सीसामऊ उपचुनाव में 60,000 दलित और 20,000 सिख वोटरों पर भाजपा और सपा का विशेष फोकस है। दलित बस्तियों में भाजपा ने घर-घर संपर्क बढ़ाया है, जबकि सपा अपने पूर्व विधायक की उपलब्धियों का जिक्र कर दलितों को जोड़ने का प्रयास कर रही है। दोनों पार्टियां इन वोटरों का समर्थन पाने के लिए पूरी रणनीति के साथ मैदान में हैं, जिससे जीत का फैसला तय होगा।
Kanpur news: सीसामऊ विधानसभा के उपचुनाव में इस बार दलित और सिख वोट बैंक का खास महत्व है, जिनकी संख्या करीब 80 हजार है। इन मतदाताओं में 60 हजार दलित और 20 हजार सिख, पंजाबी और सिंधी समुदाय के लोग शामिल हैं। सीसामऊ की 40 से अधिक दलित बस्तियों में बाल्मीकि, खटीक, कोरी, जाटव, और धानुक जैसी विभिन्न जातियों के लोग निवास करते हैं। इन समुदायों के बीच में भाजपा और सपा इस बार विशेष रणनीति के साथ उतरी हैं। दलितों और सिख मतदाताओं के वोटों को जीतना दोनों ही पार्टियों की प्राथमिकता में है, क्योंकि यही वोट इस उपचुनाव में जीत-हार का अंतर तय करेंगे।
भाजपा की रणनीति: दलित और सिख मतदाताओं के दिल जीतने की कोशिश
भाजपा ने दलित और सिख वोटों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए विशेष योजना बनाई है। पार्टी ने एक-एक दलित और सिख परिवार पर कार्यकर्ताओं की एक टीम लगाई है, जिनका काम है कि वे लोगों के बीच जाकर उनकी समस्याओं को समझें और उन्हें भाजपा के प्रति आकर्षित करें। पार्टी की इस योजना का मकसद यही है कि दलित और सिख समुदाय में एक सकारात्मक छवि बने, ताकि उन्हें समाजवादी पार्टी से दूर किया जा सके। कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना ने पार्टी कार्यकर्ताओं को सख्त निर्देश दिए हैं कि दलित बस्तियों में संपर्क के दौरान उनका लहजा मित्रवत हो और किसी प्रकार का गुस्सा या अनदेखी बिल्कुल न दिखाई जाए। इस बार भाजपा का फोकस है कि सिख वोटों का कम से कम 80 प्रतिशत और दलित बस्तियों का अधिकतम समर्थन हासिल कर सकें।
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सपा की रणनीति: दलितों के पुराने सहयोग को याद दिलाना
वहीं, समाजवादी पार्टी भी दलित और सिख वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। सपा के स्थानीय कार्यकर्ता और पूर्व विधायक का कैंपेन इसी दिशा में काम कर रहा है कि दलित समुदाय को सपा के पिछले कार्यकाल में किए गए कामों की याद दिलाई जाए। पार्टी के पन्ना प्रमुख, बूथ अध्यक्ष, और शक्ति केंद्र प्रभारी लगातार दलित बस्तियों में जाकर लोगों को यह विश्वास दिला रहे हैं कि सपा ने हमेशा उनके हक की लड़ाई लड़ी है और इस बार भी वह उनके साथ खड़ी है। पार्टी को उम्मीद है कि इस भावनात्मक अपील के माध्यम से वह दलितों का समर्थन जुटाने में सफल होगी।
अलग-अलग जातियों में बंटी बस्तियां और मतदाताओं का रुझान
सीसामऊ की दलित बस्तियां अलग-अलग अनुसूचित जातियों में बंटी हुई हैं। इनमें सबसे ज्यादा संख्या बाल्मीकि और खटीक समुदाय की है। पारंपरिक रूप से यह दोनों जातियाँ भाजपा के पक्ष में रही हैं, लेकिन ऐन चुनावी समय पर इनका रुख बदलने का खतरा भी बना रहता है। दूसरी ओर, जाटव, कोरी, और धानुक समुदाय का रुझान किसी एक पार्टी की ओर स्थाई नहीं है। यही वजह है कि इस उपचुनाव में भाजपा और सपा इन जातियों के समर्थन को पाने के लिए भरपूर कोशिश कर रही हैं। भाजपा और सपा दोनों ही जानते हैं कि अगर इन जातियों का समर्थन उनके पक्ष में रहता है, तो जीत पक्की हो सकती है।
सिख वोटरों पर भाजपा की विशेष नजर
सिख मतदाताओं की संख्या भी यहां 20 हजार के करीब है, जिसमें से 60% का रुझान भाजपा की ओर हो सकता है, इस उम्मीद में पार्टी इस बार सिख समुदाय पर विशेष ध्यान दे रही है। सिख समुदाय के लोगों को भाजपा की ओर आकर्षित करने के लिए सिख समाज से जुड़े कार्यकर्ताओं की एक टोली भी बनाई गई है, जो कि इन मतदाताओं से संपर्क साधने का काम कर रही है। भाजपा का मानना है कि सिख समाज के समर्थन के बिना जीत पाना मुश्किल हो सकता है, इसलिए वे इसे प्राथमिकता दे रहे हैं।
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क्या दलित और सिख वोटरों का झुकाव इस बार भाजपा की ओर होगा?
सीसामऊ का यह उपचुनाव भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि दलित और सिख मतदाता किसी एक पार्टी के पक्ष में नहीं बंधे हैं। सपा का भी यही प्रयास है कि इन मतदाताओं को अपने पक्ष में किया जाए। पिछले चुनावों में सपा के इरफान सोलंकी लगातार जीत हासिल करते रहे हैं, लेकिन इस बार उपचुनाव में भाजपा अपनी पुरानी हार को सुधारने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। वहीं, सपा भी पूर्व विधायक की योजनाओं और विकास कार्यों को गिनाकर वोटरों का दिल जीतने की कोशिश कर रही है।
इस चुनावी माहौल में जहां दलित और सिख मतदाता दोनों ही पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण हैं, वहीं दोनों पार्टियां इन्हें अपने पक्ष में करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। यही कारण है कि इस बार सीसामऊ का चुनाव दिलचस्प हो गया है, और यह देखना बाकी है कि इस बार दलित और सिख मतदाताओं का वोट किस ओर झुकेगा।
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