हैदराबाद यूनिवर्सिटी के दलित शोधार्थी रोहित वेमुला ने 8 साल पहले आज ही के दिन 17 जनवरी को आत्महत्या की थी। सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए तमाम दलित चिंतकों-बुद्धिजीवियों ने उनके साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद की है। गौरतलब रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद से ही जातिवाद और हमारे देश में दलितों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार-बदसलूकी और उनकी दयनीय स्थिति पर ज्यादा ताकत से सवाल उठने शुरू हुए। तमाम दलित बुद्धिजीवियों ने अपने समाज के लिए मोर्चा लेना शुरू किया। रोहित वेमुला की मौत के बाद देशभर में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए और आज इस दिन को शहादत दिवस के तौर पर मनाने की मांग भी उठती आयी है।
आज के दिन रोहित वेमुला को न्याय दिलाने की मांग करते हुए हंसराज मीणा कहते हैं, ‘यूनिवर्सिटी टॉपर था। स्कॉलरशिप रोक दी गई थी। हॉस्टल से निकाल दिया गया था। सड़क पर सोने को मजबूर किया गया। उसके 2 गुनाह थे। पहला वो बैकवर्ड था दूसरा वह जयभीम बोलता था। आज उसकी शहादत को 8 वर्ष पूरे हुए, लेकिन न्याय नहीं मिला। नाम तो याद ही होगा। रोहित वेमुला।’
वहीं भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद उन्हें याद करते हुए अपने X हैंडल पर लिखते हैं, ‘भाई रोहित वेमुला की शहादत दिवस पर उन्हें शत शत नमन। रोहित वेमुला का सुसाइड नोट सिर्फ एक कागज नहीं, बल्कि उन लाखों युवाओं का दर्द है जिनके साथ आज भी शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव होता है। रोहित भाई की शहादत ने लाखों युवाओं को जिंदा किया है। आप हमारे दिलों में हमेशा अमर रहेंगे।’
रोहित वेमुला ने क्या लिखा था अपने सुसाइड नोट में
रोहित वेमुला की मौत के बाद उनका सुसाइड नोट मीडिया में वायरल हुआ था। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि ‘मेरा जन्म लेना ही भयानक हादसा है’। रोहित वेमुला ने अपने अंतिम पत्र क्या लिखा था, आइए पढ़ते हैं- गुडमोर्निंग, आप जब ये पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं नहीं होऊंगा। मुझ पर नाराज मत होना। मैं जानता हूं कि आप में से कई लोगों को मेरी परवाह थी, आप लोग मुझसे प्यार करते थे और आपने मेरा बहुत ख्याल भी रखा। मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। मुझे हमेशा से खुद से ही समस्या रही है। मैं अपनी आत्मा और अपनी देह के बीच की खाई को बढ़ता हुआ महसूस करता रहा हूं। मैं एक दानव बन गया हूं और मैं अतिक्रूर हो चला। मैं तो हमेशा लेखक बनना चाहता था। विज्ञान का लेखक, कार्ल सेगन की तरह और अंततः मैं सिर्फ यह एक पत्र लिख पा रहा हूं…मैंने विज्ञान, तारों और प्रकृति से प्रेम किया, फिर मैंने लोगों को चाहा, यह जाने बगैर कि लोग जाने कब से प्रकृति से दूर हो चुके। हमारी अनुभूतियां नकली हो गई हैं हमारे प्रेम में बनावट है। हमारे विश्वासों में दुराग्रह है। इस घड़ी मैं आहत नहीं हूं, दुखी भी नहीं, बस अपने आपसे बेखबर हूं। एक इंसान की कीमत, उसकी पहचान एक वोट… एक संख्या… एक वस्तु तक सिमट कर रह गई है। कोई भी क्षेत्र हो, अध्ययन में, राजनीति में, मरने में, जीने में, कभी भी एक व्यक्ति को उसकी बुद्धिमत्ता से नहीं आंका गया।’
रोहित ने आगे लिखा था, ‘इस तरह का खत मैं पहली दफा लिख रहा हूं। आखिरी खत लिखने का यह मेरा पहला अनुभव है। अगर यह कदम सार्थक न हो पाए तो मुझे माफ कीजिएगा। हो सकता है इस दुनिया, प्यार, दर्द, जिंदगी और मौत को समझ पाने में, मैं गलत था। कोई जल्दी नहीं थी, लेकिन मैं हमेशा जल्दबाजी में रहता था। एक जिंदगी शुरू करने की हड़बड़ी में था। इसी क्षण में, कुछ लोगों के लिए जिंदगी अभिशाप है। मेरा जन्म मेरे लिए एक घातक हादसा है। अपने बचपन के अकेलेपन से मैं कभी उबर नहीं सका। अतीत का एक क्षुद्र बच्चा। इस वक्त मैं आहत नहीं हूं… दुखी नहीं हूं, मैं बस खाली हो गया हूं। अपने लिए भी बेपरवाह। यह दुखद है और इसी वजह से मैं ऐसा कर रहा हूं। लोग मुझे कायर कह सकते हैं और जब मैं चला जाऊंगा तो स्वार्थी, या मूर्ख भी समझ सकते हैं। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुझे क्या कहा जा रहा है। मैं मौत के बाद की कहानियों, भूतों या आत्माओं पर विश्वास नहीं करता। अगर किसी बात पर मैं विश्वास करता हूं तो वह यह है कि मैं अब सितारों तक का सफर कर सकता हूं। और दूसरी दुनिया के बारे में जान सकता हूं।’
अंतिम खत में रोहित आगे लिखते हैं, ‘जो भी इस खत को पढ़ रहे हैं, अगर आप मेरे लिए कुछ कर सकते हैं, तो मुझे सात महीने की फेलोशिप मिलनी बाकी है जो एक लाख और 75 हजार रुपये है, कृपया ये कोशिश करें कि वह मेरे परिवार को मिल जाए। मुझे 40 हजार रुपये के करीब रामजी को देना है। उसने कभी इन पैसों को मुझसे नहीं मांगा, मगर कृपा करके ये पैसे उसे दे दिए जाएं। मेरी अंतिम यात्रा को शांतिपूर्ण और सहज रहने दें। ऐसा व्यवहार करें कि लगे जैसे मैं आया और चला गया। मेरे लिए आंसू न बहाएं। यह समझ लें कि जिंदा रहने की बजाय मैं मरने से खुश हूं। ‘परछाइयों से सितारों तक’ उमा अन्ना, मुझे माफ कीजिएगा कि ऐसा करने के लिए मैं आपके कमरे का इस्तेमाल कर रहा हूं। एएसए (आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोशिएशन) परिवार के लिए, माफ करना मैं आप सबको निराश कर रहा हूं। आपने मुझे बेहद प्यार किया। मैं उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं दे रहा हूं। आखिर बार के लिए जय भीम मैं औपचारिकताएं पूरी करना भूल गया। मेरी खुदकुशी के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है। किसी ने ऐसा करने के लिए मुझे उकसाया नहीं, न तो अपने शब्दों से और न ही अपने काम से। यह मेरा फैसला है और मैं अकेला व्यक्ति हूं, जो इस सबके लिए जिम्मेदार है। कृपया मेरे जाने के बाद, इसके लिए मेरे मित्रों और शत्रुओं को परेशान न किया जाये।’
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।