आगरा में कोर्ट ने दलित उत्पीड़न और मारपीट के मामले में गिर्राज सिंह को चार साल की सजा और 41 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। दरअसल, सफाईकर्मी के साथ जातिसूचक गालियां देकर मारपीट की गई थी। इसके अलावा, कोर्ट के आदेश का पालन न करने पर जफर उर्फ शानू और राहुल को तीन-तीन साल की सजा सुनाई गई।
UP News: आगरा में कोर्ट के आदेश का पालन न करने पर दो आरोपियों को भारी सजा भुगतनी पड़ी। हरीपर्वत थाना क्षेत्र के नवीशाह की दरगाह निवासी जफर उर्फ शानू और लंगड़े की चौकी निवासी राहुल को कोर्ट में पेश नहीं होने के कारण तीन-तीन साल की सजा सुनाई गई। घटना की शुरुआत 2017 में हुई थी, जब तत्कालीन निरीक्षक डीके सिसौदिया ने इन आरोपियों के खिलाफ धारा 82 के तहत नोटिस जारी करवाई थी। पुलिस ने उनके घर नोटिस पहुंचाने के बावजूद आरोपी कोर्ट में पेश नहीं हुए। इसके बाद पुलिस ने मामला दर्ज कर आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। सीजेएम कोर्ट ने मामले में दोषी पाते हुए दोनों को तीन साल के कारावास की सजा सुनाई।
दलित उत्पीड़न और मारपीट के दोषी को चार साल की सजा
थाना इरादतनगर क्षेत्र के गांव खेड़िया में सफाईकर्मी के साथ मारपीट और दलित उत्पीड़न के मामले में गिर्राज सिंह को चार साल के कारावास की सजा सुनाई गई है। विशेष न्यायाधीश एससी-एसटी एक्ट राजेंद्र प्रसाद ने दोषी पर 41 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया।
मामले की शुरुआत 19 जनवरी 2007 को हुई थी, जब पीड़ित डालचंद के भाई मानिक चंद, जो गांव के बंगाली बाबू के कार्यालय में सफाई का काम करता था, दो दिन के लिए रिश्तेदारी में गया हुआ था। इस दौरान गिर्राज सिंह और उसके पिता बंगाली बाबू इस बात से नाराज होकर मानिक चंद के घर घुस आए और जातिसूचक गालियां देते हुए मारपीट करने लगे। पुलिस ने मामले की जांच के बाद आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की, जिसमें गिर्राज सिंह को दोषी पाया गया। कोर्ट ने गिर्राज सिंह को चार साल की सजा और जुर्माने की सजा सुनाई, जबकि उसके पिता की पत्रावली अलग कर दी गई।
न्याय की जीत और अपराधियों को कड़ी सजा
इन दोनों मामलों में अदालत ने कानून की अवहेलना और दलित उत्पीड़न के गंभीर अपराधों पर सख्त रुख अपनाते हुए दोषियों को कड़ी सजा सुनाई। एक ओर जहां कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने वाले आरोपियों को तीन साल की सजा दी गई, वहीं दलित उत्पीड़न के दोषी को चार साल की सजा के साथ 41 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि कानून का पालन न करने और कमजोर वर्गों के खिलाफ अत्याचार करने वालों को न्यायिक प्रक्रिया से बचने का कोई रास्ता नहीं मिलेगा।
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