जयंती विशेष : देश की प्रथम महिला शिक्षिका, जिन्हें देश ने उनके अतुलनीय योगदान के बावजूद भुला दिया

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एक ऐसा समय जब महिलाओं के लिए घर की देहरी लांघना भी दुश्वार था
सामाजिक बंधनों में जकड़ी भारतीय महिलाओं के लिए शिक्षा पाप के समान थी जब महिला शिक्षा पर पाबंदी थी
ऐसे समय में महिला शिक्षा विधवा विवाह छुआछूत नारी मुक्ति सामाजिक बराबरी के लिए अपना सर्वस्व जीवन त्याग देना जिसकी वर्तमान में कल्पना भी नहीं की जा सकती !

हम बात कर रहे हैं भारत की प्रथम महिला शिक्षिका नारी मुक्ति की प्रणेता मराठी कवियित्री सावित्रीबाई फुले की
जिनका जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था
महज 9 वर्ष की आयु में 12 वर्ष के ज्योति राव फूले से सावित्री बाई का विवाह हुआ
ज्योतिराव फूले को महाराष्ट्र व देश में सामाजिक सुधार आंदोलनों के महत्वपूर्ण व्यक्तियों में गिना जाता है जो एक लेखक विचारक व चिंतक थे
ज्योति राव फूले सावित्री बाई के पति होने के साथ ही उनके सरंक्षक,समर्थक व गुरु भी थे जिन्होंने सावित्रीबाई फुले को शुरुआती शिक्षा दी
बाल्यावस्था में पिता के,शादी बाद पति के व वृद्धावस्था में पुत्र के अधीन रहने वाले दौर में जब ज्योतिराव ने सावित्री बाई को शिक्षा के लिए प्रेरित किया व उन्हें पढाया तो ज्योतिराव के पिता उनके इस कदम से नाराज हो गए और उन्होंने ज्योतिराव को घर से निकाल दिया ज्योतिराव फिर भी नहीं रुके और उन्होंने सावित्रीबाई को शिक्षा देना जारी रखा जिसके पश्चात दोनों ने 1848 में महिलाओं के लिए प्रथम स्कूल की स्थापना की
सन 1852 में फिर तीन महिला स्कूलों की स्थापना की जिसके लिए तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने सावित्रीबाई फुले को शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए सम्मानित किया !
हजारों सालों से सामाजिक बंधनों में जकड़ी भारतीय महिलाओं के लिए यह गौरव का क्षण था तो दूसरी ओर पुरुष प्रधान समाज इस बात को स्वीकार नहीं कर पाया और उन्होंने सावित्री बाई का अपमान करना शुरू कर दिया जब सावित्रीबाई अन्य महिलाओं को पढ़ाने के लिए घर से निकलती तो उन पर पत्थर व गोबर बरसाए जाते थे

माता सावित्री बाई फुले और ज्योतिबा फुले (image: social media)

अपमान की पराकाष्ठा के बावजूद भी सावित्रीबाई इन सब से आहत नहीं हुई और वह लगातार महिला शिक्षा व नारी मुक्ति के लिए काम करती रही !
वंचित तबके के प्रति उनके समर्पण का आलम यह था की ज्योतिबा फुले सावित्रीबाई फुले ने अपनी स्वयं की कोई औलाद नहीं होने दी व उन्होंने अपना सर्वस्व जीवन दलितों पिछड़ों वंचितों व महिलाओं के अधिकारों के लिए त्याग दिया
महिला अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली सावित्रीबाई फुले ने विधवाओं के लिए एक केंद्र की स्थापना की और उन्हें पुनर्विवाह के लिए प्रोत्साहित किया
उन्होंने अछूतों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया
1897 में प्लेग नामक बीमारी फैलने के कारण उन्होंने पुणे में एक अस्पताल खोल जहां वह अछूत माने जाने वाले लोगों की सेवा करती थी
प्लेग पीड़ितों की सेवा करने से उन्हें भी प्लेग नामक बीमारी हो गई जिसके कारण 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया और एक क्रांति ज्योति बुझ गई !

आज महिलाएं प्रधानमंत्री राष्ट्रपति मुख्यमंत्री वैज्ञानिक बन रही है अंतरिक्ष में उड़ाने भर रही है
लेकिन बड़े ही दुख की बात है कि भारत की प्रथम महिला शिक्षिका और नारी मुक्ति की प्रणेता सावित्रीबाई फुले को इस देश की सरकारों व इस देश ने नजरअंदाज कर दिया आज सावित्री फुले का नाम गुमनामी के अंधेरे में सिमट कर रह गया है
और बड़े आश्चर्य की बात है कि जो महिला नारी शिक्षा की आधार स्तंभ है उस महिला को देश की 99% महिलाएं जानती ही नहीं है

क्या सावित्रीबाई फुले सम्मान की हकदार नहीं जिनकी बदौलत आज करोड़ों महिलाएं मान सम्मान का जीवन व्यतीत कर रही है !
असली भारत रत्न शिक्षा की देवी तो सावित्रीबाई फूले हैं जिन्होंने नारी सशक्तिकरण के लिए अपना पूरा जीवन त्याग दिया !

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