हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी में आंतरिक कलह बढ़ गई और इस्तीफों का दौर शुरू हो गया। कैप्टन अजय सिंह यादव ने अपमानजनक व्यवहार के कारण कांग्रेस से इस्तीफा दिया, जिससे पार्टी में दलित और ओबीसी नेताओं की उपेक्षा के आरोपों ने जोर पकड़ा।
कांग्रेस पार्टी की हार के पीछे का सच छिपा नहीं है। दशकों से यह पार्टी दलित समुदाय को सिर्फ वोट बैंक समझती आई है, लेकिन वास्तव में उनकी समस्याओं और अधिकारों के लिए कभी सच्चे मन से प्रयास नहीं किए गए। हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस की करारी हार इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि दलित समाज कांग्रेस से नाखुश है। पार्टी ने न केवल दलित नेतृत्व का अपमान किया, बल्कि उनकी आवाज को भी दबाया। इसका खामियाजा उन्हें भारी हार के रूप में भुगतना पड़ा।
दलित नेताओं का अपमान: कांग्रेस की पुरानी चाल
कांग्रेस के भीतर दलित नेताओं के प्रति पार्टी का रवैया हमेशा ही उदासीन और अपमानजनक रहा है। हरियाणा के प्रमुख दलित नेता, जैसे अशोक तंवर और कुमारी शैलजा, पार्टी के अंदर अपमानित होते रहे हैं। अशोक तंवर, जो कभी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे, उन्हें ऐसे समय में अपमानित किया गया जब वे पार्टी को मजबूत करने का प्रयास कर रहे थे। इसी तरह, कुमारी शैलजा को भी पार्टी में उचित सम्मान नहीं दिया गया, जबकि उन्होंने दलित समुदाय के लिए लगातार संघर्ष किया है। ये घटनाएं दिखाती हैं कि कांग्रेस पार्टी दलित नेताओं को केवल नाम मात्र का स्थान देती है, लेकिन जब वास्तविक राजनीतिक ताकत की बात आती है, तो उन्हें हाशिए पर धकेल दिया जाता है।
राहुल गांधी और आरक्षण: दलित विरोधी मानसिकता का खुलासा
राहुल गांधी ने भी आरक्षण पर ऐसे बयान दिए हैं जो दलित समाज की भावनाओं के खिलाफ जाते हैं। उन्होंने आरक्षण खत्म करने की बात कही, जो दलित समाज के लिए एक बड़ा झटका था। यह आरक्षण ही है जिसने दलितों को सामाजिक और आर्थिक रूप से ऊपर उठने का अवसर दिया है। लेकिन कांग्रेस के नेताओं की इस सोच से स्पष्ट हो जाता है कि वे दलितों के उत्थान में विश्वास नहीं रखते, बल्कि उन्हें सिर्फ वोट बैंक के रूप में देखते हैं। राहुल गांधी जैसे बड़े नेताओं का यह रवैया दलित समुदाय के कांग्रेस से दूरी बनाने का मुख्य कारण बना।
कैप्टन अजय सिंह यादव ने अपमानजनक व्यवहार के कारण कांग्रेस से इस्तीफा दिया
कांग्रेस के भीतर की कलह और नेताओं के बीच आपसी संघर्ष ने भी दलित नेताओं की स्थिति को और खराब किया है। हाल ही में हरियाणा के कद्दावर नेता कैप्टन अजय सिंह यादव ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया, और अपने साथ हुए दुर्व्यवहार का खुलासा किया। यादव, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं, उन्होंने स्पष्ट किया कि पार्टी में उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया और उनके राजनीतिक करियर को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई। अगर पार्टी अपने ही नेताओं के साथ इस तरह का व्यवहार कर रही है, तो दलितों के अधिकारों और सम्मान की बात कहां रह जाती है?
कांग्रेस की हार: दलितों का समर्थन खोना
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस की हार इस बात का संकेत है कि दलित समुदाय अब इस पार्टी पर भरोसा नहीं करता। पार्टी को 90 में से सिर्फ 37 सीटें मिलीं, जबकि भाजपा ने 48 सीटों पर जीत दर्ज कर तीसरी बार सत्ता में वापसी की। कांग्रेस की इस हार का एक बड़ा कारण यह है कि उन्होंने दलित समाज की उम्मीदों को नजरअंदाज किया और उनके मुद्दों को हल्के में लिया।
कांग्रेस को आत्मचिंतन की आवश्यकता
कांग्रेस पार्टी को अपनी दलित विरोधी राजनीति पर गंभीर आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है। अगर पार्टी दलित समुदाय के साथ जुड़ने और उनके मुद्दों को सुलझाने में विफल रहती है, तो भविष्य में भी उन्हें इसी तरह की हार का सामना करना पड़ेगा। दलित समुदाय अब जागरूक हो चुका है और वह अपने अधिकारों के लिए लड़ने को तैयार है। कांग्रेस को यह समझना होगा कि दलित समाज अब केवल वादों से संतुष्ट नहीं होगा, बल्कि उन्हें उनके हक चाहिए, और अगर कांग्रेस ऐसा करने में विफल रहती है, तो वह अपनी राजनीतिक जमीन खोती जाएगी।
दलित समाज के लिए कांग्रेस का भविष्य?
अब सवाल यह उठता है कि क्या कांग्रेस दलित समाज के समर्थन को दोबारा जीत पाएगी? पार्टी को यह स्वीकार करना होगा कि दलित समुदाय उनके झूठे वादों और अपमान को अब और बर्दाश्त नहीं करेगा। अगर कांग्रेस वाकई दलितों के प्रति अपनी नीति में बदलाव नहीं लाती, तो उसे भविष्य में भी बड़े नुकसान झेलने पड़ेंगे।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
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