मायावती होना आसान नहीं

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15 जनवरी 1956 , दिल्ली का श्रीमती सुचेता कृपलानी अस्पताल जहां एक लड़की ने जन्म लिया। जिसके तकरीबन 11 महीने बाद 6 दिसंबर को भारतीय संविधान के शिल्पकार बाबासाहेब आंबेडकर ने आंखें मूंद ली। बाबा साहब जैसे निश्चिंत हो गए हो कि चलो कोई जिम्मेदारी संभालने वाला आ गया है. जी हां हम बात कर रहे है 15 जनवरी 2022 को अपने जीवन के 66 वर्ष पूर्ण करने जा रही बसपा सुप्रीमो मायावती की, वो मायावती जो अपने समर्थको के बीच बहनजी के नाम से लोकप्रिय है, वो मायावती जिन्हे अपने कठोर प्रशासन की वजह से आयरन लेडी कहा जाता है।
वो मायावती जिसने अपनी तेज तर्रारी से मनुवादी व्यवस्था को जमकर लताड़ा।

बसपा सुप्रीमो मायावती काशीराम के साथ [फाइल फोटो]
कौन जानता था की 15 जनवरी 1956 को गौतम बुद्ध नगर में एक डाक कर्मचारी प्रभुदास के घर जन्म लेने वाली लड़की देश के सबसे बड़े सूबे की चार-चार बार बागडोर संभालेगी , वो भी तब जब यूपी में 80 – 90 के दशक में महिलाओ का घर की देल्ही लांघना भी दुश्वार था। उस वक्त मात्र 21 साल की मायावती ने दबे कुचले समाज के लिए अपना घर और कलेक्टर बनने का सपना त्याग दिया था।

 

दिल्ली के कालिंदी कॉलेज से कला में स्नातक व दिल्ली विश्वविद्यालय से एल.एल.बी और बी. एड की शिक्षा प्राप्त कर चुकी मायावती बचपन से ही पढाई में होशियार थी। वे हमेशा से आईएएस बनना चाहती थी। ये बात बहुत कम ही लोग जानते है कि मायावती ने एक साथ 9वी, 10वी, और 11वीं की परिक्षा दी है। मात्र 16 साल की उम्र में उन्होने 12 वीं परिक्षा दी जिसमें उन्होने अच्छे नंबर से स्कोर किया।

अस्सी के दशक में जब वे आम अध्यापिका थीं तब भी वे अपनी शख्सियत के मुताबिक़ पूछा करती थी “अगर हम हरिजन की औलाद है तो क्या गांधी शैतान की औलाद थे.” अपने इसी तेज तर्रारी व खरी जुबान से ,जब उन्होंने वर्णवादी व्यवस्था को मनुवादी कह कर हिंदी क्षेत्रों में लताड़ना शुरू किया तो वर्षो से दबे हुए दलित समाज ने उन्हें अपनी आवाज़ और अपने लिए युद्धरत एक सिपाही को मायावती के रूप में पाया.

अंबेडकरवादी समूहों में आज भी बहुत कम महिलाएं नेतृत्वकारी भूमिका में हैं तो चार दशक पहले 21 साल की,महिला जो अपनी दलित पहचान के प्रति राजनीतिक रूप से जागरुक और आक्रमक है, किसी ने शायद ही कल्पना की होगी की ये महिला आगे चलकर देश के सबसे बड़े सूबे की चार-चार बार बागडोर संभालेगी और पहली दलित मुख्यमंत्री होने का श्रेय प्राप्त करेगी !

3 जून 1995 को मायावती का देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश व देश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनना देश व दुनिया के लिए अचम्भे की बात थी। जब मायावती विश्व के फलक पर अचानक एक कद्दावर नेता के रूप में उभरी थी. उनकी इन्हीं उपलब्धियों की बदौलत प्रतिष्ठित ‘न्यूज वीक’ पत्रिका उन्हें दुनिया की आठ सर्वाधिक ताकतवर महिलाओं में शुमार कर चुकी हैं. मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद उन्होंने बहुजन नायकों और बहुजन हितों पर खासा ध्यान दिया. मायावती ने अम्बेडकर ग्राम योजना लाकर अनुसूचित जाति बहुल गांव में सरकारी निवेश को बढ़ा दिया. थानों में दलित अधिकारियों की नियुक्ति कर दलित उत्पीडन पर रोक लगा दी व दलित महापुरुषों के नाम पर नए जिले घोषित कर दलितों को मोह लिया

मायावती के जीवन संघर्ष पर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के प्रो. विवेक कुमार ने पिछले दिनों अपने एक लेख में लिखा था, ‘यह विडंबना है कि लोग आज मायावती के गहने देखते हैं, उनका लंबा संघर्ष और एक-एक कार्यकर्ता तक जाने की मेहनत नहीं देखते. वे यह जानना ही नहीं चाहते कि संगठन खड़ा करने के लिए मायावती कितना पैदल चलीं, कितने दिन-रात उन्होंने दलित बस्तियों में काटे. मीडिया इस तथ्य से आंखें मूंदे है. जाति और मजहब की बेड़ियां तोड़ते हुए मायावती ने अपनी पकड़ समाज के हर वर्ग में बनाई है. वह उत्तर प्रदेश की पहली ऐसी नेता हैं, जिन्होंने नौकरशाहों को बताया कि वे मालिक नहीं, जनसेवक हैं. अब सर्वजन का नारा देकर उन्होंने बहुजन के मन में अपना पहला दलित प्रधानमंत्री देखने की इच्छा बढ़ा दी है. दलित आंदोलन और समाज अब मायावती में अपना चेहरा देख रहा है. भारतीय लोकतंत्र को समाज की सबसे पिछली कतार से निकली एक बहुजन महिला की उपलब्धियों पर गर्व होना चाहिए l

और अंत में बस यही की मायावती होना आसान नहीं है………

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