दलित चेहरे पर दांव लगाएगी BJP! क्या दलित को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाएगी ?

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बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले दलित विरोधी छवि को बदलने और कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खरगे को टक्कर देने के लिए दलित नेता को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना सकती है। अर्जुन राम मेघवाल, दुष्यंत गौतम और बेबी रानी मौर्य जैसे नाम चर्चा में हैं। यह कदम दलित वोट बैंक को साधने और कांग्रेस के आरोपों का जवाब देने की रणनीति माना जा रहा है।

POLITICS: भारतीय जनता पार्टी (BJP) की राष्ट्रीय राजनीति में एक नया मोड़ आने वाला है। खबरें हैं कि पार्टी अपने अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए किसी दलित नेता को चुन सकती है। यह कदम कांग्रेस के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के दलित होने के कारण उठाने की चर्चा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह बीजेपी की वास्तविक “समावेशी राजनीति” का हिस्सा है, या फिर केवल एक चुनावी रणनीति? पिछले एक दशक में बीजेपी के नेतृत्व ने बार-बार अपनी समावेशी राजनीति का दावा किया है, लेकिन क्या यह दावा हकीकत में साबित हुआ है?

दलित समुदाय और बीजेपी का रिश्ता

बीजेपी की छवि लंबे समय से दलितों और हाशिये पर खड़े समुदायों के प्रति उदासीन रही है। विपक्षी दल, विशेष रूप से कांग्रेस, ने हमेशा बीजेपी को दलित विरोधी बताने का प्रयास किया है। हाल ही में, कांग्रेस ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि वह दलित समुदाय को केवल वोट बैंक के रूप में देखती है और उनके वास्तविक मुद्दों को कभी प्राथमिकता नहीं देती। भाजपा ने भले ही राष्ट्रपति पद के लिए रामनाथ कोविंद और द्रौपदी मुर्मू जैसे नामों को आगे बढ़ाया हो, लेकिन क्या ये कदम दलित और आदिवासी समुदाय के सशक्तिकरण के लिए पर्याप्त हैं? कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी दलितों को केवल प्रतीकात्मक स्थान देती है, जबकि उनकी असली समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं देती।

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“दलित अध्यक्ष” की राजनीति या मजबूरी?

2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटों में गिरावट ने पार्टी नेतृत्व को सोचने पर मजबूर कर दिया है। एससी और एसटी वोट बैंक में कांग्रेस ने जो सेंधमारी की, उसने बीजेपी को झकझोर दिया है। ऐसे में दलित समुदाय को अपनी ओर खींचने के लिए बीजेपी “दलित अध्यक्ष” का दांव खेल सकती है। अर्जुन राम मेघवाल, दुष्यंत गौतम और बेबी रानी मौर्य जैसे नामों पर चर्चा हो रही है। लेकिन सवाल यह है कि अगर बीजेपी वास्तव में दलितों के लिए इतनी चिंतित है, तो अब तक उनके उत्थान के लिए क्या ठोस कदम उठाए गए?

आरक्षण और बीजेपी की विचारधारा

आरएसएस और बीजेपी की विचारधारा पर दलित समुदाय का भरोसा हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है। विपक्षी दलों ने बार-बार बीजेपी पर आरक्षण को खत्म करने की योजना बनाने का आरोप लगाया है। 2024 के चुनाव में कांग्रेस ने इसी मुद्दे को भुनाने की कोशिश की थी। बीजेपी के इस कथित “दलित विरोधी” रवैये के कारण समाज के इस वर्ग में पार्टी के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है। ऐसे में, क्या केवल एक दलित अध्यक्ष बनाना इस नाराजगी को दूर कर सकता है?

दलितों के लिए सिर्फ प्रतीकवाद?

बीजेपी का दावा है कि वह समावेशी राजनीति की पक्षधर है, लेकिन जमीनी स्तर पर सच्चाई कुछ और ही बयां करती है। दलितों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार, आरक्षण के मुद्दे पर अनिश्चितता और रोजगार में भेदभाव जैसे मुद्दे बीजेपी की कथनी और करनी के बीच खाई को उजागर करते हैं। दलित समुदाय के बुद्धिजीवी और नेता मानते हैं कि बीजेपी का यह कदम एक “राजनीतिक नाटक” है। उनका कहना है कि अगर बीजेपी वास्तव में दलितों के लिए काम करना चाहती है, तो उसे प्रतीकात्मक राजनीति से ऊपर उठकर उनके अधिकारों और मुद्दों को प्राथमिकता देनी होगी।

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2024 में बीजेपी के लिए चुनौती

कांग्रेस के खरगे जैसे दलित नेता के नेतृत्व में मुकाबला करना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा। अगर बीजेपी अपना दलित विरोधी टैग हटाना चाहती है, तो केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष का चेहरा बदलने से बात नहीं बनेगी। उसे दलित समुदाय के लिए ठोस नीतियों और योजनाओं को जमीन पर उतारना होगा। वरना, यह कदम भी केवल चुनावी जुमलेबाजी बनकर रह जाएगा।

दलित अध्यक्ष का मुद्दा बीजेपी के लिए एक परीक्षा है। अगर यह कदम केवल राजनीतिक रणनीति साबित होता है, तो दलित समुदाय का भरोसा जीतना मुश्किल होगा। यह समय बीजेपी के लिए न केवल अपनी छवि बदलने का है, बल्कि दलित समुदाय के साथ ईमानदारी से जुड़ने का भी।

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