मध्यप्रदेश: बीते शुक्रवार महू के देपालपुर तहसील में दलित के साथ इस हद तक मारपीट की गई कि एक दिन बाद दलित ने दम तोड़ दिया। मामला पट्टे की ज़मीन का बताया जा रहा जिस पर एक महीने पहले ही जिला प्रशासन ने दलित बागरी परिवार को कब्जा दिलवाया था। जानकारी के मुताबिक जब दलित परिवार ज़मीन पर कब्जे के लिए पहुंचा तो आरोपी बाबूसिंह, पवनसिंह ने 60 वर्षीय मायाराम को आरोपियों ने इतना मारा कि इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। मारपीट में दबंगों द्वारा मायाराम के दोनों बेटों सहित 9 लोगों को घायल कर दिया, जिनका इलाज निजी अस्पताल में किया जा रहा है।
ज़मीन पर कब्जे का था मामला :
मामले पर इलाके के अपर कलेक्टर एवं देपालपुर के प्रभारी एडीएम राजेश राठौड़ के मुताबिक मामला देपालपुर के गौतमपुरा से लगे ग्राम काकवां का है। जहां 25 लोगों को साल 2002 में पट्टे मिले थे। 10 परिवार तो काबिज हो गए थे, 15 काबिज नहीं हो पाए थे। इस पर राजपूत परिवार का कब्जा था। तीन साल तक कोर्ट में संघर्ष के बाद बागरी परिवार कोर्ट से जीता तो एडीएम राजेश राठौड़ के निर्देश पर एसडीएम देपालपुर ने इन दलितों को एक महीने पहले ही कब्जा दिलवाया था। लेकिन जब दलित परिवार कब्जे के लिए पहुंचा तो राजपूतों ने उन्हें बेराहमी से पीट पीटकर जान ले ली।
4 आरोपी गिरफ्तार :
पुलिस के मुताबिक प्रशासन ने 4 लाख रुपए की सहायता मृतक के परिजन को दी है। घायलों को 25-25 हजार रुपए दिए हैं। मामले में चार आरोपी गिरफ्तार हो चुके हैं। वहीं मामले पर परिजनों ने पुलिस पर देरी से कार्यवाही करने का आरोप लगाया है। उनका कहना हैं कि जिस दिन घटना हुई, उसी दिन यदि गंभीरता से लेते तो मामला इतना नहीं बढ़ता। पुलिस ने बाबूसिंह, पवनसिंह, तूफान, गोकुल, नागूसिंह, जितेंद्र, गनीबाई, रेखाबाई, नन्नीबाई के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया है। मौत के बाद हत्या की धारा बढ़ाई है।
पुलिस की मौजूदगी में अंतिम संस्कार
मायाराम की मौत के बाद शनिवार सुबह पीएम हुआ फिर पुलिस बल की मौजूदगी में ग्राम काकवां में ही अंतिम संस्कार किया गया। दबंग और दलित परिवार के बीच विवाद होने से प्रशासन और पुलिस भी पूरे समय मौजूद रहा। शव के साथ दलित नेता मनोज परमार, बागरी समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष परशुराम सिसोदिया, जिलाध्यक्ष नरेंद्र बागरी, भीम आर्मी के विनोद यादव भी पहुंचे। हालांकि किसी तरह की स्थिति नहीं बिगड़ी। एडीएम राठौड़ ने बताया कि आरोपी बाबूसिंह पर पहले ही 6 केस दर्ज हैं। वहीं राजपूतों के मकान तोड़ने की कार्रवाई इससे पहले ही कर दी गई थी।
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