ग्वालियर मुद्दे पर अब मायावती कि तल्ख टिपप्णाी, क्या है अंबेडकर प्रतिमा का पूरा विवाद जानिए आसान भाषा में…

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में बाबा साहब अंबेडकर की प्रतिमा लगाने का विवाद बढ़ता जा रहा है. एक तरफ अंबेडकरवादी वकील चाहतें हैं कि कानून के मंदिर में संविधान निर्माता और भारत के पहले कानून मंत्री की प्रतिमा लगानी चाहिए तो वहीं विरोध करने वाले बार एसोसिएशन के वकील अगल अगल जुमले देते हुए प्रतिमा लगने का विरोध कर रहें हैं. इसी सिलसिले में 22 मई को भीम आर्मी संगठन ने मध्य प्रदेश के कई शहरों में विरोध प्रदर्शन किया और जिलाधिकारी को ग्वालियर हाईकोर्ट में अंबेडकर प्रतिमा लगाने को लेकर ज्ञापन सौंपा. इतना ही नहीं जब भीम आर्मी अपने जत्थे के साथ ग्वालियर हाई कोर्ट पहुंची तो पुलिस ने बेरिकेड्स लगाकर भीम आर्मी को रोक लिया।

अब इस मामले पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी अपनी राय रखी है. उन्होंने एक के बाद एक तीन ट्वीट करते हुए मध्यप्रदेश सरकार से अनुरोध किया है कि वह सम्मान पूर्वक बाबा साहेब अंबेडकर की प्रतिमा ग्वालियर हाई कोर्ट में स्थापित करवाएं. अपने पहले ट्वीट में मायावती ने लिखा, “मध्य प्रदेश हाई कोर्ट खंडपीठ ग्वालियर में अधिवक्ताओं की माँग व उन्हीं के आर्थिक सहयोग से बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर की मूर्ति लगाने की अनुमति माननीय कोर्ट द्वारा दी गई तथा कोर्ट के निर्देशन में ही स्थान का चयन एवं चबूतरा बनाया गया व मूर्ति भी बनकर तैयार हुई।“

किन्तु कुछ जातिवादी सोच से ग्रसित अधिवक्ताओं द्वारा मूर्ति स्थापना का विरोध किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर भड़काऊ वक्तव्यों के बावजूद इन पर कार्रवाई नहीं की गई। बाबा साहेब के विरोधियों को यह समझना होगा कि सदियों से उपेक्षित बहुजन समाज अब अपना सम्मान पाना चाहता है.

मायावती ने आगे लिखा, “मध्य प्रदेश के माननीय राज्यपाल, माननीय उच्च न्यायालय तथा मा. मुख्यमंत्री जी भी मूर्ति लगाने में आ रही बाधाओं को दूर करके, तत्काल उच्च न्यायालय खण्डपीठ ग्वालियर में संविधान निर्माता, भारत रत्न बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर की मूर्ति को सम्मान पूर्वक स्थापित कराएं.”   

बता दें कि ये पूरा मामला ग्वालियर हाईकोर्ट में बाबा साहेब अंबेडकर की प्रतिमा लगाने को लेकर है।   17 मई को ग्वालियर हाईकोर्ट के बाहर जब प्रतिमा लगाने के समर्थन में भीम आर्मी के सदस्य पहुंचे थे तो बार एसोसिएशन के वकीलों द्वारा उनके साथ मारपीट की गयी थी. इससे पहले 14 मई को जब अंबेडकर प्रतिमा ग्वालियर होईकोर्ट के दरवाज़े पर पहुंची तो बार एसोसिएशन के वकीलों ने प्रतिमा को कोर्ट के अंदर ही नहीं जाने दिया था.

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उनकी तरफ से भीम आर्मी और अंबेडकर प्रतिमा को लेकर भड़काऊ भाषण दिए गए. वहीं 19 मई को जब मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने दोनों पक्षों को चल रहे विवाद पर बातचीत के लिए बुलाया तो मूर्ति लगाने के पक्ष वाले वकील तय समय पर मीटिंग में पहुंचे लेकिन बार एसोसिएशन के अध्यक्ष पवन पाठक और अन्य वकील मीटिंग में पहुंचे ही नहीं. हालांकि बाद में दोनों पक्षों के साथ मध्य प्रदेश के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने बातचीत कर समाज में एक अच्छा उदाहरण देने के लिए कहा.

ग्वालियर का ये मुद्दा जितना साधारण दिख रहा है उतना है नहीं इसलिए सिलसिलेवार तरीके से इसे समझना ज़रूरी है!

19 फरवरी को सौंपा गया ज्ञापन :

19 फरवरी 2025 को एमपी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत ग्वालियर आए थे। यहां एडवोकेट विश्वजीत रतोनिया, धर्मेंद्र कुशवाहा और राय सिंह ने उन्हें एक ज्ञापन सौंपा था। जिसमें ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में अंबेडकर की मूर्ति स्थापना की मांग की गई थी। इस दौरान चीफ जस्टिस ने मौखिक सहमति दी थी।

अंबेडकर प्रतिमा लगाने के पक्ष वालें वकीलों के साथ जस्टिस सुरेश कुमार कैत

इसके बाद जिला कोर्ट स्तर पर कमेटी बनी। परिसर में पीडब्ल्यूडी ने प्रतिमा के लिए प्लेटफॉर्म बनवा दिया। वकीलों ने चंदा कर प्रतिमा का ऑर्डर दे दिया। लेकिन इसके बाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन इसके विरोध में उतर आया। दलील दी गई कि प्रतिमा स्थापना की सूचना बार एसोसिएशन को नहीं दी गई। बिल्डिंग कमेटी से इजाजत नहीं ली गई। और इसके बाद पूरे मुद्दे पर तनाव बढ़ने लगा।

26 मार्च को प्रिंसिपल रजिस्ट्रार का आया आदेश:

26 मार्च 2025 को जबलपुर से प्रिंसिपल रजिस्ट्रार की तरफ से आदेश आया। जिसमें कहा गया कि कमेटी के 5 सदस्यों ने डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा की स्थापना को कुछ समय के लिए स्थगित करने का सुझाव दिया है। हालांकि, दो सदस्यों ने प्रतिमा स्थापना पर सहमति जताई है। क्योंकि प्रतिमा का काम पहले से ही शुरू हो चुका है और अधिवक्ताओं और आम जनता की ओर से प्रतिमा निर्माता को राशि का भुगतान भी किया जा चुका है। बैठक के बाद से काफी समय बीत चुका है। जिला और हाईकोर्ट के ज्यादातर वकीलों ने प्रतिमा स्थापना के पक्ष में हस्ताक्षर अभियान शुरू कर दिया है, इसलिए प्रतिमा स्थापित की जाए.

10 मई को तिरंगा लगाते समय वकीलों और पुलिस में झड़प

इसके बाद 10 मई को प्रस्तावित जगह यानी जहाँ अंबेडकर प्रतिमा लगनी थी वहाँ पर बार एसोसिएशन के सदस्यों ने तिरंगा फहरा दिया। इस दौरान पुलिसकर्मियों ने रोकना चाहा तो विवाद के हालात बने और धक्का-मुक्की भी हुई। बार एसोसिएशन का कहना था कि यह झंडा हमने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की याद में फहराया है। और हम आगे इस तिरंगे को 100 फीट की ऊंचाई का करने के लिए हाईकोर्ट में अपनी बात रखेंगे। हालांकि यहां यह सवाल उठता है कि बार एसोसिएशन के वकीलों ने उसी जगह पर तिरंगा क्यों फहराया जो जगह अंबेडकर प्रतिमा के लिए प्रस्तावित थी. प्रतिमा के पक्ष में कुछ वकीलों का कहना है कि अंबेडकर ने कहा था कि हम पहले और अंत में सिर्फ भारतीय है. हम सब भारतीय तिरंगे का अपनी जन से ज्यादा सम्मान करते हैं इसलिए बार एसोसिएशन के वकीलों ने इसका फायदा उठाया और प्रतिमा के लिए जो जगह थी वहाँ तिरंगा फहरा दिया और बाद कहा कि अंबेडकर हो या कोई ओर भारतीय तिरंगे से बड़ा कोई नहीं!

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14 मई को स्थापना के समय दोनों पक्षों के बीच विवाद :

14 मई को प्रतिमा की स्थापना को लेकर वकीलों का एक पक्ष मूर्ति लेकर कोर्ट पहुंच गया. जिसके बाद बार एसोसिएशन के वकीलों ने कोर्ट का दरवाजा ही बंद करवा दिया. इसके बाद दोनों पक्षों के बीच विवाद शुरू हो गया। प्रतिमा विवाद को लेकर दोनों पक्ष एक-दूसरे के खिलाफ सोशल मीडिया पर गाली-गलौज और पोस्टर वॉर पर उतर आए हैं।

17 मई को भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं से मारपीट :

प्रतिमा स्थापना का विरोध करने वाले वकीलों ने भीम आर्मी को चेतावनी दी थी कि यह गली-मोहल्ला नहीं कोर्ट है, यहां भीम आर्मी आकर दिखाए। इस पर शनिवार (17 मई) को भीम आर्मी नेता रूपेश केन अपनी टीम के साथ पहुंचे। यह देखकर वकील एकजुट हो गए। उन्होंने भारी पुलिस फोर्स के बीच रूपेश केन और उनके साथियों से मारपीट की जिसकी वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई.

चीफ जस्टिस से बैठक के बाद दोनों पक्ष बना रहे रणनीति :

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक सोमवार 19 मई को ग्वालियर से दोनों खेमों के वकील जबलपुर में चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत से मिले और पूरे विवाद की जानकारी दी। कैत ने दोनों ही पक्षों को शांति बनाए रखने और समाज को अच्छा उदाहरण देने के लिए कहा। दोनों पक्षों के जबलपुर से लौटने के बाद कोई हंगामा तो नहीं हुआ, लेकिन प्रतिमा स्थापना के लिए दोनों पक्षों के वकील लगातार बैठक कर रहे हैं। बुधवार 21 मई की शाम को भी दो बैठकें हुई जिनमें आगे की रणनीति पर विचार-विमर्श किया गया। एक पक्ष इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट ले जाने की बात कह रहा है, तो दूसरा पक्ष भी अपनी जिद पर अड़ा है.

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