राजस्थान में दलितों पर अत्याचार की हकीक़त

dalit lives matter
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साल 2018 के बाद से राजस्थान में दलितों पर लगातार हमले बढ़े हैं। साल 2019 में दलितों के खिलाफ सबसे अधिक अपराध यूपी में दर्ज किए गए थे तो वहीं राजस्थान में सबसे अधिक 55.6 फीसदी अपराध हुए। और वर्तमान समय में होती घटनाएं इस बात का सबूत हैं कि ऊंची जातियां दलित समुदायों में बढ़ती साक्षरता को देख रही हैं, और अनुसूचित जातियों को अपने अधिकार के लिए खड़ा होता देख रहीं है जिसकी वजह से आए दिन कोई न कोई घटना होती रहती हैं – हाल ही में एक दलित व्यक्ति को मूंछें मुंडवाने के लिए मजबूर किया गया, दूसरों को अपनी शादी में घोड़ी की सवारी करने के लिए पीटा गया। दलित महिलाओं के चप्पल पहनने पर पाबंदी लगा दी गई। ज्यादातर मामलों में जो देखा गया हैं वो यह कि इन सब घटना में आरोपी को अपने समुदायों का समर्थन प्राप्त होता है। और वो बिना किसी रोक टोक के इन घटनाओं को अंजाम देता हैं।

नीच, कमीना (नीच, बदमाश) और डेढ जैसे जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल इस वर्ग के लिए बहुत आम सा हैं, फिर सामने चाहे महिला हो या पुरुष उनका दलित समुदाए से होना उनके लिए अभिशाप हैं।हालत इतनी बदतर हैं सामने वाले समुदाए की भावनाएं केवल दलित समुदाए के एक युवक के मूंछ रखने से आहत हो जाती हैं और वो इस तैश में आकर युवक की हत्या कर देते हैं। यह आईना हैं समाज की भयानक सच्चाई का जो हर कोई नज़र अंदाज किए हुए ।

हाथरस अत्याचार के लिए उत्तर प्रदेश भले ही सुर्खियों में रहा हो, लेकिन यह राजस्थान है जहां राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के रिकॉर्ड के अनुसार पिछले तीन वर्षों में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराध लगातार बढ़े हैं। और सरकार से लेकर प्रशासन तक सब इन अपराध को रोकने में नाकाम हैं।

राजस्थान में पिछले वर्षों में अनुसूचित जाति की महिलाओं के खिलाफ अपराधों में तेजी आई है। जयपुर अनुसूचित जाति के लिए सबसे खराब महानगरीय शहर बन गई है, जहां जाति-आधारित अपराधों का अनुपातहीन हिस्सा है।

राजस्थान में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (निवारण की रोकथाम) के तहत 6,329 मामले दर्ज किए गए थे। 2016 में अत्याचार अधिनियम); 2017 में 5222 मामले दर्ज किए गए। वहीं 2018 में 5563 मामले दर्ज किए गए। 2019 में 8418 मामले दर्ज किए गए। 2020 में, 8,744 मामले दर्ज किए गए।

आंकड़ों के अनुसार देखें, तो 2019 में 1,121 दोषियों को ऐसे मामले में सजा हुई। 2020 में यह संख्या घटकर 686 हो गया है। यानी एक ही वर्ष में दर्ज किए गए कुल 8,744 मामलों में सजा की दर 7.84 प्रतिशत रही है, जो पांच वर्षों में सबसे कम है।

दिसंबर साल 2021 में सालेरा खुर्द गांव में नरेंद्र नामक दलित युवक के घर पर 24 घंटे पुलिस का पहरा रहा उसका कसूर सिर्फ इतना था कि उसने अपनी शादी में घोड़ी पर बिंदोली निकाली थी और यह बात गांव के दबंगों को रास नहीं आई। 27 नवंबर को बिंदोली पर पथराव कर दिया गया मामला यही नही रुका इसके बाद परिजनों से मारपीट भी की गई।

मार्च 2022 में को एक दलित युवक को ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म की आलोचना करना भारी पड़ गया आरोपियों ने उस पर हिंदू देवी-देवताओं को लेकर कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाया तो वही कुछ लोगों ने उसके साथ मारपीट की और उसे माफी मांगते हुए मंदिर में नाक रगड़ने को मजबूर किया गया। घटना बहरोड़ थाना क्षेत्र की थी जिसका वीडियो भी वायरल हुआ था ।
जातिप्रथा कितनी खतरनाक बीमारी हैं इसका अंदाजा आप बुलंदशहर की इस घटना से लगा लीजिए की यहां एक CRPF जवान को अपनी बारात में घोड़ी चढ़ने के लिए पुलिस सुरक्षा लेनी पड़ी सिर्फ इसलिए की वो दलित समुदाए से ताल्लुक रखता हैं।

यह बहुत अफसोस की बात हैं की जो जवान देश की सुरक्षा के लिए जान तक देने को तैयार हैं वहा खुद उसको अपने ही गांव के लोगों से डर हैं कि यदि वो घोड़ी चढ़ता हैं तो कहीं अनहोनी न हों जाए।क्योंकि गांव में दलितों के घोड़ी चढ़ने पर पहले भी विवाद हो चुके हैं।

ऐसे न जाने कितने मामले हैं जो देश में जाति व्यवस्था की पोल खोलते हैं और उन लोगों को हकीकत से रूबरू कराते है जो इस बात का दावा करते हैं कि देश में जाति प्रथा खत्म हो चुकी हैं।जो बात बात पर आरक्षण तो कभी कोटे को लेकर सवाल करते नजर आते हैं।दबे-कुचले दलित समाज के साथ ऐसे अत्याचार की कोई एक-दो नहीं दर्जनों वारदातें हैं। जो प्रदेश में दलित समाज पर हो रही बर्बरता की कहानी कहती हैं।

*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *

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