कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए आज नामांकन का आखिरी दिन है। इस आखिरी दिन ही अध्यक्ष पद की रेस में कांग्रेस के वरिष्ठ और अनुभवी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम सामने आया है। राजनितिक गलियारों में लगभग ये तय माना जा रहा है कि कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकाअर्जुन खड़गे ही होंगे। हालांकि बीते दिनों पार्टी के अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर जो घमासान राजस्थान कांग्रेस में मचा हुआ था उससे हर कोई वाकिफ है।
शशि थरूर भी हैं मैदान में:
अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे के अलावा मैदान में पार्टी के दिग्गज नेता शशि थरूर भी हैं। इसी के साथ अटकलें ये भी लगाई गयी थी कि दिग्विजय सिंह भी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ सकतें हैं। इन अटकलों को साफ़ करते हुए शुक्रवार सुबह दिग्विजय सिंह ने कहा कि वह खड़गे के समक्ष चुनाव नहीं लड़ना चाहतें हैं। चुनाव में वह खड़गे के प्रस्तावक बनेंगे। मालूम हो कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित अपना नाम पहले ही वापस लें चुकें हैं।
ये मुद्दा भले ही राजनीतिक है लेकिन दलितों से जुड़ा हुआ है। अगर मल्लिकाअर्जुन खड़गे कांग्रेस के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं तो पूरे 24 सालों बाद ऐसा होगा कि कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष कोई ऐसा व्यक्ति बनेगा जिसका सरनेम गांधी नहीं है। साथ ही जो दलित वर्ग से आता है।
दलित नेता हैं खड़गे:
कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए खड़गे की वकालत सिर्फ इसलिए करना ‘क्योंकि वह एक दलित नेता हैं और इस पद पर रह कर वो दलितों के उत्थान के लिए ज्यादा प्रतिबद्ध होंगे’ गलत होगा। दरअसल कांग्रेस को इस समय एक ऐसे अध्यक्ष की जरूरत हैं जो न केवल अनुभवी हो बल्कि सामने वाले पाले में पड़ी गेंद को अपने पाले में लाकर जीतने का हुनर जानता हो। जिसे पॉल्टिकल स्टंट खेलने आते है या सामान्य भाषा में कहें तो सामने वाले को बोतल में उतारना आता हो।
मल्लिकाआर्जुन खड़गे को कांग्रेस की कमान सौंपने के और भी अलग अलग मायने हैं। खड़गे गांधी परिवार के करीबी है। माना जाता है कि वो विरोधियों के साथ मधुर संबंध बनाने में भी माहिर हैं।
खड़गे को कांग्रेस अध्यक्ष क्यों बनना चाहिए?
साल 1942 में मल्लिकाअर्जुन खड़गे ने हैदराबाद (आज के कर्नाटक) के एक दलित परिवार में जन्म लिया था। खड़गे ने कानून की पढ़ाई की है साथ ही मज़दूर यूनियन के नेता बनकर मज़दूरों के लिए लड़ाई भी लड़ी है। खड़गे साल 1969 में कांग्रेस में शामिल हो गए। 2005 से 2008 तक कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे हैं। 2008 तक करीब 10 बार कर्नाटक से विधायक चुने जा चुके हैं। मनमोहन सरकार में रेल मंत्रालय और श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की कमान संभाल चुकें हैं।
कांग्रेस में दलितों को मिलेगा नेतृत्व ?
खड़गे कांग्रेस में न केवल एक वरिष्ठ और अनुभवी नेता हैं बल्कि एक दलित नेता भी हैं। लेकिन सवाल ये की कॉंग्रेस के सर्वोच्च पद पर खड़गे के आसीन होने के बाद क्या पार्टी में दलित नेतृत्व को प्रमुखता दी मिलेगी? क्या दलितों से जुड़े मुद्दों पर कांग्रेस मुखरता से बोलेगी?
बता दें कि कई दलित नेता पहले भी कांग्रेस में उच्च पदों पर रह चुके हैं। जिनमे सबसे पहला नाम बाबुजगजीवन राम का है। वह अप्रैल 1986 से जुलाई 1986 तक बाबुजगजीवन राम भारत के पहले दलित उप-प्रधानमंत्री रहे थे। इसके अलावा संसदीय लोकतंत्र के विकास में भी बाबुजगजीवन राम का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वह भारत के रक्षा मंत्री भी रह चुकें। साथ ही 1970 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष का पद भी संभाला है। वहीं भारत के 5वें प्रधानमंत्री रहे चौधरी चरण सिंह (1979 से 1989) जाट समुदाय से थे। चौधरी चरण सिंह तीसरे उप-प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और विदेश मंत्री भी रहे चुकें हैं। इसके अलावा उन्होंने उत्तर प्रदेश के 5वें मुख्यमंत्री का पद भी संभाला हैं।
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