कर्नाटक के हनाकेरे गांव में प्रशासन ने दलितों को पहली बार मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी, जिससे नाराज ऊंची जाति के लोग मूर्ति उठाकर ले गए। इस घटना ने जातिगत भेदभाव और दलितों के अधिकारों के संघर्ष को उजागर किया।
कर्नाटक के मांड्या जिले के हनाकेरे गांव में एक ऐतिहासिक और साहसिक कदम उठाया गया जब प्रशासन ने दलितों को पहली बार कालभैरवेश्वर मंदिर में प्रवेश और पूजा करने की अनुमति दी। इस अनुमति के बाद गांव में तनाव फैल गया और ऊंची जाति के लोग, जो यहां के मंदिर पर पारंपरिक अधिकार का दावा करते थे, अपनी असहमति को व्यक्त करने के लिए वहां स्थापित धातु की उत्सव मूर्ति को अपने साथ ले गए। उनका कहना था कि “मंदिर आप रखो, हम मूर्ति ले जा रहे हैं।” ऊंची जाति के इस प्रकार के विरोध के बावजूद, यह घटना दलित समुदाय के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई है।
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पुरानी परंपराओं को तोड़ने का संघर्ष और सामाजिक बदलाव
इस गांव का पुराना कालभैरवेश्वर मंदिर वर्षों से दलितों के लिए निषिद्ध क्षेत्र था। यहां के ऊंची जाति के लोग, विशेषकर वोक्कालिगा जाति से जुड़े लोग, हमेशा इस मंदिर को अपने अधिकार क्षेत्र में मानते आए हैं। लगभग तीन साल पहले, इस मंदिर के पुराने ढांचे को ध्वस्त कर एक नया मंदिर बनाया गया, पर दलितों को इसमें प्रवेश का अधिकार अब तक नहीं मिला था। राज्य सरकार के धार्मिक बंदोबस्ती विभाग द्वारा इस मंदिर को अपने नियंत्रण में लेने के बाद, दलित समुदाय ने एक नया साहस दिखाते हुए मंदिर में प्रवेश का अधिकार मांगा। उन्होंने अपने इस अधिकार के लिए आवाज उठाई और प्रशासन से शिकायत की, जिसके बाद दो शांति बैठकें बुलाई गईं, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। अंततः रविवार को प्रशासन ने दलितों को पुलिस सुरक्षा के बीच मंदिर में प्रवेश कराया, जिससे दलितों ने सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया।
समानता की दिशा में समाज की सोच बदलने की जरूरत
ऊंची जाति के लोगों का इस प्रकार से मूर्ति को उठा ले जाना और “मंदिर तुम रख लो” जैसी बातें कहना इस समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव की सच्चाई को उजागर करता है। यह घटना एक सबक है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में भी सामाजिक समानता के रास्ते में अभी भी कितनी बड़ी बाधाएं हैं। जहां एक ओर ऊंची जाति के लोग पुरानी परंपराओं को कायम रखना चाहते हैं, वहीं दलित समुदाय समानता की इस लड़ाई को थामे हुए हैं और अपने अधिकारों के लिए अडिग हैं।
दलितों का हौसला और संकल्प
हनाकेरे गांव में दलितों का मंदिर में प्रवेश करना एक साधारण घटना नहीं, बल्कि एक प्रतीकात्मक जीत है जो दिखाती है कि समानता की दिशा में किए गए छोटे-छोटे प्रयास भी समाज में बड़े बदलाव ला सकते हैं। यह घटना उन सभी दलितों के लिए एक प्रेरणा बनकर आई है, जो वर्षों से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
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