संदेशखाली कांड के मास्टरमाइंड TMC नेता शाहजहां शेख पर जाधवपुर विश्वविद्यालय के दलित प्रोफ़ेसर ने किए चौंकाने वाले खुलासे

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पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में हुई हिंसा की जांच अब सीबीआई कर रही है। पिछले कई दिनों से बेखौफ बने दलित—आदिवासी महिलाओं के साथ यौन हिंसा करने वाले इस आरोपी टीएमसी नेता पर केंद्रीय जांच एसेंजी ने आरोपी शाहजहां शेख पर धीरे-धीरे शिकंजा कसना भी शुरू कर दिया है। भारी दबाव के बाद तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने शाहजहां शेख को पार्टी से निलंबित किया, जिसके बाद उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर में सीबीआई ने हत्या की कोशिश की धारा भी जोड़ी। फिलहाल शाहजहां शेख सीबीआई कस्टडी में है, जहां उससे संदेशखाली हिंसा से जुड़े मामले में पूछताछ की जा रही है। इस मामले में जब बड़ी संख्या में पीड़ित दलित—आदिवासी महिलाएं सड़कों पर उतरीं, तब कहीं जाकर उच्च न्यायालय ने इस ओर ध्यान दिया है संदेशखाली में आतंक का पर्याय मच चुके शाहजहां शेखर मामले पर वरिष्ठ पत्रकार अजय प्रकाश ने जाधवपुर विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर सुभाजीत नास्कर से बातचीत की तो उन्होंने कई चौंकाने वाले खुलासे किये….

संदेशखाली में जो गिरफ्तारी हुई है और गिरफ्तारी में जो किस्सा बताया जा रहा है कि यह भाजपा बनाम टीएमसी का मामला है और ये एक राजनीतिक खेल है, क्या यह सिर्फ इतना भर है या इसका सच कुछ और भी है ?

आपने जैसा कहा कि बहुत दिनों से संदेशखाली का मुद्दा चला आ रहा है और फिर हाईकोर्ट ने नोटिस लिया और लगभग पूरे देश ने नोटिस लिया और इसके बाद बंगाल की सरकार की शुरुआत में संदेशखाली कांड पर धारणा रही है। मैंने “द प्रिंट” में एक लेख लिखा है और इसमें मुझे लगा कि संदेशखाली जो गांव है, इसका पूरा एरिया एक नॉर्थ 24 परगना पश्चिम बंगाल का पूरा डिस्ट्रिक्ट है। बांग्लादेश के नॉर्थ 24 परगना को बंग्लादेश का ट्रांस बॉर्डर डिस्ट्रिक्ट कहा जाता है और इसका बहुत बड़ा बॉर्डर बांग्लादेश के साथ लगा हुआ है। आप जानते हैं कि बांगलादेश के साथ हमारा बॉर्डर को लेकर एक बहुत बड़ा मुद्दा चला आ रहा है और नॉर्थ 24 परगना का एरिया काफी डाइवर्स है और खासकर ये एरिया बांग्लादेश में घुसने का गेटवे है। ओन वे भी बांग्लादेश में  कस्टम का लीगल तरीके से ट्रांसेक्शन होता है, लेकिन बहुत बार यह मुद्दा भी सामने आया कि गैरकानूनी तरीके से भी ट्रांसेक्शन होता रहा है। इसके अलावा यहां पर भ्रष्टाचार का मुद्दा काफी चर्चा में है जैसे गौ तस्करी है, लेकिन संदेशखाली का मुद्दा काफी दिनों से चला आ रहा है और मैं बहुत पॉइंटेड वे में देख रहा था कि कहीं न कहीं संदेशखाली के केंद्र में जो तबके हैं वो हैं दलित और आदिवासी हैं।

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ये मेरी कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं है अगर आप 2011 का आंकड़ा देखेंगे तो उसमें बताया गया है कि 35% के आसपास अनुसूचित जाति (SC) की संख्या है और 20 % से ज़्यादा आदिवासी की संख्या है। इस एरिया में विधानसभा भी है, लेकिन यहां पर दूसरी उच्च जातियों की संख्या बहुत कम है. यहां पर उच्च जाति की संख्या ना के बराबर है जिनकी संख्या ज़्यादा से ज़्यादा 3% है। मुस्लिम की 15% से ज़्यादा संख्या है तो इसमें समस्या ये है कि जिन गांवों से संदेशखाली, जेलियाखाली, धामाखाली इन तमाम जगह से जब गूंज उठने लगी जैसे सेक्सुअल टॉर्चर और जमीन हथियाना और आदिवासियों की जमीन को हथियाना और फिर रात को टीएमसी ऑफिस पार्टी में महिलाओं को बुलाना और रातभर टीएमसी की ऑफिस पार्टी में रखना इस तरह के आरोप सामने आए हैं, जो काफी चौंकाने वाले हैं।

आपने कहा है कि आबादी का 55% हिस्सा दलित और आदिवासी हैं और सवर्ण जातियां 3% हैं और उसके बाद सबसे बड़ा तीसरा काउंटर पार्ट है वो मुस्लिम आबादी का। तो ज़ाहिर तौर पर सेक्सुअल टॉर्चर हो जमीन हथियाना हो या दूसरी तरह की गुंडागर्दी हो और आपका कहना है कि दलित और आदिवासी समाज पर भी होता रहा है और इसका क्या भागीदार मुस्लिम समाज के बड़ी संख्या में लोग है या उसी का एक नाम शेख शाहजहां है या एक इकलौता गुंडा है, क्योंकि देश अब तक ये जान नहीं पाया है कि यह अपराध दलितों और आदिवासियों पर हुआ है आखिर मसला क्या है?

बंगाल का हमेशा प्रचार किया जाता है कि यहां पर कोई कास्ट नहीं है और इसे कास्टलेस बंगाल कहा जाता है। बंगाल में तीन केंद्रित अपर कास्ट समुदाय हैं ब्राह्मण, कायस्थ और वैद्य हैं जो काफी ताकतवर हैं।  इनके प्रभाव को छिपाने के लिए ही बंगाल को कास्टलेस का दर्ज़ा दिया गया है। संदेशखाली में बंगाली मीडिया में हर दिन हमने देखा है और दूसरे चैनलों में भी पैनलिस्ट मैं रहा हूँ और वहां पर मैंने कुछ ग्राउंड रिपोटर्स से बात की तो मैंने उनसे पूछा कि इन लोगों का टाइटल क्या है? कौन सी कास्ट के हैं? तो वो लोग अपनी कास्ट नहीं बताएंगे, लेकिन हमें उनके टाइटल से पता चल गया था कि ये लोग हैं क्या? उनका कहना है कि ये नास्कर है जो मेरी अपनी कम्युनिटी है और मुंडा है जो आदिवासी हैं और बंगाल की सरकार के खिलाफ हमेशा आरोप लगते रहते हैं कि यहां पर भ्रष्टाचार का सिंडिकेट सा बन गया है। बंगाल का मिनिस्टर भी ईडी और सीबीआई के बहुत से मामलों में जेल में बंद है।

आपको मैं बैकग्राउंड बता दूँ ये जो शेख शाहजहां है ये उस एरिया को लीड करता था और इस पर 40 मुकदमे हैं और शेख शाहजहां के जो एसोसिएट हैं जिन्हें अंग्रेजी में हिंज मैन कहा जाता है उत्तम सरदार और शिबू सरदार और इनका लीडर डिस्ट्रिक्ट लेवल का शेख शाहजहां है। यहां पर पहले और भी अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है, जो इन्हीं के सेटअप का जिसका नाम कुछ गाज़ी करके है, ये इनके ऑर्डर से चलता था। टीवी चैनल पर भी बहुत सारी महिलाएं ये बताती हैं कि जब भी उनके साथ कोई टॉर्चर दिक्कतें होती हैं तो इसे लेकर शिकायत के लिए थाने पर जाते थे तो थाने वाले कहते थे कि पहले परमिशन लेकर आओ। ये कोई नई बात नहीं है, ये टीएमसी से शुरु नहीं हुआ इसकी कहीं न कहीं शुरुआत कम्युनिस्टों के टाइम से चली आ रही है। ग्राम पंचायत जो होता है ग्रामसभा होता है इस स्ट्रक्चर को जिसको बाबा साहेब अंबेडकर ने  खुद अपोज किया था और इस स्ट्रक्चर को बहुत जबरदस्त तरीके से इस्तेमाल किया था।

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गांव में पकड़ कायम रखने के लिए शाहजहां शेख एक आतंक की तरह फैला। गांव में कोई समस्या होने पर लोकल कमेटी के लोग पहुंच जाएंगे और वो बिल्कुल बेढंगे तरीके से केस सुलझाते थे, जो बिल्कुल गलत तरीका है। ज़ाहिर सी बात है वो जिस तरह से समस्या को सुलझाते हैं वो कोई संवैधानिक तरीका नहीं है। शेख शाहजहां का चाचा सीपीएम का पंचायत प्रधान था और इसका राइट हैंड हुआ करता था। शेख शाहजहां 2011 के आसपास या उससे पहले से ही तृणमूल की तरफ बढ़ने लगा क्योंकि सीपीएम कमज़ोर होने लगी। सिंगूर और नंदीग्राम के बाद इनका पूरा तबका टीएमसी में सेट हो गया है। इसी तरह टीएमसी भी कहीं ना कहीं गांव का सीपीएम का मॉडल है, उसी टेंम्पलेट के हिसाब से बनता रहा और टीएमसी को कभी दिक्कत नहीं हुई, क्योंकि इन्हें वोट मिलते रहे इलेक्शन जीत रहे हैं और पार्टी के लिए इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में जीत आना ही बहुत ज़रुरी है चाहे लोगों का कहीं कुछ भी हो। उससे कोई बहुत ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता है, इंडियन डेमोक्रेसी का वही हाल देखने को मिल रहा है।

क्या इसका सिंगूर नंदीग्राम जैसा असर सीपीएम पर हुआ था, कहा ये जा रहा है कि यह गलती ममता बनर्जी कर चुकी हैं। पूरे बंगाल में आदिवासी और दलितों का एक बड़ा वोट बैंक है तो इसका क्या अंतत: नुकसान बड़े स्तर पर टीएमसी को होता दिखाई दे रहा है नंदीग्राम और सिंगूर जैसा या वैसा कोई असर नहीं है ?

मुझे लगता है कि संदेशखाली का मामला और ज्यादा गंभीर है, क्योंकि संदेशखाली में कहीं ना कहीं महिलाओं पर टॉर्चर हुआ है। ये टॉर्चर इतना ज्यादा हुआ है कि जिसके बारे में सिर्फ कल्पना की जा सकती है। एरिया की सबसे खूबसूरत महिलाओं का चुनाव होता था और फिर उन्हें पार्टी ऑफिस में बुलाया जाता था। उन्हें रात रातभर पार्टी ऑफिस में रखा जाता था। जब ये मामला मीडिया में आया तो हाईकोर्ट ने इस चीज का नोटिस लिया। सिंगूर नंदीग्राम में सिर्फ जमीन हथियाने का मसला था, लेकिन संदेशखाली में महिलाओँ के साथ सेक्सुअली टॉर्चर चलता रहा।

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मान लीजिए अगर ये कम्युनिटी सवर्णों की होती या अन्य पिछड़ी ताकतवर जातियों की होती तो शेख शाहजहां जैसे लोग और उनके गुर्गे जो एक पार्टी के दफ्तर को कोठा बना चुके थे, वो क्या ऐसा कर पाने साहस करते अगर पीड़ित दलित और आदिवासी समाज की महिलायें नहीं होतीं?

ये एक बहुत बड़ा सवाल है। अर्बन एरिया में 2011 का कोलकाता का जो आंकड़ा है, जैसे पूरे एरिया में दलित आदिवासियों की राज्यस्तर पर पॉपुलेशन है, वह कहीं ना कहीं शहरों में गायब है। कोलकाता में सवर्ण जातियां हैं। बड़े बड़े अपार्टमेंट हैं। वहां पर ज्यादातर सवर्ण पाए जायेंगे। ब्राह्मण बंगाली हैं और यहां पर इनका अपना सेटअप चलता है। यहां पर पूरा आधुनिक भारत है।गांवों को जिस अंधकार में रखा गया है इसलिए वहां पर 144 धारा बार बार लगाई गई।,लेकिन कोलकाता में अर्बन अपर कास्ट लोग रहते हैं और कोलकाता का इंफ्रास्ट्रक्चर पूरी दुनिया जानती है कि किस तरह से एक जबर्दस्त इनफ्रास्ट्रक्चर बनाकर रखा है। संदेशखाली का इंफ्रास्ट्रक्चर देखिए यहां पर पानी की दिक्कत है, सड़क ठीक नहीं है, झोपड़ी है, लोगों के पास अब तक पक्का घर भी नहीं है, लेकिन बंगाल के कोलकाता को देखकर आपको पता चलेगा कि बंगाल न हो जैसे अमेरिका है या न्यूयॉर्क-वाशिंगटन है। यह एरिया वही है और भेदभाव कास्ट के हिसाब से होता है। इस वजह से सरकार का रिस्पांस संदेशखाली को लेकर बहुत खराब रहा है।

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ममता बनर्जी जो कि खुद एक महिला चीफ मिनिस्टर है उनका खुद का रिस्पांस जो है वो बहुत शर्मनाक रहा है और वह अब तक संदेशखाली में पहुंच भी नहीं सकी। बंगाल में करप्शन एक बहुत बड़ा मुद्दा बन चुका है। प्रधानमंत्री खुद दौरे पर है, लेकिन राज्य सरकार का रिस्पांस बहुत खराब रहा है। ये एक सामजिक प्रॉब्लम है इसका पुलिस कार्यवाई कोई सोल्यूशन नहीं है। प्रॉब्लम सामाजिक होता है और सामाजिक और राजनीतिक तौर पर उसका सोल्यूशन निकालना चाहिए ना कि पुलिस को आगे बढ़ाकर कोई सोल्यूशन हो सकता है। अगर संदेशखाली के मुद्दें की गुंज कोलकाता में गूंजने लगे तो ऐसे में उनका अपर कास्ट का प्रभाव खतरें में आ जाएगा।

संदेशखाली के पक्ष में कोलकाता में महिला संगठनों ने या दूसरे संगठनों ने कोई प्रदर्शन नहीं किया ?

मुझे लगता है कि मैं अकेले ही इस मुद्दे को उठा रहा हूं और कहीं न कहीं मेरे लिखने के बाद भी यह एक नेशनल मुद्दा बना। मैंने डाटा के साथ दिया कि पंचायत लेवल पर कैसे इस तरह का माहौल बन चुका है। बताया समाज में शाहजहां मॉडल कैसे काम कर रहा है। समाज को ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता है अगर अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) महिलाओं के साथ अन्याय हो। मेरी अपनी यूनिवर्सिटी जो बहुत लिबरल प्रोग्रेसिव कही जाती है वहां पर भी मैंने देखा कि लोगों ने ऐसे लिया जैसे कुछ छोटा मोटा हुआ है। वो भी वर्किंग क्लास के नैरेटिव से दलित आदिवासी का नाम लेना नहीं चाहते। इनके लिए बहुत ज्यादा पेटदर्द बन गया है कि दलित आदिवासी का नाम हम नहीं लेंगे, इसे हम वर्किंग क्लास के तरह देखेंगे।

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समाज का सवाल अंतत: राजनीति से जुड़ा होता है और जब यह राजनीति का सवाल बन जाता है तो उसको प्रशासन दुरुस्त करता है, आपको क्या लगता है कि संदेशखाली में अब जो बीजेपी बनाम टीएमसी हो गया है, अगर कल को बीजेपी यहां सत्ता में आती है या ताकतपूर्वक आती है तो क्या वो टीएमसी से बेहतर रोल अदा करेगी?

मुझे नहीं लगता कि बीजेपी बंगाल के स्ट्रक्चर को ध्वस्त कर पायेगी। इस तरह का ढांचा इलेक्टोरल बेनिफिट दे रहा है और इसकी वजह से मुझे नहीं लगता कि गांव में जो जातिवाद है कम्युनलिज्म है या सड़क, पानी को लेकर जो पिछड़ापन है इसके लिए बीजेपी बहुत ज्यादा कर पाएगी या नहीं, मुझे तो इस पर बहुत ज्यादा संदेह है। जिस तरह से प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी बाहर जाकर दो दिन रुकते हैं, लेकिन यहां आकर वह दो दिन रुके। इससे पता चलता है कि प्राइम मिनिस्टर और बीजेपी कितना सीरियस हैं बंगाल में कहीं ना कहीं टेकओवर करने के लिए। तृणमूल कांग्रेस भी काफी प्रेशर में है और वह भी अपने राजनीतिक लाभ नहीं छोड़ना चाहती है। वेट एंड वॉच टाइप का सवाल है। पता नहीं कौन आ सकता है, मुझे नहीं लगता है कि बीजेपी का नैरेटिव स्ट्रांग बन रहा है। जैसे पहले ममता बनर्जी ने माहौल बनाना शुरू किया था सीपीएम के खिलाफ, अब इस तरह ले बीजेपी ने भी शुरु कर दिया है, क्योंकि रुरल एरिया में काफी एक्सपोजर मिल रहा है, क्योंकि ये शाहजहां मॉडल के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।

(ट्रांस्क्रिप्शन : उषा परेवा)

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