दलित टाइम्स द्वारा बुधवार पर एक ट्विटर स्पेस कार्यक्रम रखा गया जिसमें सभी सेकड़ो लोग जुड़े और यूपी चुनाव को लेकर राजनैतिक पार्टियों द्वारा जारी की गयी सीटों और चुनाव को लेकर उनके समीकरणो पर बात हुई और घंटो चली इस चर्चा का केंद्र “चन्द्र शेखर आज़ाद का राजनेतिक भविष्य” रहा। आपको बता दें कि इस ट्विटर स्पेस में हुई चर्चा में कई युवा बतौर स्पीकर जुड़े, जिनमें से अधिकतर का मत था कि चन्द्रशेखर आज़ाद को सुरक्षित सीटो से चुनाव लड़ना चाहिए ताकि आज़ाद सिस्टम में रह कर अपनी जगह बनाये और सड़क की बात संसद तक पहुंचाए क्योकि असुरक्षित सीटों पर ज़ोर आज़माना खतरे से खाली नहीं है।
“तुम बढ़ो वीर हम तुम्हारे साथ हैं” यह कहना है उत्तर प्रदेश के नौजवानों का जो चंदशेखर की विचारधारा का समर्थन करते हैं। हाल ही में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के साथ गठबंधन की वार्ता विफल होने के बाद आजाद समाजवादी पार्टी के नेता चंद्रशेखर आजाद ने उत्तर प्रदेश में अकेले ही चुनावी बिगुल ठोकने का फैसला किया है। है कि दलितों की आवाज उठाने वाली पार्टी बीएसपी ने भी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अकेले ही सभी पार्टियों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। इस पारीस्थिति को देखकर तो यही लगता है कि उत्तर प्रदेश में दलित शोषित और वंचितों की आवाज को बल देने वालों का कोई साथी नहीं है।
यही कारण है कि बहुजन समाज पार्टी मायावती ने भी उत्तर प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। अखिलेश यादव से वार्ता विफल होने के बाद भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर को लगा कि अखिलेश यादव उन्हें वह सम्मान नहीं दे रहे जिसके वह हकदार है। इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश के कई युवा सामने आए और था कि चंद्रशेखर आजाद को अकेले ही चुनावी मैदान में उतरना चाहिए। कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्होंने कहा कि चंद्रशेखर आजाद को फिलहाल विधानसभा चुनाव लड़ने से बेहतर है कि वह बहन मायावती का समर्थन करें।
अधिकांश लोग का ये मानना है कि यही समय है जब चंद्रशेखर को चुनावी मैदान में उतर कर अपनी ताकत आजमानी चाहिए। इससे चंद शेखर को यह अंदाजा लगेगा कि वह कहां कमजोर हैं और कहां मजबूत। यह जरूरी नहीं की पहली बार में ही जीत हासिल हो, हार भी लोगों के लिए फायदेमंद साबित होती है फकत आप उनसे सबक सीखे। इसलिए अगर विधानसभा चुनाव में आजाद पार्टी के प्रत्याशियों को हार का भी सामना करना पड़ता है तो उससे विचलित होने की जरूरत नहीं है। यह मौका रहेगा उन लोगों के लिए यह आकलन करने का कि वह कहां कमजोर हैं, कहां उन्हें और अधिक काम करने की जरूरत है।
वहीं कुछ लोगों ने यह भी सुझाव दिया कि चंद्रशेखर और उनके पार्टी के अन्य प्रत्याशियों को किसी सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ना चाहिए। अब तक उन्होंने दलित, शोषित और वंचितों के लिए सड़क पर लड़ाई की है इस लड़ाई को सदन तक ले जाने की जरूरत है। इसलिए जरूरी है कि शोषित वंचित और दलितों की आवाज को सदन तक पहुंचाने के लिए हमेशा ही कोई एक हमारा प्रतिनिधि बनकर सदन में हमारी बात रखें। आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशियों को इसलिए उन सीटों से चुनाव लड़ना चाहिए जहां उनकी जीत पक्की हो। यही उनके आगे का भविष्य तय करेगा।
कुछ दलित समर्थकों का यह भी कहना था कि चंद्रशेखर आजाद हर वर्ग के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने जाति, धर्म, रंगभेद के परे सभी लोगों की समस्याओं में बढ़-चढ़कर उनका साथ दिया है। चंद शेखर की विचारधारा और उनकी कार्यशैली से आज के युवा काफी प्रभावित हैं। इसलिए दलित समुदाय का एक हिस्सा चंद्रशेखर को काफी पसंद करता है। लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो बताते हैं कि चंदशेखर के पास अभी काफी समय है। वे युवा है उनके पास बहुत समय है अपने राजनीतिक सफर के शुरुआत करने की। अभी जरूरत यह है कि वह बहन मायावती का समर्थन करें और उनके अभियान में सहभागी बने। आज भी दलितों से कोई उनका नेता पूछे तो सबसे पहले लोग मायावती का नाम ही लेते हैं।
चंद्र शेखर ने अपने जीवन में जो संघर्ष किया है, उसे देखते हुए आभास होता है कि मायावती का असल में कोई उत्तराधिकारी है तो वह चंद्रशेखर हैं। मायावती के बाद दलित चंद शेखर में अपना नेता देखते हैं। चंद्रशेखर के साथ एक अच्छी बात यह है कि केवल दलित ही उन्हें अपना नेता नहीं मानते। आज का युवा जो शोषित है, जिसके साथ साथ अत्याचार व अन्याय हो रहा है चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या वर्ण का हो वह चंद्रशेखर का समर्थन करता है। चंद्रशेखर की लोकप्रियता केवल उत्तर प्रदेश में नहीं बल्कि देश के कई हिस्सों में भी है। इसीलिए अधिकांश लोगों का यह मानना है कि मायावती का यदि कोई असल उत्तराधिकारी है तो वह चंद्रशेखर है।
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