दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जाट समुदाय को केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल करने की मांग दोहराई, जिससे दलित संगठनों ने उनके रवैये की आलोचना की। दलित नेताओं ने आरोप लगाया कि केजरीवाल चुनावी लाभ के लिए जाटों का समर्थन पाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि दलितों के अधिकारों और समस्याओं की लगातार अनदेखी की जा रही है। भाजपा ने भी केजरीवाल पर सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने का आरोप लगाया।
जाट आरक्षण पर राजनीति, दलित समुदाय के अधिकारों की उपेक्षा
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए जाट समुदाय के नेताओं से मुलाकात की और उन्हें केंद्र की अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) सूची में शामिल करने की मांग को दोहराया। यह मांग उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र के माध्यम से भी उठाई थी। हालांकि, इस कदम ने दलित समुदाय के नेताओं और सामाजिक संगठनों के बीच रोष पैदा कर दिया है। उनका आरोप है कि केजरीवाल अपनी राजनीति चमकाने के लिए जाट समुदाय का समर्थन पाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि दलितों के अधिकारों की हमेशा अनदेखी करते आए हैं।
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दलितों के मुद्दों पर चुप्पी: केजरीवाल की सियासत सवालों के घेरे में
दिल्ली सरकार की नीतियों पर नज़र डालें तो यह स्पष्ट होता है कि केजरीवाल सरकार ने दलित समुदाय के लिए कुछ ठोस कदम उठाने में रुचि नहीं दिखाई। दलित छात्रों की छात्रवृत्ति योजनाएं हों, सफाई कर्मचारियों की समस्याएं, या दलित बस्तियों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव—इन सभी मुद्दों पर केजरीवाल सरकार का रवैया उदासीन रहा है।
जाट आरक्षण का विरोध: दलितों के हिस्से में सेंध लगाने की कोशिश
दलित संगठनों का कहना है कि जाट समुदाय को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने की मांग सिर्फ चुनावी लाभ के लिए उठाई गई है। दलित समुदाय के नेताओं ने इसे “आरक्षण का बंटवारा” करार देते हुए कहा कि अगर जाट समुदाय को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल किया गया, तो इससे दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए निर्धारित आरक्षण में कमी आएगी। सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में जाटों को ओबीसी सूची में शामिल करने के फैसले को रद्द करते हुए इसे “तथ्यों और प्रमाणों के अभाव में लिया गया निर्णय” बताया था। फिर भी, केजरीवाल इस मुद्दे को राजनीतिक फायदे के लिए हवा दे रहे हैं।
दलितों का सवाल: हमारे हक के लिए केजरीवाल कहां हैं?
दलित संगठनों ने पूछा है कि जब दलित समाज के हितों की बात होती है, तो केजरीवाल क्यों चुप्पी साध लेते हैं। सफाई कर्मचारियों की दुर्दशा, दलित युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों की कमी, और दलित बस्तियों में शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव जैसे मुद्दों पर केजरीवाल सरकार की विफलता ने यह साबित कर दिया है कि उनके एजेंडे में दलितों की कोई जगह नहीं है।
चुनावी लाभ के लिए जाट कार्ड, दलितों के साथ धोखा
जाट समुदाय के 7 लाख मतदाताओं को लुभाने के लिए यह नया दांव खेला गया है। हालांकि, यह सवाल उठता है कि क्या यह कदम अन्य पिछड़े वर्गों, खासकर दलितों, के साथ विश्वासघात नहीं है? आरक्षण का मकसद वंचित तबकों को समान अवसर देना है, लेकिन इस तरह की राजनीति से सामाजिक न्याय की अवधारणा को ही ठेस पहुंचती है।
भाजपा ने भी उठाए सवाल
भाजपा ने भी केजरीवाल पर हमला करते हुए कहा कि “आम आदमी पार्टी जाटों को आरक्षण के नाम पर गुमराह कर रही है और सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने की कोशिश कर रही है।”
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दलितों के अधिकारों की रक्षा का सवाल
केजरीवाल सरकार को यह समझना होगा कि आरक्षण कोई चुनावी हथकंडा नहीं है। दलित समुदाय के अधिकारों को सुरक्षित रखना और उनके उत्थान के लिए ठोस कदम उठाना उनकी प्राथमिकता होनी चाहिए। दलित संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर दलितों के हक पर कोई आंच आती है, तो वे चुनावों में कड़ा विरोध करेंगे।
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