आज़ादी के वक्त देश में जो खाद्यान का उत्पादन 50 मिलियन टन था, अब बढ़कर 325 मिलियन टन हो गया है। इसके बावजूद पोषण सुरक्षा की चुनौती हमारे सामने खड़ी है, क्योंकि कृषि उत्पादों की गुणवत्ता घट रही है, अधिकांश अनाजों, दालों और फलों-सब्जियों में प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा कम हो रही है, जबकि वसा की मात्रा बढ़ रही है….
Malnutrition problem in India : भारत सरकार के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम मोहंती ने कहा कि अगर जमीन में किसी भी माइक्रो न्यूट्रिएंट की कमी है तो उसका असर कृषि उपज पर भी पड़ेगा, इसलिए रासायनिक उर्वरकों का संतुलित इस्तेमाल करें। आप जहां खेती करते हैं उस खेत में जिस चीज की कमी है केवल उसे ही डालिए। यह भी ध्यान रखने की बात है कि हर तरह की मिट्टी में एक ही तरह का ट्रीटमेंट काम नहीं करता, मिट्टी किस प्रकार की है उसके हिसाब से उसका ट्रीटमेंट होना चाहिए।
शरीर में क्यों हो रही है आयरन की कमी
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योरशिप एंड मैनेजमेंट (NIFTEM) की प्रोफेसर दीप्ति गुलाटी कहती हैं कि देश के 67 फीसदी बच्चों और 57 फीसदी महिलाओं में खून की कमी है, क्योंकि हमारे भोजन में आयरन की कमी है।
खून की कमी या एनिमिया की समस्या भारत (anemia in Indian population) में कितनी गम्भीर है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत में 5 वर्ष से छोटे बच्चों में से लगभग 67 फीसदी बच्चे एनिमिक हैं। पांचवे नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (5th round of National Family Health Survey) में जो आंकड़े सामने आए हैं उनके अनुसार देश में 5 वर्ष से छोटे बच्चे, किशोर में लड़के-लड़कियों और गर्भवती महिलाओं में एनिमिया के मामले सबसे अधिक पाए गए हैं। ये सभी आयु वर्ग एनिमिया से सबसे अधिक प्रभावित पाए गए हैं। इस सर्वे रिपोर्ट के नुसार, 6-59 महीने के आयुवर्ग के 67 प्रतिशत बच्चे एनिमिया से पीड़ित हैं। वहीं, साल 2015-16 में कराए गए पिछले सर्वे में यह आंकडा 58.6 % था। 57 प्रतिशत महिलाओं को एनिमिया से पीड़ित बताया गया जबकि, साल 2015-16 में 53 प्रतिशत महिलाएं एनिमिक पायी गयीं थीं। वहीं, वयस्कों की बात की जाए 15-49 आयुवर्ग के 25 प्रतिशत पुरुषों में एनिमिया की स्थिति देखी गयी।
मिट्टी में जिंक और सल्फर की भारी कमी
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय में भारत जैसे कृषि प्रधान देश में भी उर्वरकों का संतुलित इस्तेमाल नहीं हो रहा है। रासायनिक खादों के इस्तेमाल के असंतुलन ने जमीन में पोषक तत्वों की कमी कर दी है। इस समय देश की 40 फीसदी मिट्टी में जिंक की कमी है, जबकि 80 फीसदी मिट्टी में सल्फर की कमी है। इस समय देश में सालाना 12 से 13 लाख टन जिंक की आवश्यकता है, जबकि 2 लाख टन का ही इस्तेमाल हो रहा है। इसकी जगह पर नाइट्रोजन का इस्तेमाल ज्यादा हो रहा है।
कृषि उपज में कम हो रहे सूक्ष्म पोषक तत्व
आज़ादी के वक्त देश में जो खाद्यान का उत्पादन 50 मिलियन टन था, अब बढ़कर 325 मिलियन टन हो गया है। इसके बावजूद पोषण सुरक्षा की चुनौती हमारे सामने खड़ी है, क्योंकि कृषि उत्पादों की गुणवत्ता घट रही है। अधिकांश अनाजों, दालों और फलों-सब्जियों में प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा कम हो रही है, जबकि वसा की मात्रा बढ़ रही है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से होने वाली हानि भारत की जीडीपी का एक फीसदी है। किसान नाइट्रोजन और फास्फोरस का ही अधिक इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि इसी पर सब्सिडी है। खाद इस्तेमाल के इस पैटर्न को बदलने की जरूरत है।
यूरिया के अंधाधुंध इस्तेमाल से बढ़ी दिक्कतें
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरएस बाना कहते हैं कि खेती को 17 पोषक तत्वों की जरूरत होती है, लेकिन दुर्भाग्य से हम नाइट्रोजन और फास्फोरस का ही इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। इससे उत्पादन पर बुरा असर पड़ रहा है। किसानों को जब भी उत्पादन कम लगता है तो वो खेती में और नाइट्रोजन यानी यूरिया झोंक देते हैं। एक तरह से जमीन को यूरिया का नशा दिया है।
एमएसपी कमेटी और क्रॉप डायवर्सिफिकेशन कमेटी का मानना है कि खेती में सिर्फ नाइट्रोजन और फास्फोरस डालने से फसलों की उत्पादकता कम हुई है। स्वायल हेल्थ, प्लांट हेल्थ, एनिमल हेल्थ और ह्यूमन हेल्थ सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, इसलिए क्रॉप डायवर्सिफिकेशन आज देश की जरूरत है।
अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के बाद भारत तीसरा ऐसा देश बन चुका है, जिसने अपने यहां नाइट्रोजन का पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन किया है। इंडियन नाइट्रोजन ग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में नाइट्रोजन प्रदूषण का मुख्य स्रोत कृषि है। पिछले पांच दशक में हर भारतीय किसान ने औसतन 6,000 किलो से अधिक यूरिया का इस्तेमाल किया है।
पर्यावरण विशेषज्ञों की मानें तो जमीन में नाइट्रोजन युक्त यूरिया के बहुत अधिक मात्रा में अप्राकृतिक रूप से घुलने पर मिट्टी की कार्बन मात्रा कम हो जाती है। यूरिया के बहुत ज्यादा इस्तेमाल की वजह से ही पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के भूजल में नाइट्रेट की मौजूदगी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से बहुत अधिक मिली है। हरियाणा में यह सर्वाधिक 99.5 माइक्रोग्राम प्रति लीटर है, जबकि डब्ल्यूएचओ का निर्धारित मानक 50 माइक्रोग्राम प्रति लीटर है। नाइट्रेट पानी को विषाक्त बना रहा है। भोजन अथवा जल में नाइट्रेट की ज्यादा मात्रा कैंसर उत्पन्न करने में सहायक मानी जाती है।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।