PHULE:  The man With the Mission  फिल्म को देखना क्यों जरूरी है ?

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ब्राह्मण महासभा और सेंसर बोर्ड ने फिल्म पर आपत्ति जताई थी. दोनों ने फिल्म पर ये आरोप लगाया कि ये इस फिल्म में कुछ सीन और डायलॉग ऐसे है जो जातिवाद को बढ़ावा देते हैं। इतना ही नहीं अब इस फिल्म को लेकर ब्राह्मण रक्षा मंच जैसे दल बैन करने की मांग भी कर रहे हैं। 

 

Phule Controvarsy: महात्मा ज्योतिबा फुले एक ऐसा महान व्यक्तित्व जिन्होंने 19वीं शताब्दी में भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, अंधविश्वास और लिंग भेदभाव के खिलाफ एक क्रांतिकारी आंदोलन शुरू किया। उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले ने भी इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज के समय में, जब हम सामाजिक न्याय और समानता की बात करते हैं, तो महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले का संघर्ष और उनकी उपलब्धियां हमें प्रेरित करती हैं।

इसी कहानी पर बॉलिवुड में एक फिल्म बनी है PHULE:  The man With the Mission. इस फिल्म में ज्योतिबा फुले का किरदार निभाया है प्रतीक गांधी ने और सावित्री बाई फुले का किरदार निभाया है पत्रलेखा ने। फिल्म में और भी अन्य कलाकार है जैसे सुशील पांडे जिन्होंने ज्योतिबा फुले के पिता गोविंद राव का किरदार निभाया है। बीते कुछ दिनों से इस फिल्म को लेकर लगातार विवाद चल रहा है। ब्राह्मण महासभा और सेंसर बोर्ड ने फिल्म पर आपत्ति जताई थी. दोनों ने फिल्म पर ये आरोप लगाया कि ये इस फिल्म में कुछ सीन और डायलॉग ऐसे है जो जातिवाद को बढ़ावा देते हैं। इतना ही नहीं अब इस फिल्म को लेकर ब्राह्मण रक्षा मंच जैसे दल बैन करने की मांग भी कर रहे हैं।

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लेकिन आज हम इस विवाद पर बात नहीं करेंगे…हम बात करेंगे कि लगातार हो रहे विरोध के बाद भी आप लोगों को ये फिल्म क्यों देखनी चाहिए। बता दूं कि इस पूरे विवाद पर हम पहले भी वीडियो बना चुके हैं जो हमारे चैनल पर मौजूद है।

महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 में महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव में माली जाति में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद समाज में व्याप्त जातिवाद और अंधविश्वास के खिलाफ लड़ने का फैसला किया। उन्होंने देखा कि समाज में निम्न जातियों के लोगों को शिक्षा से वंचित रखा जा रहा था, और महिलाओं को भी शिक्षा का अधिकार नहीं था। इस स्थिति को बदलने के लिए उन्होंने लड़कियों के लिए स्कूल खोले और निम्न जातियों के लोगों को शिक्षा प्रदान करने के लिए काम किया। इस काम में उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले ने एक सच्चे साथी के तौर पर अपने पति का साथ दिया।

ज्योतिबा फुले के इस आंदोलन में सावित्री बाई ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपने पति के साथ बदलाव की दिशा में कंधे से कंधा मिला कर चली। उन्होंने न केवल अपने पति का समर्थन किया, बल्कि खुद भी लड़कियों की शिक्षा के लिए काम किया। वह भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं और उन्होंने लड़कियों के लिए स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। सावित्रीबाई फुले का संघर्ष भी आसान नहीं था, उन्हें समाज के विरोध का सामना करना पड़ा। जब वह पढ़ाने के लिए पाठशाला जाती थी तो उन पर ब्राह्मणों द्वारा पत्थर और कीचड़ फेंका जाता था. यह सब इसलिए किया जाता था ताकि सावित्री बाई के मन में डर बैठ जाए और वो पाठशाला में जाना और पढ़ाना दोनो छोड़ दें. लेकिन फुले दंपत्ति कहाँ हार मानने वाला था। उन्होंने महिलाओं और शूद्रों को राज़ी किया कि अपने बच्चों को उनके पास पढ़ने भेजे. उन्होंने लोगों को इस बात को लिए जागरूक किया कि शिक्षा से ही उनके अंदर तर्क करने की क्षमता आएगी. वो गलत को गलत कह पाएंगा और अपना शोषण होने से बचा पाएगा।

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ज्योतिबा फुले की सबसे प्रसिद्ध किताब गुलामगिरी जो कि बातचीत के फॉर्मेट में लिखी गई है। उसमें ज्योतिबा फुले ने महात्मा ज्योतिबा भारतीय समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था और सामाजिक अन्याय के बारे में लिखा है। इस पुस्तक में उन्होंने दलितों और निम्न जातियों के लोगों के साथ होने वाले भेदभाव और उत्पीड़न के बारे में विस्तार से चर्चा की है। इस किताब में उन्होंने जाति व्यवस्था की जमकर आलोचना, दलितों के अधिकारों की मांग और सामाजिक सुधार की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।

साल 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में महात्मा ज्योतिबा फुले ने दलित लड़कियों के लिए भारत का पहला स्कूल खोला था। ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने इस स्कूल के माध्यम से लड़कियों को शिक्षा प्रदान करने और समाज में उनकी स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया। यह एक क्रांतिकारी कदम था जिसने समाज में एक नए युग की शुरुआत की। इसके अलावा विधवा विवाह को शूरूआत भी फुले दंपत्ति के क्रांतिकारी कामों में से एक था।

24 सितंबर 1873 को पुणे में ही सामाजिक सुधार और जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए महात्मा ज्योतिबा फुले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की। इस समाज का उद्देश्य :

  • निम्न जातियों और दलित वर्ग के लोगों को शिक्षा प्रदान करना।,
  • जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ना और सामाजिक समानता को बढ़ावा देना।
  • अंधविश्वास और रूढ़िवाद के खिलाफ लड़ना और तर्कसंगत सोच को बढ़ावा देना था

सत्यशोधक समाज ने समाज में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए और सामाजिक सुधार के लिए काम किया। यह संगठन महात्मा ज्योतिबा फुले के सामाजिक सुधार के प्रयासों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।

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महात्मा ज्योतिबा फुले पर कई किताबें लिखी गयी है। मराठी भाषा में तो फुले दंपत्ति पर कई नाटक और फिल्में बनाई गयी हैं। जवाहर लाल नेहरू के किताब भारत एक खोज पर आधारित दूरदर्शन पर पूरी एक सीरीज चलाई गई थी। जिसने फुले का नाम घर घर तक पहुंचाया था। लेकिन अगर हिंदी भाषा में बनी इस फिल्म “फुले : दी मैन विथ दी मिशन” की करें तो ये फुले दंपत्ति पर बनी पहली फिल्म है। हालांकि इस फिल्म को लेकर लगातार विवाद है. फिल्म को बैन करने तक की मांग उठ खड़ी हुई है लेकिन ऐसी फिल्में बनती रहनी चाहिए क्योंकि इतिहास को बड़े पर्दे पर देखने के लिए लोग उत्साहित रहते हैं.

महात्मा ज्योतिबा फुले पर बनी ये फिल्म एक आवश्यक दृष्टिकोण है जो लोगों को उनके जीवन और कार्यों के बारे में बताएगी और उन्हें प्रेरित करेगी। यह फिल्म सामाजिक न्याय और समानता के महत्व के बारे में बताएगी और लोगों को अपने समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित करेगी। हमें इस फिल्म को देखना चाहिए और महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के संघर्ष और उनकी उपलब्धियों से प्रेरणा लेनी चाहिए। इतिहास से जुड़ी इस बेहतरीन फिल्म को आप जरूर देखें और अपने परिवार और दोस्तो को भी जरूर दिखाएं..।

 

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