दुर्गा पूजा मेला से लौट रही दलित समाज की दो लड़कियों के साथ गैंगरेप हुआ। आरोप है कि दो दिन तक मामला पंचायत में दबा रहा जब जाकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई। आरोपी अब भी फरार हैं, और पुलिस जांच में जुटी है।
झारखंड के पलामू जिले से एक दर्दनाक और शर्मनाक घटना सामने आई है, जिसने न केवल राज्य को, बल्कि पूरे देश को हिला कर रख दिया है। इस वारदात ने एक बार फिर से समाज में मौजूद जातिगत भेदभाव, असुरक्षा और उत्पीड़न की गहरी जड़ें उजागर की हैं। यह घटना दो दलित लड़कियों के साथ हुई गैंगरेप की है, जो दुर्गा पूजा मेला देखकर अपने घर लौट रही थीं। यह कांड झारखंड के नौडीहा बाजार पुलिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत हुआ, जहां कुछ बदमाशों ने इन मासूम लड़कियों को रोक कर उनके साथ इस घृणित अपराध को अंजाम दिया।
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ये हैं मामला
घटना शुक्रवार रात की है, जब दोनों लड़कियां मेला देखकर अपने रिश्तेदार के साथ घर लौट रही थीं। वे एक ही बाइक पर सवार थीं और घर लौटने के रास्ते में थीं, जब कुछ अज्ञात बदमाशों ने बीच रास्ते में उन्हें रोक लिया। यह घटना नौडीहा बाजार क्षेत्र के सरायडीह गांव के पास घटित हुई, जहाँ दुर्गा पूजा के मेले का आयोजन किया गया था। जब लड़कियों ने सहायता के लिए चीख-पुकार मचाई, तो इलाके में पक्षियों का शिकार कर रहे कुछ लोगों ने उनकी आवाजें सुनीं। लेकिन जब तक वे मौके पर पहुँचे, तब तक आरोपियों ने अपना कुकर्म अंजाम दे दिया था और भागने में सफल हो गए।
पंचायत में सुलझाने की परंपरा क्यों जारी है?
पीड़ित लड़कियों ने अपने परिवार वालों को इस घिनौने कांड की जानकारी दी, लेकिन परिवार ने इस मुद्दे को लेकर तुरंत पुलिस के पास जाने की बजाय पहले पंचायत में इसे सुलझाने की कोशिश की। यह घटना एक और गंभीर सवाल उठाती है: ग्रामीण समाज में अभी भी ऐसे मामलों को कानून की बजाय पंचायत में सुलझाने की परंपरा क्यों जारी है? दो दिनों तक पंचायत में इस मामले को सुलझाने की कोशिश की गई, लेकिन अंततः कोई समाधान नहीं निकला। फिर रविवार देर शाम को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई।
पुलिस की कार्रवाई और जांच
पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए त्वरित जांच शुरू की है। अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी (एसडीपीओ) अवध यादव ने घटना की पुष्टि की और बताया कि पीड़िताओं को मेडिकल जांच के लिए मेदिनीराय मेडिकल कॉलेज और अस्पताल भेजा गया है। इसके साथ ही नौडीहा बाजार थाना प्रभारी अमित कुमार द्विवेदी ने बताया कि आरोपियों की तलाश जारी है और पुलिस हर संभव प्रयास कर रही है कि जल्द से जल्द उन्हें गिरफ्तार किया जाए।
अब तक आरोपी फरार
लेकिन घटना के कुछ दिनों बाद भी आरोपी फरार हैं, और पुलिस उन्हें पकड़ने में अब तक नाकाम रही है। यह बात स्थानीय निवासियों में आक्रोश और असंतोष का कारण बन गई है। लोगों का कहना है कि अगर आरोपियों को जल्दी से गिरफ्तार नहीं किया गया, तो वे विरोध प्रदर्शन करने पर मजबूर होंगे। पुलिस प्रशासन पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि इस तरह की गंभीर घटनाओं पर कार्रवाई में देरी क्यों हो रही है।
जातिगत उत्पीड़न और सामाजिक असुरक्षा
यह घटना न केवल एक घिनौना अपराध है, बल्कि समाज में दलित समुदाय के प्रति व्याप्त असुरक्षा और भेदभाव का प्रतीक भी है। दलित समाज के लोग अक्सर इस तरह की घटनाओं का शिकार होते हैं, जहाँ उनके साथ अन्याय होता है और उन्हें न्याय पाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ता है। इस घटना में भी दोनों लड़कियाँ दलित समुदाय से ताल्लुक रखती हैं, और उनके परिवार के पास न तो पर्याप्त आर्थिक संसाधन हैं, और न ही सामाजिक प्रभाव, जो उन्हें जल्द न्याय दिलाने में मदद कर सके।
इस घटना को पुलिस में दर्ज क्यों नहीं किया गया?
इस मामले में पंचायत की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। सवाल यह उठता है कि जब इतनी गंभीर घटना हुई थी, तब इसे तुरंत पुलिस में दर्ज क्यों नहीं किया गया? क्यों पंचायत ने इस मामले को दो दिनों तक अपने स्तर पर सुलझाने की कोशिश की? यह दर्शाता है कि ग्रामीण इलाकों में आज भी जातिगत समीकरण और सामाजिक दबाव के चलते पीड़ितों को न्याय से वंचित किया जाता है।
पीड़िताओं की हालत और सामाजिक संघर्ष
पीड़ित लड़कियों और उनके परिवार के लिए यह घटना सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक आघात भी है। दलित समुदाय से आने के कारण उन्हें समाज के कई हिस्सों में पहले से ही हाशिए पर रखा जाता है, और जब ऐसे अत्याचार होते हैं, तो उनका संघर्ष और गहरा हो जाता है। वे न केवल अपराध के खिलाफ लड़ाई लड़ते हैं, बल्कि समाज में मौजूद जातिगत भेदभाव और असमानता से भी जूझते हैं।
पीड़िताओं के परिवार वालों का कहना है कि उन्हें न्याय की उम्मीद है, लेकिन इस घटना ने उनकी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया है। परिवार वालों का यह भी आरोप है कि अगर पुलिस और प्रशासन पहले ही सक्रिय हो जाते, तो शायद आरोपियों को पकड़ने में इतनी देरी नहीं होती।
सामाजिक और कानूनी सवाल
यह घटना सिर्फ एक आपराधिक मामला नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज के ताने-बाने पर भी सवाल खड़ा करती है। ऐसी घटनाएं बार-बार इस बात को उजागर करती हैं कि हमारे समाज में अभी भी महिलाओं, खासकर दलित महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर चुनौतियाँ हैं। समाज के कमजोर तबकों के प्रति अपराधों को सख्ती से निपटाने की जरूरत है, ताकि दलित समुदाय को न्याय और सुरक्षा मिल सके।
पुलिस और प्रशासन को इस मामले में त्वरित और निष्पक्ष जांच करनी चाहिए, ताकि दोषियों को जल्द से जल्द सजा मिल सके। वहीं, समाज में भी इस तरह के अपराधों के प्रति जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है, ताकि पीड़ितों को न्याय मिल सके और इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
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न्याय जाति, वर्ग और सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार पर तय
पलामू की यह घटना दलित समुदाय के प्रति समाज में व्याप्त असमानता और भेदभाव की कड़वी सच्चाई को उजागर करती है। यह घटना सिर्फ दो लड़कियों के साथ हुआ अपराध नहीं है, बल्कि यह उस समाज की तस्वीर पेश करती है जहाँ न्याय की परिभाषा जाति, वर्ग और सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार पर तय होती है। हमें इस घटना से सबक लेना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे समाज में हर वर्ग के लोगों को समान अधिकार और सुरक्षा मिले, ताकि इस तरह की शर्मनाक घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
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