1980 के दौर में 400 में से 308 सीटे जीतने वाली कांग्रेस 2017 उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में महज 7 सीटों पर सिमट गयी ।
भारत का सबसे पुराना राजनितिक दल आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है । वो अब चुनाव तो लड़ती है मगर जीतने के लिए नहीं बल्कि कुछ हद तक बचे हुए अपने अस्तित्व को बचाने के लिए लड़ती है। अब उसके अस्तित्व पर सवाल कहीं बाहर से नहीं उठ रहा बल्कि उसी के सहयोगी दल और उसके खुद के नेताओं ने इस पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं.
लगभग तीन दशकों से यूपी-बिहार में सत्ता से दूर कांग्रेस को अब अपनी राजनीति बचाने के लिए सहारे की आवश्यकता पड़ रही हैं ।
1980 के दौर में 400 में से 308 सीटे जीतने वाली कांग्रेस 2017 उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में महज 7 सीटों पर सिमट गयी ।
कांग्रेस का यही हाल बिहार में भी है ।
कांग्रेस यूपी-बिहार जैसे बड़े राज्यो में तीन दशकों से सत्ता के लिए असफल संघर्ष कर रही है ।
आलम ये है की यूपी-बिहार में राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस अब केवल वोट कटुवा पार्टी बनकर रह गयी है ।
कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने भी इस बात को स्वीकार किया है की कांग्रेस को अब आत्मचिंतन करना चाहिए. एक समय पूरे देश पर राज करने वाली कांग्रेस का तेजी से राज्यों में सफाया हो रहा है ।
नेतृत्वविहीन कांग्रेस केवल सहायक पार्टियो के भरोसे ही बैठी है
मसलन हाल ही में हुए बिहार चुनाव में कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी जबकि उसे मात्र 19 सीटे प्राप्त हुई
जबकि वामपंथी पार्टियों ने 30 सीटों पर लड़ते हुए आश्चर्यजनक तौर पर 18 सीटें प्राप्त की ।
तकरीबन 55 सालों तक केंद्र में सत्ताधीश रहने वाली कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही हैं
कांग्रेस न केवल नेतृत्वविहीन दिख रही है बल्कि लापरवाह भी हो चुकी है
अपने विधायको को संभाल पाना ही कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती है
गोवा-कर्नाटक-मध्यप्रदेश-झारखंड में बड़ी पार्टी बनकर भी कांग्रेस ने घुटने टेक दिए
कांग्रेस से जीते हुए विधायको ने भाजपा का दामन थाम कर भाजपा को इन राज्यो में सत्ता सोप दी।
क्योकि कांग्रेस खुद यूपी-बिहार-गुजरात में तीन दशक से सत्ता के लिए संघर्ष करते हुए वोट कटुवा पार्टी बन गई हैं ।
भाजपा के उभार व क्षेत्रीय दलों की मजबूती से कांग्रेस का पतन –
1990 के दौर में भाजपा की अभूतपूर्व वृद्धि व क्षेत्रीय दलों के उभार ने कांग्रेस के पतन का काम किया। कांग्रेस के साथ यह समस्या थी की वह आर्थिक सुधारो की जनक होने के बावजूद वक्त के साथ बदल नहीं पायी। एक समय में ग्रामीण वोटो पर अपनी मजबूत पकड़ रखने वाली कांग्रेस अपने आधार वोट बैंक से भी दूर हो गयी है। जबकि यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु जैसे बड़े राज्यों में क्षेत्रीय दलों के मजबूत होने से कांग्रेस इन राज्यों में केवल मात्र वोट कटुवा पार्टी बनकर रह गयी है।
योग्य नेतृत्व के अभाव से जूझती कांग्रेस –
2019 के लोकसभा चुनावो में करारी हार की जिम्मरदारी लेते हुए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष ने पार्टी अध्यक्ष के पद से अपना इस्तीफा दे दिया था। तब से कांग्रेस को पुर्णकालिन अध्यक्ष नहीं मिल पाया है। कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओ द्वारा बनाया गया G-23 ग्रुप खड़ा हो गया है जो पार्टी आलाकमान का कई मोर्चो पर खुलकर विरोध करता है।
राहुल गांधी पर अयोग्य होने का आरोप लगाने वाली ममता बनर्जी ही अकेली नहीं हैं, कांग्रेस के भी कई बड़े नेता आए दिन राहुल गांधी पर अयोग्य होने का आरोप लगाते रहते हैं.
पार्टी की दशा और दिशा ऐसे ही रहने वाली है, और युवा पीढ़ी के नेताओं का पलायन जारी रहेगा.
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