वाल्मीकि जयंती पर सम्मान के दावे, लेकिन दलितों पर होने वाले अत्याचारों के समय कहां होते हैं ये नेता और सरकार?

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आज हर कोई वाल्मीकि जयंती की शुभकामनाएं देकर वाल्मीकि समाज के प्रति अपना आदर और सम्मान प्रकट कर रहा हैं। लेकिन एक दिन की बधाइयों और वादों से दलित समाज की समस्याएं हल नहीं हो सकतीं । सवाल उठता है कि दलित समाज के साथ होने वाली घटनाओं के वक्त ये नेता और सरकार कहां होते हैं, जो आज वाल्मीकि जयंती पर बधाइयां दे रहे हैं?

आज वाल्मीकि जयंती के अवसर पर हर जगह जश्न का माहौल है। सरकारी दफ्तरों से लेकर स्कूल-कॉलेज तक सब बंद हैं, और लोग बड़े धूमधाम से यह दिन मना रहे हैं। राजनीतिक नेता भी सोशल मीडिया पर शुभकामनाओं के संदेश दे रहे हैं, वाल्मीकि समाज के प्रति अपना आदर और सम्मान प्रकट कर रहे हैं। लेकिन इस चकाचौंध के बीच एक गहरा सवाल खड़ा होता है: क्या केवल एक दिन की मान्यता और सम्मान से समाज के सबसे पिछड़े और दलित वर्ग की समस्याओं का समाधान हो सकता है?

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बधाइयां देने वाले नेता और सरकार अपराध के समय कहां होते हैं

वाल्मीकि समाज, जो सदियों से शोषण, भेदभाव और अत्याचार का सामना करता आ रहा है, क्या वाकई एक दिन के इस सम्मान से अपनी सभी पीड़ाओं को भूल सकता है? वास्तविकता यह है कि दलित और पिछड़े वर्गों के प्रति होने वाले अपराध आज भी समाज में आम हैं। कहीं भूमि हड़प ली जाती है, तो कहीं उनके अधिकारों को कुचला जाता है। आए दिन खबरों में दलितों पर अत्याचार की घटनाएं सामने आती हैं—कहीं किसी को पीट-पीटकर मार दिया जाता है, तो कहीं उनका सार्वजनिक रूप से अपमान किया जाता है। इन घटनाओं के वक्त ये नेता और सरकार कहां होते हैं, जो आज वाल्मीकि जयंती पर बधाइयां दे रहे हैं?

क्या सरकार दलित समाज के उत्थान के लिए ठोस कदम उठा रही हैं?

सच्चाई यह है कि दलितों के साथ अन्याय और शोषण का यह चक्र लगातार चलता आ रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे क्षेत्रों में आज भी दलित समाज पिछड़ा हुआ है। कई बार उन्हें जानबूझकर इन अवसरों से दूर रखा जाता है। ये नेता और सरकार जो आज उनके लिए मीठे बोल बोल रहे हैं, क्या वास्तव में उनके उत्थान के लिए कुछ ठोस कदम उठा रहे हैं? वाल्मीकि समाज की वास्तविक स्थिति सुधारने के लिए न केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है, बल्कि समाज के सभी वर्गों को जागरूक होकर दलितों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा करनी होगी।

यह दिखावटी सम्मान कोई मायने नहीं रखता

वाल्मीकि समाज के योगदान को केवल एक दिन की शोभा नहीं, बल्कि हर दिन की जरूरत है। वाल्मीकि महर्षि की शिक्षा, जिन्होंने रामायण जैसी महान कृति रची, हमें सिखाती है कि सच्चा सम्मान केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कर्मों में होता है। जब तक समाज और सरकार दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए दृढ़ता से कदम नहीं उठाती, तब तक यह दिखावटी सम्मान कोई मायने नहीं रखता। दलितों के अधिकारों की लड़ाई में अगर हमें सच्चा सम्मान देना है, तो हमें समानता, न्याय और अवसरों की सुनिश्चितता के लिए अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा, और उन पर अमल करना होगा। तभी जाकर हम वाल्मीकि जयंती का वास्तविक अर्थ समझ पाएंगे।

एक दिन की बधाइयों और वादों से दलित समाज की समस्याएं हल नहीं हो सकतीं। आज भी ये सवाल हैं कि ये नेता और सरकारें सोशल मीडिया पर शुभकामनाएं देते हुए वाल्मीकि समाज के प्रति अपनी कृतज्ञता और सम्मान प्रकट कर रहे हैं। मगर इस उत्सव के बीच एक कड़वा सच यह भी है कि जब दलित समाज पर अत्याचार होता है, तब वही नेता और सरकार कहां छिप जाते हैं जो आज आदर की बातें कर रहे हैं?

वाल्मीकि जयंती का इतिहास

वाल्मीकि जयंती का इतिहास महर्षि वाल्मीकि से जुड़ा है, जिन्हें संस्कृत के महाकवि और “आदिकवि” कहा जाता है। महर्षि वाल्मीकि का नाम मुख्य रूप से रामायण की रचना के लिए प्रसिद्ध है, जो भारतीय साहित्य का एक प्रमुख महाकाव्य है। वाल्मीकि जयंती, जिसे “प्रकट दिवस” भी कहा जाता है, उनके जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। यह दिन अश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर महीने में आता है।

वाल्मीकि का जीवन परिचय

वाल्मीकि का वास्तविक नाम “रत्नाकर” था। कहा जाता है कि उनका प्रारंभिक जीवन एक डाकू के रूप में बीता। वे जंगल में रहते थे और लोगों को लूटते थे। एक दिन उन्होंने महान संत नारद मुनि को लूटने का प्रयास किया, लेकिन नारद मुनि ने उन्हें सत्य, धर्म और अहिंसा का मार्ग दिखाया। नारद मुनि के उपदेशों से प्रभावित होकर रत्नाकर ने अपनी बुरी आदतों को छोड़ दिया और ध्यान में लीन हो गए। वह इतने लंबे समय तक ध्यान में बैठे रहे कि उनके शरीर पर चींटियों ने अपना घर बना लिया, और इसी कारण उनका नाम “वाल्मीकि” पड़ा, जो संस्कृत शब्द “वाल्मीक” (चींटी की बांबी) से निकला है।

वाल्मीकि ने ध्यान और तपस्या के बाद रामायण की रचना की, जो भगवान श्रीराम के जीवन, उनके आदर्शों और संघर्षों पर आधारित है। रामायण को संस्कृत साहित्य की सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण कृति माना जाता है। वाल्मीकि रामायण ने न केवल धर्म और नैतिकता की शिक्षा दी, बल्कि भारतीय समाज को एक आदर्श जीवन जीने का मार्ग भी दिखाया।

वाल्मीकि जयंती का महत्व

वाल्मीकि जयंती का महत्व इस बात में है कि यह न केवल एक महाकवि के जीवन का उत्सव है, बल्कि यह उनके योगदान का सम्मान भी है, जिन्होंने धर्म, नैतिकता और मानवता के सिद्धांतों का प्रचार किया। वाल्मीकि समाज और दलित समुदाय के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है क्योंकि महर्षि वाल्मीकि को दलित समाज का पथप्रदर्शक माना जाता है। वे दलितों के प्रति समाज की दृष्टिकोण में सुधार लाने वाले एक प्रमुख व्यक्ति थे।

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वाल्मीकि जयंती को विशेष रूप से उत्तर भारत, खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग उनके जीवन और शिक्षाओं का अनुसरण करने का संकल्प लेते हैं।

 

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