जिंदा रहकर मिल न सके, मरकर अमर कर गए: ठाकुर और दलित समुदाय के प्रेमी युगल ने जातिवाद की बेड़ियों को झकझोरा

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उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में एक ठाकुर युवती और दलित युवक ने जातिगत भेदभाव के चलते अलग-अलग स्थानों पर फंदे से लटककर जान दे दी। दोनों के बीच लंबे समय से प्रेम संबंध था, लेकिन समाज की स्वीकृति न मिलने के कारण उन्होंने यह कदम उठाया। यह घटना जातिवादी मानसिकता और सामाजिक भेदभाव पर सवाल खड़ा करती है। पुलिस मामले की जांच कर रही है।

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के असंद्रा थाना क्षेत्र के अकोहरी गांव में रविवार को एक ऐसी घटना सामने आई जिसने समाज में गहराई तक जड़ें जमाए जातिवादी मानसिकता को उजागर कर दिया। गांव के ठाकुर और दलित समुदाय के दो प्रेमी युगल, जो जिंदा रहकर अपनी मोहब्बत को समाज के बंधनों से आजाद नहीं कर पाए, आखिरकार अपनी जान देकर एक संदेश छोड़ गए। सुबह करीब 6 बजे युवती का शव उसके घर के अंदर फंदे से लटका मिला, जबकि युवक का शव गांव के बाहर एक पेड़ से लटका पाया गया। जैसे ही यह खबर फैली, ग्रामीणों में सनसनी फैल गई और मौके पर भीड़ इकट्ठा हो गई।

दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा

पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंचकर जांच शुरू कर दी और दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा। थाना प्रभारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि मामले की हर पहलू से जांच की जा रही है। शुरुआती जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि दोनों में लंबे समय से प्रेम संबंध थे, लेकिन युवती के ठाकुर बिरादरी से होने और युवक के दलित समुदाय से होने के कारण उनका यह रिश्ता समाज की स्वीकृति नहीं पा सका।

ग्रामीणों के अनुसार:

ग्रामीणों के अनुसार, दोनों प्रेमी एक-दूसरे के संपर्क में रहते थे और अपनी जाति के बंधनों से परे जाकर एक नई जिंदगी का सपना देख रहे थे। लेकिन समाज में व्याप्त जातिवादी सोच ने उनकी मोहब्बत को स्वीकारने के बजाय उन्हें इस हद तक मजबूर कर दिया कि उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी।

जातिवाद के खिलाफ सवाल खड़े करती यह घटना

यह घटना जातिवादी मानसिकता पर एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। आखिर कब तक हमारे समाज में जाति के आधार पर लोगों को उनके रिश्ते चुनने का अधिकार नहीं मिलेगा? कब तक प्रेम जैसी पवित्र भावना को जातिवाद की बेड़ियों में जकड़ा जाएगा?

दलित समुदाय के संघर्ष और समाज की जिम्मेदारी

यह घटना न केवल दलित समुदाय के साथ होने वाले अन्याय को उजागर करती है, बल्कि पूरे समाज के लिए एक आईना है। दलित युवक ने अपनी जान देकर यह दिखा दिया कि समाज में जातिवाद केवल एक विचार नहीं, बल्कि एक खतरनाक मानसिकता है, जो प्यार और मानवता को खत्म कर रही है।

जरूरत है सामाजिक बदलाव की

इस घटना के बाद पुलिस और प्रशासन से अधिक समाज को आत्ममंथन करने की जरूरत है। यह समय है कि जातिवाद जैसे भेदभाव को खत्म करने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं। यह घटना एक सबक है कि प्यार को जाति और धर्म के दायरे से ऊपर उठाकर देखा जाए और हर व्यक्ति को अपने जीवनसाथी को चुनने का अधिकार दिया जाए।

बाराबंकी की इस घटना ने न केवल एक युगल की जिंदगी खत्म कर दी, बल्कि समाज में गहराई तक फैले जातिवादी भेदभाव को भी उजागर कर दिया। यह समय है कि हम इस मानसिकता को बदलने की दिशा में ठोस कदम उठाएं, ताकि ऐसी त्रासदियों की पुनरावृत्ति न हो।

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