कर्नाटक के गंगावटी तालुक में 2014 में दलितों पर हुए अत्याचार के मामले में कोर्ट ने 98 लोगों को उम्रकैद और तीन को पांच साल की सजा सुनाई है। यह फैसला दलितों पर अत्याचार के मामले में सामूहिक सजा का पहला मामला है।
कर्नाटक के गंगावटी तालुक के माराकुंबी गांव में 2014 में दलितों के खिलाफ हुई अत्याचार की घटना ने समाज को झकझोर कर रख दिया था। इस मामले में कर्नाटक के सत्र न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए 98 दोषियों को सामूहिक रूप से उम्रकैद की सजा सुना दी है। साथ ही तीन अन्य को पांच-पांच साल की सजा दी गई है। देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब दलितों पर अत्याचार के मामले में इतने बड़े पैमाने पर सामूहिक रूप से लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।
दलितों के खिलाफ भेदभाव और हिंसा का मामला:
माराकुंबी गांव में 2014 में दलित समुदाय के लोगों के साथ घोर अत्याचार किया गया। गांव में रहने वाले कुछ प्रभावशाली लोगों ने दलितों को लक्षित करके हमला किया, जिसमें उनके घरों में आग लगा दी गई, उनके साथ मारपीट की गई, और उनके गांव में कई अधिकारों पर रोक लगा दी गई थी। नाई की दुकान पर जाना, किराने की दुकान से सामान लेना जैसी बुनियादी सुविधाओं से दलितों को वंचित कर दिया गया था। हिंसा की घटनाएं इतनी भयावह थीं कि गांव के दलित कई दिनों तक आतंक के साये में जीने को मजबूर हो गए। इस भयानक हादसे के तीन महीने बाद तक गांव में पुलिस बल तैनात रहा, ताकि दलित समुदाय पर कोई और हमला न हो सके। राज्य दलित अधिकार समिति ने भी इस घटना के विरोध में आंदोलन किया, जिससे सरकार और प्रशासन का ध्यान इस मुद्दे पर गया।
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कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला:
न्याय की इस लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार सत्र न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया। जज चंद्रशेखर सी ने इस मामले में 101 लोगों को दोषी करार दिया, जिनमें से 98 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। बाकी तीन दोषियों को, जो खुद भी दलित समुदाय से थे, पांच-पांच साल की सजा दी गई है, क्योंकि उनके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट 1989 के तहत आरोप सिद्ध नहीं हो पाए। इस ऐतिहासिक फैसले को लेकर सरकारी वकील अपर्णा बुंडी ने कहा कि 117 लोगों पर इस मामले में मुकदमा चलाया गया था, जिसमें से 16 अभियुक्तों की सुनवाई के दौरान ही मृत्यु हो गई। बाकी बचे दोषियों पर अदालत ने सख्ती दिखाते हुए 5000 या फिर 2000 रुपए का जुर्माना भी लगाया है।दलित समुदाय की जीत:
यह फैसला केवल दलितों के लिए न्याय नहीं बल्कि समाज में उनके सम्मान और अधिकारों की पुनर्स्थापना का प्रतीक है। दलित समुदाय के लोगों के लिए यह निर्णय एक आशा की किरण है, जो कई वर्षों से इस भयावह हादसे का दर्द झेल रहे थे। गंगावटी पुलिस स्टेशन को भी इस मामले के दौरान कई दिनों तक सीज कर दिया गया था, और गांव में पुलिस की मौजूदगी ने दबाव बनाए रखा। इस निर्णय से यह संदेश गया है कि भले ही न्याय मिलने में देरी हो, लेकिन अन्याय का अंत निश्चित है। अब दोषियों को कर्नाटक के बल्लारी जेल में रखा गया है, और उन पर लगे जुर्माने को भी संज्ञान में लिया गया है।
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दलित समुदाय की जीत:
यह फैसला केवल दलितों के लिए न्याय नहीं बल्कि समाज में उनके सम्मान और अधिकारों की पुनर्स्थापना का प्रतीक है। दलित समुदाय के लोगों के लिए यह निर्णय एक आशा की किरण है, जो कई वर्षों से इस भयावह हादसे का दर्द झेल रहे थे। गंगावटी पुलिस स्टेशन को भी इस मामले के दौरान कई दिनों तक सीज कर दिया गया था, और गांव में पुलिस की मौजूदगी ने दबाव बनाए रखा। इस निर्णय से यह संदेश गया है कि भले ही न्याय मिलने में देरी हो, लेकिन अन्याय का अंत निश्चित है। अब दोषियों को कर्नाटक के बल्लारी जेल में रखा गया है, और उन पर लगे जुर्माने को भी संज्ञान में लिया गया है।
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