मान्यवर कांशीराम परिनिर्वाण दिवस : यादों में कांशीराम

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आज 9 अक्टूबर है और दलित समाज के लिए ये दिन गम का दिन माना जाता है। क्योंकि इसी दिन दलितों के मसीहा मान्यवर कांशीराम जी का निधन हुआ था। इस दिन पूरे देश में दलित और बहुजन समाज कांशीराम का परिनिर्वाण दिवस मनाता है। इसके लिए बड़े-बड़े कार्यक्रम आयोजित होते है।

आज से 17 साल पहले जब कांशीराम जी का निधन हुआ था तो दलित समाज में मातम छा गया था। इस वक्त किसी ने अपना बेटा, अपना दोस्त और अपना भाई ही नहीं खोया था बल्कि पूरे दलित समाज ने अपने लीडर को खोया था। जो हमेशा उनके राजनीति में प्रतिनिधित्व और समाजिक समानता के लिए लड़ता रहा।

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9 अक्टूबर 2006 को कांशीराम के निधन पर तमाम नेता उन्हें श्रंद्धाजलि देने पहुंचे थे जिन्होंने मान्यवर कांशीराम के लिए बहुत बड़ी बातें कही थी।

लाल कृष्ण आडवानी ने कहा था कि, “योग्य राजनीतिक विचारक के रूप में और एक संगठन के रूप में मैं हमेशा उनका आदर करता रहा हूँ। मैं मानता हूं कि आज बीएसपी एक राष्ट्रीय दल बन कर के राजनीति में एक मह्तवपूर्ण भूमिका जो निभा रही है उसका श्रेय श्री कांशीराम जी को ही देना होगा।

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वहीं लालू प्रसाद यादव ने कहा “ कांशीराम जी एक माहन नेता थे, उन्होंने दलितों को जगाया, इज्जत और सम्मान दिया। और भारत के मानचित्र पर दलितों को प्रतिष्ठित करने का काम किया है। वहीं रामविलाश पासवान ने उन्हें दलितो का मसीहा और गरीबो का चौकिदार बताया था।

कांशीराम हमेंशा से दलित समाज को सामाजिक स्तर पर जागरूक करना चाहते थे। उनके लिए समानता चाहते थे और इससे भी कही ज्यादा उन्होंने हमेशा राजनीति में दलितों की भागीदारी पर ज़ोर दिया है।

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कांशीराम, बाबा साहेब अंबेडकर को अपना गुरू मानते थे लेकिन राजनीति को लेकर उन दोनों के ही  विचार थोडे अलग थे। एक ओर जहाँ अंबेडकर ने आरक्षण, मंदिरों में दलितों के प्रवेश और जातिवाद पर अपनी आवाज़ उठाई वहीं कांशीराम इन मुद्दो पर ज्यादा नहीं बोले। उन्होंने राजनीति में दलितों के प्रतिनिधित्व पर ही ज़ोर दिया।

कांशीराम पर बनी BBC की एक डॉक्यूमेंट्री में कांशीराम की जीवनी लिखने वाले लेखक बद्री नरायाण बताते हैं कि कांशीराम का व्यक्तित्व ऐसा था की वह बहुत जल्दी लोगों को खुद से जोड़ लेते थे। पावर, समाज औऱ राजनीति की समझदारी उनकी बातों में झलकती थी।

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लेखक बताते हैं कि उनमें वो ठसक नहीं थी कि वह किसी से मिलने नहीं जाएंगे। या कोई बड़ा नेता उन्हें मिलने बुलाएं तो वो भाग के उनके पास पहुंच जाएं। वह भाली भांति जानते थे कि वह एक बड़े वर्ग, दलित समाज को लीड कर रहे है और उन्हें उस दलित गरिमा को बरकरार रखना है। कांशीराम गरीब के पास जाएगे, दलित के पास जाएंगे , बहुजन के पास जाएंगे लेकिन किसी बड़े नेता के बुलाने के बाद उससे मिलने नहीं जाएंगे।  वह कहते है कि जिसे मिलना है वह खुद आएं। कांशीराम का ऐसा ही एक वाक्या पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिंहन राव के साथ हुआ था। एक दिन एक आदमी कांशीराम के पास पहुंचता है और कहता है कि नरसिंहन राव आपसे मिलना चाहते है तो कांशीराम ने कहा उन्हें मिलना है तो वह खुद आएं में उनके पास क्यों जांऊ ?

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मान्यवर कांशीराम के विचारों की बात की जाए तो उनके कुछ नारे आज भी दलित और बहुजन समाज में उनके विचारों के रूप में जिंदा है। जिनमें सबसे पहला नारा है_

  1. जो बहुजन की बात करेगा, वो दिल्ली से राज करेगा
  2. वोट हमारा, राज तुम्हारा, नहीं चलेगा, नहीं चलेगाा
  3. चमचागिरी का तेल चढ़ा है बहुजनों की छाती पर वरना मुट्ठी भर लोग कैसे नाचते 85% की छाती पर।

 

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