दिल्ली में केजरीवाल सरकार की दलित योजनाएं: दावे बड़े, पर ज़मीनी हकीकत में केजरीवाल घिरे सवालों में, खुली सरकारी दावों की पोल     

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दिल्ली सरकार ने दलित समुदाय के उत्थान के लिए कई योजनाएं शुरू कीं. लेकिन जमीनी हकीकत में योजनाओं के क्रियान्वयन और मंशा में गंभीर खामियां उजागर हुईं। हमारी इस ख़ास रिपोर्ट में दिल्ली सरकार की दलित नियत और योजनाओं की विफलता को उजागर किया है। शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, और रोजगार योजनाओं में धांधली, अधूरा क्रियान्वयन और भेदभाव सामने आया है। ग्राउंड रिपोर्ट और प्रमाणों ने इन योजनाओं की असफलता को स्पष्ट किया है। पढ़ें हमारी ख़ास रिपोर्ट, जो दिल्ली के पूर्व CM केजरीवाल के दावों को झूठा साबित करती हैं….. 

Delhi News: दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने दलित समुदाय के सशक्तिकरण और उत्थान के लिए कई योजनाओं की घोषणा की है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और आवास के क्षेत्र में बड़े दावे किए गए, जिनमें ‘जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना’, ‘जहां झुग्गी, वहीं मकान’, और ‘मोहल्ला क्लीनिक’ जैसी योजनाएं शामिल हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य वंचित तबकों को मुख्यधारा में लाना और उनकी आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक स्थिति को सुदृढ़ करना था। हालांकि, इन योजनाओं के क्रियान्वयन और मंशा की जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है।                                             

दिल्ली में केजरीवाल सरकार की दलित योजनाएं:

मोहल्ला क्लीनिक योजना: दिल्ली सरकार की ‘मोहल्ला क्लीनिक योजना’ स्वास्थ्य सुविधाओं को आम जनता तक पहुंचाने का एक अभिनव प्रयास है। इसे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जुलाई 2015 में शुरू किया था। बता दें, दलित समाज के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं मजबूत करने के लिए ‘मोहल्ला क्लीनिक’ मॉडल को सशक्त किया गया है। इन क्लीनिकों में मुफ्त इलाज, दवाइयां और जांच सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। खासतौर पर दलित बस्तियों में अतिरिक्त क्लीनिक खोले गए हैं ताकि वंचित समुदाय को उनके घर के पास स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें।

जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना: ‘जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना’ को दिल्ली सरकार ने 2018 में लागू किया था। इसका उद्देश्य अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के मेधावी छात्रों को प्रतियोगी (IAS, SSC, JEE, NEET) परीक्षाओं की तैयारी के लिए मुफ्त कोचिंग प्रदान करना था। इस योजना के तहत छात्रों को प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थानों में दाखिला दिलाया गया और उनकी फीस का भुगतान सरकार द्वारा किया गया। बता दें , 2019 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद यह योजना आंतरिक विरोधों और वित्तीय मुद्दों के कारण ठप पड़ गई।

मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना: दिल्ली सरकार ने ‘मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना’ 2018 में शुरू की थी । ये योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) का विस्तार है और इसका उद्देश्य दिल्ली के आर्थिक रूप से कमजोर और दलित परिवारों को मुफ्त इलाज की सुविधा प्रदान करना है।

दलित उद्यमी विकास योजना: आर्थिक क्षेत्र में दलित समुदाय को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दिल्ली सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं। ‘दलित उद्यमी विकास योजना’ दिल्ली सरकार द्वारा 2019 में शुरू की गई थी। इस योजना का उद्देश्य दलित समुदाय के युवाओं और महिलाओं को स्वरोजगार और उद्यमिता के अवसर प्रदान करना है। इस योजना के तहत छोटे और मध्यम व्यवसायों के लिए आसान ऋण उपलब्ध कराए जाते हैं। इस योजना से दलित युवाओं को रोजगार सृजन में मदद मिल रही है। इसके अतिरिक्त, महिला सशक्तिकरण के लिए ‘मुख्यमंत्री रोजगार योजना’ के तहत दलित महिलाओं को स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।

जहां झुग्गी, वहीं मकान’ योजना: दिल्ली सरकार ने 2021 में ‘जहां झुग्गी, वहीं मकान’ योजना शुरू की थी। योजना की घोषणा 2020 में की गई थी, और इसका कार्यान्वयन 2021 में शुरू हुआ। इस योजना का उद्देश्य झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों को सम्मानजनक और स्थायी आवास प्रदान करना है।

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संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर के सम्मान में पहल

दिल्ली सरकार ने दलित समुदाय के प्रेरणास्रोत डॉ. भीमराव अंबेडकर के सम्मान में कई योजनाएं शुरू की हैं। दिल्ली के प्रमुख स्थलों पर अंबेडकर की मूर्तियों और स्मारकों का निर्माण किया गया है। साथ ही, अंबेडकर विश्वविद्यालय में दलित छात्रों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ाई गई है।

फ्री योजनाओं का फायदा

दिल्ली में दलित समुदाय को बिजली, पानी, और बस यात्रा में मुफ्त या सब्सिडी की सुविधाएं दी जा रही हैं। महिलाओं को डीटीसी बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा, और गरीब परिवारों के लिए बिजली बिलों में छूट जैसी योजनाओं ने दलित समुदाय की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया है।

इन योजनाओं की खुली पोल                                 

दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने दलितों के सशक्तिकरण और उत्थान के लिए कई योजनाओं की घोषणा की, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका लाभ दलित समुदाय तक नहीं पहुंच पाया। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक न्याय के दावों के बीच कई ऐसी घटनाएं सामने आईं, जिन्होंने इन योजनाओं की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े किए हैं।

‘जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना’ में धांधली के आरोप

‘जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना’ के तहत गरीब दलित छात्रों को मुफ्त कोचिंग देने का दावा किया गया था, लेकिन इस योजना में धांधली के आरोप सामने आए हैं। ETV Bharat की एक रिपोर्ट में इस योजना की हकीकत उजागर की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में दिल्ली के नरेला और सीमापुरी जैसे इलाकों के कई छात्रों ने शिकायत की कि उन्हें कोचिंग की फीस का रिफंड नहीं मिला। सरकारी आंकड़ों में छात्रों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई, लेकिन जमीनी स्तर पर कई छात्रों को योजना का लाभ नहीं मिला।

इसके अलावा, कई कोचिंग सेंटरों ने घटिया सेवाएं प्रदान करने और वादे के अनुसार पढ़ाई का माहौल न देने की शिकायत की। इन धांधलियों ने न केवल छात्रों का समय और पैसा बर्बाद किया, बल्कि सरकार की इस योजना की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े किए हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि योजना के तहत लाभार्थियों की पहचान और कोचिंग सेंटरों की निगरानी में बड़ी खामियां थीं।

‘जहां झुग्गी, वहीं मकान’ योजना पर सवाल

दलित बस्तियों के पुनर्विकास के लिए ‘जहां झुग्गी, वहीं मकान’ योजना लाई गई थी, जिसमें झुग्गीवासियों को पक्के मकान देने का वादा किया गया था लेकिन हर्ष विहार और संगम विहार जैसे इलाकों में दलित परिवारों ने आरोप लगाया कि उनका नाम लाभार्थियों की सूची से गायब कर दिया गया। 2022 में, हर्ष विहार और संगम विहार जैसे क्षेत्रों में ‘जहां झुग्गी, वहीं मकान’ योजना के तहत दलित परिवारों को पक्के मकान देने का वादा किया गया था, लेकिन इन इलाकों के कई परिवारों ने आरोप लगाया कि उनका नाम लाभार्थियों की सूची से हटा दिया गया। हर्ष विहार में करीब 200 दलित परिवारों ने इस अन्याय के खिलाफ धरना दिया, क्योंकि उन्हें बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के उनकी झुग्गियों से बेदखल कर दिया गया। प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि यह योजना केवल वादों तक सीमित रही, जबकि जमीनी स्तर पर बेदखली की घटनाओं ने उन्हें बेघर कर दिया। इन घटनाओं ने सरकार की नीतियों और उनके कार्यान्वयन पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं, जो वंचित तबकों के लिए असमानता और अन्याय की स्थितियां पैदा करते हैं।

दिल्ली के चिल्ला खादर इलाके में गरीबों के आशियाने उजाड़े जाने के मामले में आंदोलन हो गया था । न्यूज 18 के पत्रकार रवीशंकर सिंह ने 9 जुलाई 2024 की अपनी रिपोर्ट में इस गंभीर मुद्दे को उठाते हुए दिल्ली की केजरीवाल सरकार और डीडीए को इन बेबस और लाचार गरीबों के उजाड़े जाने के लिए जिम्मेदार ठहराया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के सैकड़ों परिवारों को उनके घरों से बेदखल कर दिया गया, जिससे वे खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं।

रवीशंकर सिंह की ग्राउंड रिपोर्ट ने प्रशासन की अनदेखी और बेदखली की इस क्रूर प्रक्रिया को उजागर किया, जिसमें न तो इन परिवारों के पुनर्वास की व्यवस्था की गई और न ही उन्हें न्याय दिलाने की कोई ठोस कोशिश की गई। आंदोलनकारी इन गरीबों के लिए न्याय और पुनर्वास की मांग कर रहे हैं।

वही दूसरी ओर दया बस्ती जैसे इलाकों में दलित परिवारों ने इस योजना को खोखला बताते हुए आरोप लगाया कि सरकार ने उनके लिए कुछ नहीं किया। इन परिवारों का कहना है कि वादों के बावजूद, उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। इस खबर को “न्यूज कप” के पत्रकार रिज़वान अंसारी ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में कवर किया, जिसमें उन्होंने केजरीवाल सरकार की इस योजना की वास्तविकता को उजागर किया। रिपोर्ट में यह दिखाया गया कि योजना के तहत किए गए दावे केवल कागजों तक सीमित हैं और जमीनी स्तर पर झुग्गीवासियों को कोई लाभ नहीं मिला।

मोहल्ला क्लीनिक और स्वास्थ्य योजनाओं का अधूरा क्रियान्वयन

मोहल्ला क्लीनिक के जरिए स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के दावों के बावजूद, दलित बस्तियों में स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी देखी गई। बाबरपुर और करावल नगर की दलित बस्तियों में मोहल्ला क्लीनिक या तो चालू नहीं थे या फिर डॉक्टरों और दवाइयों की अनुपलब्धता के कारण बंद पड़े थे। 2023 में एक आरटीआई के माध्यम से पता चला कि दलित बहुल इलाकों में स्थापित किए गए मोहल्ला क्लीनिकों का सिर्फ 40% सही तरीके से काम कर रहे थे।

दावा : बना दिए 164 मोहल्ला क्लीनिक

दिल्ली सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के उद्देश्य से मोहल्ला क्लीनिकों की स्थापना और सरकारी अस्पतालों में बेड की संख्या बढ़ाने के दावे किए हैं। सरकार के अनुसार, 2018 में 164 मोहल्ला क्लीनिक स्थापित किए जा चुके हैं, 780 के लिए स्थान चिन्हित हो चुके हैं, और आगामी महीनों में कुल 944 क्लीनिक कार्यरत हो जाएंगे। साथ ही, इस वर्ष के अंत तक 3000 अतिरिक्त बेड और अगले वर्ष तक 2500 बेड सरकारी अस्पतालों में जोड़ने की योजना है।

हालांकि, दैनिक जागरण के पत्रकार रमेश मिश्रा की रिपोर्ट के अनुसार, इन दावों और वास्तविकता के बीच अंतर है। रिपोर्ट में उल्लेख है कि सत्ता में आने के बाद, केजरीवाल सरकार ने अस्पतालों में 10,000 बेड बढ़ाने का वादा किया था, जिसमें पहले वर्ष में ही यह संख्या जोड़ने की बात कही गई थी। लेकिन तीन वर्षों में एक भी अस्पताल में बेड की संख्या नहीं बढ़ी है। सरकार जिन बेड वृद्धि की बात कर रही है, वे भी शीला दीक्षित सरकार के समय से ही प्रक्रियाधीन हैं।
इन तथ्यों के मद्देनजर, यह स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए किए गए दावे और जमीनी हकीकत में अंतर है, जिसे दूर करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

हमारी “Dalit Times” की टीम ने हाल ही में दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिक और सरकारी अस्पतालों की स्थिति का जायजा लिया, जहां पिड़ितों ने सरकार के दावों की पोल खोलते हुए कई चौंकाने वाले खुलासे किए। स्थानीय लोगों ने बताया कि न तो क्लीनिक में सभी जरूरी दवाइयां उपलब्ध हैं और न ही अस्पतालों में पर्याप्त बेड। डॉक्टर अक्सर मरीजों को बाहर से दवाइयां खरीदने का सुझाव देते हैं, जबकि कई बार सिफारिश न होने पर इलाज से मना कर दिया जाता है। अस्पतालों में दलालों के सक्रिय नेटवर्क के कारण जरूरतमंद मरीजों को सही इलाज नहीं मिल पाता।

पिड़ितों ने यह भी दावा किया कि सरकार द्वारा वादा किए गए 10,000 नए बेड का कोई असर जमीनी स्तर पर दिखाई नहीं देता। कई लोग लाइन में घंटों खड़े रहने के बावजूद इलाज से वंचित रह जाते हैं।हमारी इस रिपोर्ट ने सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की हकीकत को उजागर किया है, जो सुधार और जवाबदेही की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है। इन मुद्दों को प्रमुखता से उठाकर “Dalit Times” ने पिड़ितों की आवाज को बुलंद किया है और सरकार से जवाबदेही की मांग की है। देखें हमारी ये वीडियो https://youtu.be/MXookAYZHqQ?si=0MroRY5sYR8Ri6-_

दावा: सभी अस्पतालों में मिल रहीं फ्री में दवाइयां

दिल्ली सरकार ने अपने अस्पतालों में मुफ्त दवाइयां, नि:शुल्क एमआरआई और अन्य जांचों की सुविधा प्रदान करने का दावा किया है। साथ ही, यदि सरकारी अस्पताल में इलाज या ऑपरेशन के लिए त्वरित तारीख नहीं मिलती, तो मरीजों को निजी अस्पताल में इलाज कराने की अनुमति देने की बात कही गई है।
हालांकि, दैनिक जागरण के पत्रकार रमेश मिश्रा की एक रिपोर्ट में इन दावों की वास्तविकता पर सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, कई सरकारी अस्पतालों में मरीजों को मुफ्त दवाइयां नहीं मिल रही हैं, और डॉक्टर उन्हें बाहर से दवाइयां खरीदने के लिए कह रहे हैं। इसके अलावा, अस्पतालों में दलालों की सक्रियता और गरीब मरीजों की अनदेखी की समस्याएं भी उजागर की गई हैं।

2018 की इस रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि बिना सिफारिश के मरीजों को चार-चार घंटे लाइन में लगने के बाद भी इलाज नहीं मिल पाता। कई बार डॉक्टर बिना उचित कारण के मरीजों को वापस भेज देते हैं, और पूरे दिन इंतजार करने के बाद भी उन्हें भर्ती नहीं किया जाता। इन मुद्दों को देखते हुए, यह स्पष्ट होता है कि सरकारी दावों और जमीनी हकीकत के बीच अंतर है, जिसे दूर करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

दलित उद्यमी विकास योजना में पारदर्शिता की कमी

‘दलित उद्यमी विकास योजना’ के तहत दलित युवाओं को स्वरोजगार के लिए आर्थिक सहायता देने का दावा किया गया था। लेकिन कई मामलों में यह योजना कागजों तक ही सीमित रही। 2023 में मंडावली के दलित उद्यमियों ने शिकायत की कि योजना के तहत आवेदन करने के बावजूद उन्हें ऋण नहीं मिला। साथ ही, कई आवेदन यह कहकर खारिज कर दिए गए कि लाभार्थी पात्रता पूरी नहीं करते।

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अंबेडकर स्मारकों का निर्माण अधूरा

केजरीवाल सरकार ने डॉ. अंबेडकर के नाम पर कई स्मारक बनाने का वादा किया था। लेकिन करोल बाग स्थित अंबेडकर भवन का पुनर्निर्माण कार्य कई सालो से रुका हुआ था । 2023 में अंबेडकर भवन के अधूरे निर्माण को लेकर दलित संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया और आरोप लगाया कि सरकार केवल वादे करती है लेकिन उनके क्रियान्वयन में गंभीरता नहीं दिखाती।

दलित महिलाओं की सुरक्षा और न्याय पर लापरवाही

दिल्ली में दलित महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में भी सरकार की भूमिका सवालों में रही है। 2024 की शुरुआत में नरेला की एक घटना में एक दलित महिला के साथ दुष्कर्म हुआ, लेकिन पीड़िता ने आरोप लगाया कि स्थानीय प्रशासन और सरकार से कोई सहायता नहीं मिली। इसी तरह, नांगलोई की एक घटना में दलित परिवार को पुलिस सुरक्षा देने का आदेश आने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई।

बिजली और पानी योजनाओं में भेदभाव के आरोप

दिल्ली सरकार ने गरीबों के लिए मुफ्त बिजली और पानी की योजनाएं शुरू की थीं, लेकिन दलित बहुल इलाकों में इनका क्रियान्वयन असमान रहा। बदरपुर और उत्तम नगर की दलित बस्तियों में बिजली कनेक्शन काटे जाने और पानी की नियमित आपूर्ति न होने की शिकायतें सामने आईं।

बता दें , दिल्ली में उच्च बिजली बिलों और झुग्गी बस्तियों में पानी की समस्या को लेकर लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। आरोप है कि फरवरी 2024 में अरविंद केजरीवाल सरकार ने डिस्कॉम कंपनियों के साथ मिलकर बिजली खरीद समायोजन शुल्क (पीपीएसी) बढ़ाया, जिससे घरेलू उपभोक्ताओं के बिजली बिलों में 6-8 प्रतिशत तक वृद्धि हुई।

ईटीवी भारत की 15 जुलाई 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, आम आदमी पार्टी सरकार पर अपने फायदे के लिए डिस्कॉम कंपनियों के साथ साजिश करने का आरोप लगाया गया, जहां पीपीएसी शुल्क 1.5 प्रतिशत से बढ़कर 46 प्रतिशत हो गया। प्रदर्शन में शामिल महिलाओं ने बताया कि उनके बिजली और पानी के बिल बढ़कर 10,000 से 15,000 रुपये तक आ रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि केजरीवाल सरकार ने फ्री बिजली-पानी का वादा कर मध्यम वर्गीय परिवारों के साथ धोखा किया है, क्योंकि अब उन्हें भारी-भरकम बिलों का सामना करना पड़ रहा है।

निष्कर्ष

दिल्ली की केजरीवाल सरकार द्वारा दलित समुदाय के लिए चलाई गई योजनाएं वादों और दावों से भरी थीं, लेकिन उनके क्रियान्वयन और मंशा में भारी खामियां रही हैं। कई योजनाएं या तो कागजों तक सीमित रहीं या फिर उनमें धांधली और भ्रष्टाचार के आरोप सामने आए। शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, और रोजगार के क्षेत्रों में दलित समाज को सशक्त करने की कोशिशें अधूरी साबित हुईं। इन योजनाओं की असफलता ने दलित समुदाय को न केवल निराश किया, बल्कि सरकार की नीतियों और उनकी जवाबदेही पर भी सवाल खड़े किए हैं। इससे स्पष्ट होता है कि केवल घोषणाओं से बदलाव संभव नहीं है; उन्हें जमीनी स्तर पर ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ लागू करना अत्यंत आवश्यक है।

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