दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025: केजरीवाल सरकार ने दलितों को दिया धोखा, 5 साल में क्या बदला?

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में दलित मुद्दे प्रमुखता से उभर रहे हैं। केजरीवाल सरकार पर दलितों की उपेक्षा और वादे पूरे न करने के आरोप हैं। कांग्रेस और बीजेपी दलित वोटबैंक लुभाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन उनकी नीतियों पर भी विश्वास की कमी है। दलित समुदाय अब जागरूक होकर अपने अधिकारों और सामाजिक न्याय की मांग को लेकर निर्णायक भूमिका निभाने के लिए तैयार है।

दिल्ली में 2025 के विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं। दिल्ली की राजनीति में इस बार आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस के बीच एक जबरदस्त मुकाबला देखने को मिलेगा। चुनावी रणभूमि में, खासकर दलित समुदाय के लिए यह चुनाव काफी अहमियत रखता है, क्योंकि हर राजनीतिक दल इस बार दलित वोटबैंक पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कई योजनाओं का ऐलान कर रहा है। लेकिन, इसके बावजूद, दिल्ली की मौजूदा केजरीवाल सरकार की नीतियां और अन्य राजनीतिक दलों का रवैया दलितों के मुद्दों को लेकर सवालों के घेरे में है।

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केजरीवाल सरकार का दमनकारी रवैया और दलितों की अनदेखी

आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार ने दिल्ली में अनेक सुधारों का दावा किया है, लेकिन दलितों के लिए उनके प्रशासनिक निर्णय और योजनाएं सवालिया निशान खड़े करते हैं। दिल्ली में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में सुधारों का दावा करने वाली केजरीवाल सरकार ने दलितों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं। जब बात आती है दलितों के लिए आरक्षित रोजगार और सामाजिक कल्याण योजनाओं की, तो आम आदमी पार्टी का रवैया हमेशा ही आलोचना का शिकार रहा है। इसके अलावा, दिल्ली सरकार के प्रमुख योजनाओं में से कई में दलितों का हिस्सा और लाभ नगण्य रहा है, जिससे उनके बीच असंतोष फैल रहा है। केजरीवाल सरकार के खिलाफ यह भी आरोप लगे हैं कि उन्होंने दलितों के लिए घोषित योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया है, जिससे इन समुदायों के भीतर एक मजबूत आक्रोश का जन्म हुआ है।

कांग्रेस और बीजेपी के वादे: क्या यह चुनावी चाल है?

वहीं, दिल्ली में कांग्रेस और बीजेपी भी दलितों के वोट पर कब्जा करने के लिए अपनी रणनीतियों को धार दे रही हैं। कांग्रेस ने बवाना से सुरेंद्र कुमार और करोलबाग से राहुल धानक को मैदान में उतारा है, जो दलित समुदाय से आते हैं। यह एक स्पष्ट संकेत है कि कांग्रेस दलितों को अपना समर्थन लुभाने के लिए उन्हें चुनावी मैदान में अपने उम्मीदवार के रूप में पेश कर रही है। दूसरी ओर, बीजेपी ने भी अपने चुनावी मैदान में दलितों को आकर्षित करने के लिए विभिन्न वादे किए हैं, लेकिन बीजेपी की सरकारों द्वारा पहले किए गए वादों और उनके नतीजों को देखकर दलित समुदाय में विश्वास का संकट है।

दलितों के लिए जरूरी बदलाव: एक मजबूत आवाज की आवश्यकता

दिल्ली में दलितों के अधिकारों और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को लेकर एक वास्तविक बदलाव की आवश्यकता है। चुनावी वादों की बजाय, दलितों को सशक्त बनाने के लिए ठोस कदमों की जरूरत है। इस बार के चुनाव में, दिल्ली की जनता विशेष रूप से दलित समुदाय के लोग अपने अधिकारों और सम्मान के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने यह ठान लिया है कि अब वे केवल वोट के लिए राजनीतिक दलों के छलावे का शिकार नहीं होंगे। उन्हें दिल्ली में एक ऐसा शासन चाहिए, जो उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाए, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार लाए, और सबसे महत्वपूर्ण, उनके समाज में वास्तविक सामाजिक न्याय लागू हो।

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दलितों की बढ़ती जागरूकता और चुनावी नतीजे

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, दिल्ली के दलित समुदाय में राजनीतिक जागरूकता भी बढ़ती जा रही है। अब वे केवल अपने वोट का सही उपयोग करने के लिए ही नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों द्वारा किए गए वादों का हिसाब लेने के लिए भी तैयार हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में दलितों का वोट इस बार निर्णायक हो सकता है, क्योंकि उन्हें अब समझ में आ गया है कि उनके अधिकारों की असली लड़ाई सिर्फ चुनावों के दौरान नहीं, बल्कि हर दिन और हर सरकार के साथ जारी रहती है। केजरीवाल सरकार और अन्य राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि अब दलितों के समर्थन का मतलब सिर्फ वोट नहीं, बल्कि उनकी मानवीय गरिमा और अधिकारों की रक्षा करना है।

इस चुनावी माहौल में, दलित समुदाय ने यह साबित कर दिया है कि वे अब सिर्फ वोटबैंक नहीं हैं, बल्कि एक सशक्त राजनीतिक ताकत के रूप में उभर रहे हैं। और इस बार, उनका वोट केवल उन्हीं दलों को मिलेगा, जो उनके लिए सच्चे बदलाव की दिशा में काम करेंगे।

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