जीबी पंत संस्थान के निदेशक बद्री नारायण तिवारी OBC-SC-ST की मेरिट नहीं, जाति देखते हैं

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चौतरफा आलोचानाओं के बीच जीबी पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान ने एससी, एसटी, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस वर्ग के सहायक प्रोफेसरों की भर्ती के लिए नया विज्ञापन जारी कर दिया है। प्रयागराज के झूंसी स्थित गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान में शिक्षकों के 23 पदों के सापेक्ष 16 पदों पर संस्थान को योग्य अभ्यर्थी ही नहीं मिले। हाल तो यह है कि ओबीसी वर्ग के सभी पद रिक्त रह गए। ऐसे में तमाम अभ्यर्थियों ने संस्थान और चयन समिति पर तमाम गंभीर आरोप लगाए हैं। मामले की शिकायत राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से कर दी गई। अब आयोग ने मामले में संस्थान से जवाब तलब किया था।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के दखल के बाद संस्थान के निदेशक बद्री नारायण तिवारी ने कहा कि “एनएफएस का मतलब यह नहीं है कि ये पद खाली ही रहेंगे। हम दो तीन दिन के भीतर ही हम स्पेशल ड्राइव मोड ऑफ बैकलॉग के तहत वैकेंसी निकालेंगे। और अच्छेे व उपयुुक्त अभ्यर्थियों से भरेंगे। हम योग्य कैंडीडेट की तलाश में लगातार वैंकेसी निकालते रहते हैं जब तक कि उक्त पद के लिये कोई मिल नहीं जाता।”

उनका कहना हैं कि लोगो के यह समझना होगा कि “हमारा संस्थान एक शोध संस्थान हैं। इसलिए हमारी आवश्यकता पूरी तरह से अलग है। हमें संस्थान की ज़रूरतों के मुताबिक चाहिए। अगर हम विश्वविद्यालय या कॉलेज होते तो हमारी चयन समिति किसी को भी ले लेती। तब उनका काम सिर्फ़ पढ़ाना होता। लेकिन शोध संस्थानों में नियुक्ति के समय प्रोजेक्ट बनाना, प्रस्ताव बनाना, प्रोजेक्ट से फंडिंग लाना, अच्छे जर्नल में पब्लिकेशन आदि सब भी देखा जाता है। चयन समिति यह सब देखती और इस आधार पर जो अच्छा मिलता है, संस्थान में उसे ही नियुक्त किया जाता है। हमने इन बातों की जानकारी विज्ञापन में भी सार्वजनिक की थी।”

गौरतलब है कि संस्थान द्वारा जारी अंतिम सूची में ओबीसी के अभ्यर्थियों के मामले में “एनएफएस” यानी “कोई योग्य नहीं पाए गए” बता दिया गया था। इसे लेकर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS), मुंबई के छात्र मयंक यादव और दिल्ली विश्वविद्यालय के क़ानून के छात्र विवेक राज ने सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर की नियुक्ति में कथित अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से शिक़ायत की। चयन और नियुक्तियों की पूरी प्रक्रिया दुर्भावनापूर्ण, स्पष्ट रूप से अनियमित, ओबीसी के ख़िलाफ़ पूर्वाग्रह से भरी हुई है। यह केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय (डीओपीटी) के नियम और आरक्षण के संवैधानिक प्रावधानों के ख़िलाफ़ है।

कहा जा रहा हैं कि जीबीपीएसएसआई ने बीते 3 दिसंबर को अपनी बैठक में चयन समिति की सिफारिशों को मंजूरी दी थी, जिसने सदस्यों को चुना था। इसके तहत सहायक प्रोफेसर पद के लिए, संस्थान ने पांच व्यक्तियों के चयन को मंजूरी दी, जिनमें दो उम्मीदवार अविरल पांडे और निहारिका तिवारी (अनारक्षित श्रेणी), माणिक कुमार (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग), अंबुज शर्मा (विकलांग व्यक्ति) और कमी सैमसन (अनुसूचित जनजाति) के शामिल हैं। हालांकि, इसके साथ ही ओबीसी की श्रेणी को एनएफएस के तहत खाली छोड़ दिया गया। इसी तरह एसोसिएट प्रोफेसर पद के लिए संस्थान ने अनारक्षित श्रेणी के तहत अर्चना सिंह और अनुसूचित जाति वर्ग के तहत चंद्रैया गोपानी का चयन किया जबकि ओबीसी वर्ग को एनएफएस लिखकर खाली छोड़ दिया। यह सब तब हुआ जबकि ओबीसी अभ्यर्थियों के एपीआई (एकेडमिक परफार्मेंस इंडिकेटर) स्कोर अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के समान ही थे और ईडब्ल्यूएस अभ्यर्थियों से अधिक थे /अब ऐसे में यह सवाल उठता हैं कि इंटरव्यू में बैठे सवर्ण OBC-SC-ST की मेरिट नहीं, जाति देखते हैं,और इसी को आधार बना कर ओबीसी अभ्यर्थियों के कॉलम में एनएफएस लिखा गया?

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