या यह केवल राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोप में दबकर रह जाएगी?
दलितों को न्याय दिलाने की लड़ाई केवल सरकारों की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज का कर्तव्य है। जब तक इस देश में जातिगत भेदभाव और सत्ता का पाखंड खत्म नहीं होगा, तब तक न्याय एक सपना ही बना रहेगा।
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