Delhi Election: क्या केजरीवाल का गढ़ ढह जाएगा? प्रवेश वर्मा ने लिखकर दी भविष्यवाणी….

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में नई दिल्ली सीट पर अरविंद केजरीवाल को भाजपा उम्मीदवार प्रवेश वर्मा ने कड़ी चुनौती दी है। वर्मा ने लिखित भविष्यवाणी करते हुए दावा किया कि केजरीवाल 20 हजार वोटों से हारेंगे और तीसरे नंबर पर रहेंगे। वर्मा ने केजरीवाल पर झूठे वादों और भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा कि जनता ने मन बना लिया है। वहीं, यह सीट त्रिकोणीय मुकाबले का केंद्र बन गई है, जहां कांग्रेस के संदीप दीक्षित भी मैदान में हैं।

नई दिल्ली विधानसभा सीट पर इस बार चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण बन गया है। आम आदमी पार्टी (आप) के मुखिया और दिल्ली के तीन बार मुख्यमंत्री रहे अरविंद केजरीवाल को भाजपा के प्रवेश वर्मा और कांग्रेस के संदीप दीक्षित से कड़ी चुनौती मिल रही है। हालांकि, इस पूरे सियासी शोर के बीच दलितों के मुद्दे और उनके अधिकार कहीं खोते नज़र आ रहे हैं। यह सीट, जो हमेशा से सत्ता का प्रतीक रही है, अब राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और व्यक्तिगत हमलों का मैदान बन चुकी है। अरविंद केजरीवाल पर भाजपा और कांग्रेस ने दलित-विरोधी नीतियों का आरोप लगाया है। प्रवेश वर्मा ने दावा किया है कि केजरीवाल को नई दिल्ली सीट से 20 हजार वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ेगा। लेकिन यह सवाल अहम है कि इस सियासी लड़ाई में दलित समुदाय की वास्तविक स्थिति क्या है?

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अरविंद केजरीवाल और दलित वादों का छलावा

केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के दलितों को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार देने के बड़े-बड़े वादे किए थे। लेकिन धरातल पर सच्चाई कुछ और ही बयां करती है। दलित बस्तियों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहद दयनीय है। मोहल्ला क्लीनिक सिर्फ पोस्टरों और विज्ञापनों में नज़र आते हैं, जबकि दलित इलाकों में चिकित्सा सुविधाओं का अभाव है। शिक्षा के क्षेत्र में भी सरकारी स्कूलों की हालत जस की तस बनी हुई है। जिन बच्चों को फ्री और उच्च गुणवत्ता की शिक्षा मिलनी चाहिए थी, वे आज भी निजी स्कूलों के बढ़ते खर्चों और भेदभाव का शिकार हो रहे हैं। केजरीवाल सरकार ने ‘जय भीम मुख्यमंत्री योजना’ का ऐलान किया था, जिसमें दलित छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए मदद का वादा किया गया था। लेकिन यह योजना केवल कागजों तक ही सीमित रह गई।

भाजपा और कांग्रेस: दलितों के मुद्दे पर खामोशी

भाजपा ने भी अपने प्रचार अभियान में दलित समुदाय का नाम लेने से परहेज किया है। प्रवेश वर्मा ने केजरीवाल पर व्यक्तिगत हमले तो किए लेकिन दलित समुदाय की समस्याओं पर उनकी ओर से कोई ठोस बयान नहीं आया। भाजपा की केंद्र सरकार ने कई योजनाओं का ऐलान किया, लेकिन नई दिल्ली क्षेत्र में रहने वाले दलितों का कहना है कि उन योजनाओं का लाभ उन्हें कभी नहीं मिला। कांग्रेस, जो कभी दलितों की सबसे बड़ी हिमायती पार्टी मानी जाती थी, अब केवल चुनाव के समय दलितों का नाम लेती है। संदीप दीक्षित ने भी अपने प्रचार में दलितों के लिए कोई विशेष एजेंडा पेश नहीं किया।

दलितों के लिए कौन?

इस त्रिकोणीय मुकाबले में सबसे अहम सवाल यह है कि दलित समुदाय की आवाज़ कौन बनेगा? भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी तीनों ही दल दलितों को सिर्फ वोट बैंक के रूप में देखते हैं। अरविंद केजरीवाल, जो अपने आपको आम आदमी का नेता कहते हैं, दलितों के मुद्दों पर चुप्पी साधे हुए हैं। प्रवेश वर्मा और संदीप दीक्षित भी केवल राजनीति चमकाने में व्यस्त हैं। वहीं, दलित समुदाय अब अपने लिए एक सशक्त और ईमानदार नेतृत्व की तलाश में है, जो उनके अधिकारों और कल्याण के लिए वास्तविक काम कर सके।

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राजनीति के शोर में दबती दलितों की आवाज़

नई दिल्ली विधानसभा सीट इस बार केवल राजनीतिक दावों और प्रतिदावों का मैदान बनकर रह गई है। अरविंद केजरीवाल को जहां सत्ता बचाने की चिंता है, वहीं भाजपा और कांग्रेस उनकी विफलताओं का फायदा उठाने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन इस पूरी सियासत में दलितों की आवाज़ दबती जा रही है। एंटी इनकंबेंसी का असर चाहे अरविंद केजरीवाल पर कितना भी हो, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या इस बार चुनावी नतीजे दलित समुदाय के हक में होंगे, या वे एक बार फिर सियासी साजिशों और वादाखिलाफी के शिकार बनेंगे?

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