Health: क्या आप जानते हैं भारत में पोलियो और कुपोषण के सबसे ज्यादा मरीज दलित समुदाय में पाए जाते हैं ?

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भारत में पोलियो और कुपोषण की समस्या पहले की तुलना में काफी हद तक कम हो चुकी है, लेकिन कुपोषण का मुद्दा अब भी विभिन्न समुदायों में बना हुआ है। ये जो दलित या आदिवासी समाज सरकार की बदौलत पिछड़ा हुआ कहलाता है , आज यही दलित समुदाय पोलियो और कुपोषण में सबसे आगे है ..

दलित और आदिवासी समुदायों को अक्सर पिछड़ा हुआ माना जाता है, और ये समुदाय पोलियो और कुपोषण जैसी समस्याओं में अधिक प्रभावित होते हैं। क्योंकि दलित समुदाय को स्वास्थ्य सेवाओं, पोषण, और शिक्षा तक पहुंच में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसका परिणाम यह होता है कि वे पोलियो, कुपोषण और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।

भारत में दलित समुदाय के बीच कुपोषण और पोलियो के सटीक आंकड़े प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि ये डेटा समय के साथ बदलते हैं और अलग-अलग स्रोतों में विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किए जाते हैं। फिर भी, कुछ प्रमुख आंकड़े और रिपोर्टों पर आधारित जानकारी निम्नलिखित है:

1. कुपोषण के आंकड़े (दलित समुदाय):

दलित समुदाय, जो ऐतिहासिक रूप से भारत में वंचित और आर्थिक रूप से कमजोर रहा है, कुपोषण की समस्या से गंभीर रूप से प्रभावित रहा है। कुपोषण के प्रमुख आंकड़े निम्नलिखित हैं:

  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5, 2019-2021):
    इस सर्वेक्षण के अनुसार, दलित समुदाय में बच्चों में स्टंटिंग (उम्र के अनुसार कम लंबाई), वेस्टिंग (लंबाई के अनुसार कम वजन), और अंडरवेट (उम्र के अनुसार कम वजन) की दरें राष्ट्रीय औसत से अधिक हैं।

    • स्टंटिंग (लंबाई के अनुसार कम ऊंचाई): दलित समुदाय के लगभग 43-45% बच्चे स्टंटिंग से प्रभावित होते हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत लगभग 35-38% है।
    • वेस्टिंग (लंबाई के अनुसार कम वजन): दलित समुदाय के 20% से अधिक बच्चे वेस्टिंग से प्रभावित होते हैं, जो कि एक गंभीर समस्या है।
    • अंडरवेट: दलित समुदाय में 40% से अधिक बच्चे अंडरवेट पाए गए हैं।

2. पोलियो के आंकड़े (दलित समुदाय):

भारत को 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा पोलियो मुक्त घोषित किया गया था, लेकिन इसके पहले, पोलियो का बड़ा हिस्सा गरीब और वंचित समुदायों, विशेषकर दलित और आदिवासी क्षेत्रों में देखा गया था। सटीक आंकड़े अब उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि पोलियो के नए मामले सामने नहीं आते, लेकिन 2014 से पहले यह दलित समुदाय में एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य मुद्दा था:

  • पोलियो का ऐतिहासिक प्रभाव:
    पोलियो का प्रभाव दलित और गरीब समुदायों में अधिक देखा गया था क्योंकि ये समुदाय टीकाकरण और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित थे। जब पोलियो के खिलाफ टीकाकरण अभियान शुरू किए गए, तब भी कई बार ये समुदाय पूरी तरह से इन सेवाओं तक नहीं पहुंच पाए थे। हालांकि, व्यापक टीकाकरण अभियान और सरकारी प्रयासों के कारण 2014 तक भारत पोलियो मुक्त हो गया।

कुल मिलाकर, कुपोषण मुख्य रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदायों और गरीब ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्रित है। इसे सुधारने के लिए पोषण कार्यक्रमों, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार की आवश्यकता है, विशेषकर उन समुदायों के लिए जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। कुपोषण को कम करने के लिए आवश्यक है कि स्वास्थ्य सेवाओं, पोषण योजनाओं और सामाजिक-आर्थिक सुधारों का विस्तार किया जाए ताकि यह समुदाय बेहतर स्वास्थ्य और जीवन स्तर हासिल कर सके।

इसका मुख्य कारण है:

स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच: दलित और आदिवासी समुदायों को स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच में चुनौतियां होती हैं। अक्सर वे स्वास्थ्य सुविधाओं से दूर होते हैं, और सरकारी योजनाओं के लाभ तक पहुंचने में कठिनाइयों का सामना करते हैं।

आर्थिक असमानता: इन समुदायों की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है, जिससे वे पोषण युक्त भोजन और स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च नहीं कर पाते।

सामाजिक भेदभाव: सामाजिक भेदभाव और असमानता के कारण ये समुदाय अक्सर स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं से वंचित रह जाते हैं।

जागरूकता की कमी: स्वास्थ्य और पोषण संबंधी जानकारी की कमी के कारण इन समुदायों के लोग सही समय पर उपचार और टीकाकरण नहीं करवा पाते।

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सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं

सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं जैसे कि मिड-डे मील स्कीम, आंगनवाड़ी सेवाएं, और पोषण अभियान। इसके अलावा, पोलियो टीकाकरण अभियान के कारण पोलियो पर नियंत्रण पाया जा चुका है। लेकिन इन योजनाओं को और प्रभावी तरीके से लागू करने की आवश्यकता है ताकि दलित और अन्य हाशिए पर रहने वाले समुदायों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें।

कुपोषण क्या है

कुपोषण तब होता है जब शरीर को आवश्यक पोषक तत्वों की पूरी मात्रा नहीं मिलती या आहार में पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ जाता है। इसका मतलब है कि या तो शरीर को पोषक तत्वों की कमी होती है या किसी खास पोषक तत्व की अधिकता हो जाती है। यह स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं उत्पन्न कर सकता है, जैसे कि:

  1. विकास में रुकावट (विशेषकर बच्चों में)
  2. रोग प्रतिकारक क्षमता में कमी
  3. ऊर्जा की कमी और थकावट
  4. आंतरिक अंगों के सही से काम न करने की समस्याएं

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कुपोषण किन को होता है

कुपोषण के जोखिम वाले समूहों को सही तरीके से पहचान लिया है। कुपोषण के खतरे की समझ रखना और इन समूहों पर विशेष ध्यान देना महत्वपूर्ण है:

गरीब और कम आय वाले: गरीब समुदायों के पास पर्याप्त पोषण वाले खाद्य पदार्थों तक पहुंच की कमी होती है, जिससे कुपोषण का खतरा बढ़ जाता है। यह समस्या विकसित देशों और विकासशील देशों दोनों में देखी जाती है।

बच्चे: बच्चों को विकास और वृद्धि के लिए अधिक पोषण की जरूरत होती है। यदि उन्हें सही मात्रा में पोषण नहीं मिलता, तो वे कुपोषण के शिकार हो सकते हैं, जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित कर सकता है।

दीर्घकालिक बीमारियाँ: ऐसी बीमारियाँ जो लंबे समय तक रहती हैं, जैसे कि मधुमेह या क्रॉनिक बीमारियां, भूख और कैलोरी अवशोषण को प्रभावित कर सकती हैं। ये बीमारियाँ कैलोरी की जरूरत को बढ़ा सकती हैं या शरीर द्वारा पोषक तत्वों को अवशोषित करने की क्षमता को कम कर सकती हैं।

बुजुर्ग: उम्र बढ़ने के साथ कई बुजुर्गों को पोषण से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि कम गतिशीलता, भूख में कमी, और पोषक तत्वों का कम अवशोषण। इन कारणों से बुजुर्गों में कुपोषण का खतरा बढ़ जाता है।

इन समूहों की विशेष जरूरतों को समझते हुए, कुपोषण को रोकने और प्रबंधित करने के लिए लक्षित नीतियां और कार्यक्रम आवश्यक हैं।

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