पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे देश के पहले सिख प्रधानमंत्री और एक प्रख्यात अर्थशास्त्री थे। 1991 में वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने आर्थिक सुधारों (LPG मॉडल) की नींव रखी, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिली। 2004-2014 के दौरान प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने 2008 की वैश्विक मंदी के बीच भी भारत को आर्थिक स्थिरता दी। वे सादगी और ईमानदारी के प्रतीक थे, जिन्होंने हमेशा सामाजिक न्याय और लोकतांत्रिक मूल्यों की वकालत की। उनका निधन देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार रात 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे देश के पहले सिख प्रधानमंत्री और विश्व के सबसे कुशल अर्थशास्त्रियों में से एक माने जाते थे। 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने देश को नई दिशा दी और अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान की। उनका व्यक्तित्व सरल, शांत और मर्यादित था, जो आज के नेताओं से बिल्कुल अलग था। वे बिना किसी विवादित बयान के अपनी कार्यशैली और उपलब्धियों के लिए पहचाने जाते थे। डॉ. सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को पंजाब के गाह (अब पाकिस्तान में) नामक गांव में हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया। उन्होंने अपनी शिक्षा पंजाब यूनिवर्सिटी, कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड से पूरी की। अर्थशास्त्र में उनकी गहरी समझ ने उन्हें भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर और बाद में वित्त मंत्री का पद संभालने का अवसर प्रदान किया।
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1991 के आर्थिक सुधार: राव-मनमोहन मॉडल की नींव
डॉ. मनमोहन सिंह का सबसे बड़ा योगदान 1991 में वित्त मंत्री के रूप में देखा गया, जब उन्होंने देश की आर्थिक स्थिति को नाजुक दौर से उबारा। उस समय भारत के पास केवल 5.80 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा था, और देश को अपने सोने को गिरवी रखने की नौबत आ गई थी। लेकिन डॉ. सिंह और तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने मिलकर उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) का मॉडल लागू किया। इस मॉडल ने भारतीय अर्थव्यवस्था को न केवल स्थिर किया बल्कि उसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। विदेशी कंपनियां भारत में निवेश के लिए आगे आईं और निजी क्षेत्र को बढ़ावा मिला। इसे “राव-मनमोहन मॉडल” के नाम से जाना जाता है।
प्रधानमंत्री के रूप में आर्थिक और सामाजिक विकास की दिशा में योगदान
प्रधानमंत्री के रूप में डॉ. सिंह ने 2008 की वैश्विक मंदी के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था को 7% की वृद्धि दर बनाए रखने में मदद की, जब कई विकसित देश बुरी तरह प्रभावित हो रहे थे। उनकी नीतियों ने भारत को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल किया। लेकिन उनका योगदान केवल अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं था। उन्होंने सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में भी उल्लेखनीय कार्य किए।
आजादी का मतलब: हर नागरिक की स्वतंत्रता
डॉ. सिंह ने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि आजादी का मतलब केवल सरकार की स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि यह हर भारतीय नागरिक की स्वतंत्रता है। उन्होंने कहा था कि आजादी का अर्थ है हर व्यक्ति को सवाल पूछने और अपने विचार रखने की स्वतंत्रता मिले। यह स्वतंत्रता केवल ताकतवर या विशेषाधिकार प्राप्त लोगों तक सीमित नहीं होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि किसी की स्वतंत्रता का इस्तेमाल दूसरों की आजादी में बाधा डालने के लिए नहीं होना चाहिए।
विभाजनकारी राजनीति और लोकतंत्र पर चिंता
डॉ. सिंह ने देश में बढ़ती विभाजनकारी राजनीति पर गहरी चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था कि धर्म, जाति और भाषा के आधार पर लोगों को बांटने की कोशिश की जा रही है, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। उन्होंने लोगों से अपील की थी कि वे ऐसी नीतियों को खारिज करें और संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए एकजुट हों।
सादगी और ईमानदारी का प्रतीक
डॉ. मनमोहन सिंह अपनी सादगी और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। उनका जीवन विवादों से दूर और मर्यादा में बंधा रहा। वे न कभी अनावश्यक बयान देते थे और न ही अपनी उपलब्धियों का प्रचार करते थे। उनका शांत और गंभीर व्यक्तित्व उन्हें आज के नेताओं से अलग बनाता है।
डॉ. मनमोहन सिंह का निधन भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वे केवल एक महान नेता या अर्थशास्त्री नहीं थे, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतीक थे। उनका जीवन और उनकी नीतियां आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी। जीवन और उनकी नीतियां आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेंगी।
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