परभणी में बांग्ला देश में हो रही हिंसा के विरोध में मार्च निकाला जा रहा था। इस दौरन मार्च में से एक व्यक्ति ने अम्बेडकर प्रतिमा के पास रखे संविधान को फाड़ दिया। इसके विरोध में दलितों ने बन्द का आव्हान किया था. पुलिस ने दलित युवक सोमनाथ सूर्यवंशी को हिरासत में लिया। परिजनों का आरोप है कि पुलिस ने बेरहमी से पीटकर उनकी हत्या कर दी। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सदमा और चोट को मौत का कारण बताया गया। पुलिस पर दलित बस्तियों में निर्दोषों को पीटने और महिलाओं-बच्चों पर अत्याचार करने के गंभीर आरोप लगे हैं। परिजनों और आंबेडकरवादी संगठनों ने सीआईडी जांच, मुआवजा, और दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है।
परभणी जिले में हिरासत में हुए दलित युवक सोमनाथ सूर्यवंशी की मौत ने महाराष्ट्र सरकार और पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सोमनाथ की मां विजया वेंकट सूर्यवंशी ने अपने बेटे की मौत को हत्या करार देते हुए पुलिस पर अत्यधिक बल प्रयोग और बर्बरता का आरोप लगाया है। वह कहती हैं, “मेरा बेटा वकील बनना चाहता था। वह पढ़ाई में रुचि रखता था, नशा नहीं करता था। लेकिन पुलिस ने उसे बेरहमी से पीटा और मार डाला। मेरा बच्चा किसी बीमारी से पीड़ित नहीं था, लेकिन पुलिस ने उसे निर्दोष होने के बावजूद गिरफ्तार किया और पीट-पीटकर उसकी जान ले ली।”
“मेरा बेटा वकील बनना चाहता था”: मां विजया की दर्द भरी दास्तान
17 दिसंबर को जब हम परभणी के भीमनगर इलाके में पहुंचे, तो सोमनाथ सूर्यवंशी की मां विजया वेंकट सूर्यवंशी अपने घर पर महिलाओं से घिरी हुई थीं। 16 दिसंबर की शाम को उनके बेटे का अंतिम संस्कार किया गया था। विजया की आंखों में गम और दर्द साफ झलक रहा था। उनके तीन बच्चों में सबसे बड़े बेटे सोमनाथ का सपना था कि वह वकील बने। वह परभणी में कानून की पढ़ाई कर रहे थे और परीक्षा देने के लिए 5 दिसंबर को परभणी आए थे।
“पुलिस ने मेरे बेटे को जानबूझकर मारा”
विजया ने बीबीसी मराठी की एक रिपोर्ट में बताया, “सोमनाथ 10 दिसंबर तक मुझसे फोन पर बात करता रहा, लेकिन 11 से 15 दिसंबर तक उसका फोन बंद था। इसके बाद मुझे उसके मौत की खबर मिली। पुलिस ने कहा कि उसे दिल का दौरा पड़ा, लेकिन मुझे यकीन नहीं है। मेरा बेटा पूरी तरह स्वस्थ था, उसे कभी कोई बीमारी नहीं थी।”
उन्होंने पुलिस पर सीधे-सीधे आरोप लगाते हुए कहा, “मेरे बेटे को बेरहमी से पीटा गया। उसके नाजुक अंगों पर मारा गया, उसकी जांघों और छाती पर गंभीर चोटें आईं। पुलिस की यातना ने उसे मार डाला।”
सोमनाथ की मौत: पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने खोली पुलिस की पोल
सोमनाथ सूर्यवंशी के शव का पोस्टमॉर्टम संभाजीनगर के घाटी अस्पताल में किया गया। शुरुआती रिपोर्ट में सोमनाथ की मौत का कारण “मल्टीपल इंजरी के बाद सदमा” बताया गया है। उनकी जांघों और छाती पर चोटों के निशान पाए गए। परिवार का आरोप है कि पुलिस ने सोमनाथ को कपड़े उतारकर कई दिनों तक पीटा, जिससे उनकी मौत हुई।
छोटे भाई ने बयां किया पुलिस बर्बरता का मंजर
सोमनाथ के छोटे भाई प्रेमनाथ सूर्यवंशी ने कहा, “पुलिस ने मेरे भाई को तीन-चार दिनों तक बुरी तरह पीटा। उसके कपड़े उतार दिए गए और तब तक मारा गया, जब तक उसकी जान नहीं चली गई। पुलिस ने उसे जानवरों की तरह पीटा।”
परभणी हिंसा: क्या है पूरा मामला
10 दिसंबर को महाराष्ट्र के परभणी जिले में डॉ. बाबा साहब आंबेडकर की प्रतिमा के सामने लगी संविधान की प्रतिकृति तोड़ने की घटना ने पूरे शहर को आक्रोशित कर दिया। बताया गया कि यह कृत्य एक मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति ने किया था, जिसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई। लेकिन इस घटना ने डॉ. आंबेडकर के अनुयायियों को झकझोर दिया।
शहर बंद से भड़की हिंसा
घटना के विरोध में 11 दिसंबर को डॉ. आंबेडकर के अनुयायियों ने शहर बंद की अपील की। शांतिपूर्ण प्रदर्शन की इस अपील ने बाद में हिंसक रूप ले लिया, जब कुछ क्षेत्रों में पथराव और तोड़फोड़ की घटनाएं हुईं। दुकानों और वाहनों को निशाना बनाया गया, जिससे शहर में तनाव बढ़ गया।
अंबेडकर पर ऐसा क्या कह गए अमित शाह, उठने लगी इस्तीफे और माफी की मांग?
सोमनाथ सूर्यवंशी की गिरफ्तारी और हिरासत में मौत
हिंसा के आरोप में पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें सोमनाथ सूर्यवंशी भी शामिल थे। सोमनाथ को दो दिनों तक पुलिस हिरासत में रखा गया और बाद में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। 15 दिसंबर की सुबह पुलिस के अनुसार, सोमनाथ ने सीने में दर्द की शिकायत की। उन्हें तुरंत एक स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
पुलिस पर बल प्रयोग और बर्बरता के आरोप
परभणी हिंसा के दौरान पुलिस पर आरोप लगे कि उन्होंने ज़रूरत से ज्यादा बल प्रयोग किया। गिरफ्तार किए गए लोगों और स्थानीय निवासियों ने पुलिस की बर्बरता की शिकायत की। कई लोगों ने गंभीर चोटें लगने की बात कही। सोमनाथ के परिवार का आरोप है कि पुलिस ने उन्हें हिरासत में बेरहमी से पीटा, जिससे उनकी मौत हो गई। यह घटना अब मानवाधिकारों के उल्लंघन और पुलिस अत्याचार का प्रतीक बन गई है।
हिंसा के बाद दलित बस्तियों में पुलिस की बर्बरता
परभणी हिंसा के बाद पुलिस ने आंबेडकर और बौद्ध बस्तियों में तलाशी अभियान चलाया। इस दौरान निर्दोष दलित परिवारों को निशाना बनाया गया। स्थानीय निवासी सुधाकर जाधव ने बताया कि पुलिस ने उनके बेटे को उनकी आंखों के सामने बेरहमी से पीटा। पुलिस की इस कार्रवाई में महिलाओं और बच्चों को भी नहीं बख्शा गया। भीमनगर इलाके में कई महिलाओं के प्राइवेट पार्ट्स पर चोटें आईं और उन्हें बुरी तरह घायल किया गया।
भीमनगर में 16 दिसंबर की भयावह दोपहर: पुलिस बर्बरता की दर्दनाक दास्तान
16 दिसंबर को जब मीडिया टीम परभणी के भीमनगर पहुंची, तो माहौल गमगीन था। बाबा साहेब आंबेडकर की प्रतिमा के पास कई महिलाएं और पुरुष एकत्रित थे, जो सोमनाथ सूर्यवंशी के शव का इंतजार कर रहे थे। उनका शव संभाजीनगर से परभणी लाया जा रहा था। उस दिन 11 दिसंबर को हुए घटनाक्रम ने भीमनगर के हर व्यक्ति के दिलो-दिमाग पर गहरा असर डाला था।
पुलिस ने घर में घुसकर की बेरहमी से पिटाई
भीमनगर के निवासी सुधाकर जाधव ने हमें उस दिन की भयावहता के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “दोपहर तीन बजे पुलिस हमारे घर आई। पांच पुलिसकर्मी जबरदस्ती घर में घुस गए और मेरे बेटे को बाहर खींच लिया। उसे जानवरों की तरह पीटा गया। जब मैंने अपने बेटे को बचाने की कोशिश की और उसके ऊपर गिर पड़ा, तो उन्होंने मुझे भी बेरहमी से पीटा।”
सुधाकर के अनुसार, पुलिस ने उनके बेटे को इतना मारा कि उसकी चमड़ी तक उधड़ गई। “मुझे जिस छड़ी से पीटा गया, वह भी पीट-पीटकर मुड़ गई,” उन्होंने बताया। पुलिस ने सुधाकर के सिर और पीठ पर गंभीर चोटें पहुंचाईं। अपने घायल बेटे को बचाने के लिए सुधाकर ने उसे नासिक में एक रिश्तेदार के पास इलाज के लिए भेज दिया। आज भी उनके हाथों पर चोट के गहरे निशान साफ दिखाई देते हैं।
“मैं आंदोलन में शामिल नहीं था, फिर भी पुलिस ने निशाना बनाया”
सुधाकर ने बताया कि वह किडनी के ऑपरेशन के बाद से घर में ही रहते थे और आंदोलन में उनका कोई योगदान नहीं था। इसके बावजूद पुलिस ने उन्हें और उनके परिवार को निशाना बनाया।
महिलाओं और बच्चों पर भी पुलिस का अत्याचार
पार्षद सुशील कांबले ने बीबीसी की रिपोर्ट में बताया कि पुलिस की बर्बरता महिलाओं पर भी भारी पड़ी। उन्होंने आरोप लगाया कि “महिलाओं के प्राइवेट पार्ट्स पर चोट पहुंचाई गई। कुछ महिलाओं को तब तक पीटा गया, जब तक वे बेहोश नहीं हो गईं। पुलिस ने इतनी बेरहमी दिखाई, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।” (BBC, 2024, https://www.bbc.com/hindi/articles/cx26g4k5xz5o)
एक नेत्रहीन महिला ने बताया कि उसके बेटे की पीठ और सिर पर बुरी तरह चोटें पहुंचाई गईं।
आंबेडकर और बौद्ध बस्तियों में पुलिस का कहर
परभणी हिंसा के बाद आंबेडकर और बौद्ध बस्तियों में पुलिस कार्रवाई के गंभीर आरोप सामने आए हैं। स्थानीय नागरिकों और आंबेडकरवादी कार्यकर्ताओं का दावा है कि पुलिस ने बस्तियों में घुसकर निर्दोष लोगों के घरों को निशाना बनाया, उनके दरवाजे तोड़े और बर्बरता से पिटाई की।
निर्दोषों के घरों में जबरन घुसपैठ और तोड़फोड़
आंबेडकरवादी आंदोलन के कार्यकर्ता राहुल प्रधान ने बताया, “11 दिसंबर को हुई हिंसा के बाद पुलिस ने आंबेडकर और बौद्ध बस्तियों में तलाशी अभियान चलाया। इस दौरान उन्होंने उन घरों को भी निशाना बनाया, जिनका हिंसा से कोई लेना-देना नहीं था। पुलिस ने घरों के दरवाजे तोड़ दिए और जो भी सामने आया, उसकी पिटाई की। किसी को नहीं बख्शा गया।”
तलाशी अभियान या दहशत फैलाने की साजिश?
आंदोलन के नेता विजय वाकोड़े ने इसे पुलिस द्वारा दहशत फैलाने की साजिश बताया। उन्होंने कहा, “पुलिस ने आंबेडकरवादी समुदाय की बस्तियों में तलाशी अभियान चलाकर माहौल को आतंकित कर दिया। आंदोलनकारियों को दबाने के लिए बर्बरता की सारी हदें पार की गईं। पुलिस ने सोमनाथ सूर्यवंशी को भी लगातार दो दिनों तक पीटा, जिससे उनकी मौत हो गई।”
पुलिस ने किया आरोपों से इनकार
हालांकि, पुलिस ने इन सभी आरोपों को खारिज कर दिया है। नांदेड़ ज़ोन के विशेष पुलिस महानिरीक्षक शाहजी उमाप ने कहा, “11 दिसंबर को हुई हिंसा में जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया, वे हिरासत में हैं। उसके बाद किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया और न ही किसी घर में घुसकर तलाशी ली गई। पुलिस ने किसी तरह का आतंक नहीं फैलाया है।”
कॉम्बिंग ऑपरेशन का औचित्य या अत्याचार का औजार?
पूर्व आईपीएस अधिकारी शिरीष इनामदार ने समझाया कि कॉम्बिंग ऑपरेशन का उद्देश्य संज्ञेय अपराधियों को पकड़ना होता है। “पुलिस आमतौर पर उस इलाके को घेरती है और तलाशी अभियान चलाती है। लेकिन यह अभियान केवल अपराधियों को गिरफ्तार करने तक सीमित होना चाहिए, निर्दोष लोगों पर अत्याचार करना बिल्कुल अनुचित है।”
सोमनाथ की मौत पर पुलिस की सफाई
सोमनाथ सूर्यवंशी की हिरासत में मौत को लेकर पुलिस ने सीधे तौर पर कोई टिप्पणी नहीं की। शाहजी उमाप ने कहा, “मेडिकल रिपोर्ट से स्थिति स्पष्ट होगी। फिलहाल, इस विषय पर कुछ भी कहना मुश्किल है।”
पुलिस की बर्बरता के गवाह: घायल नागरिकों की दास्तान
परभणी हिंसा के बाद पुलिस की कार्रवाई से घायल हुए नागरिक अब अपनी आपबीती सुना रहे हैं। जिला अस्पताल में भर्ती वत्सलाबाई मनावते के शरीर पर घाव अभी भी साफ दिखाई देते हैं।
वीडियो रिकॉर्ड करने पर वत्सलाबाई को बेरहमी से पीटा गया
वत्सलाबाई के बेटे संदीप मनावते ने बताया, “मेरी मां पुलिस की कार्रवाई का वीडियो रिकॉर्ड कर रही थीं। इसी बात पर उन्हें बेरहमी से पीटा गया। उनके सिर से लेकर पैरों तक, कहीं भी चोट से बचाव नहीं हुआ। पुलिस ने उनके तलवों तक पर वार किया।” प्रियदर्शिनी नगर की रहने वाली वत्सलाबाई ने इस घटना को याद करते हुए कहा, “बहुत धक्का-मुक्की हुई। पुलिस ने हमें कोई मौका नहीं दिया।”
पूर्व आईपीएस अधिकारी का नजरिया
पूर्व आईपीएस अधिकारी शिरीष इनामदार ने कहा, “हिरासत में हो या नहीं, पुलिस द्वारा किसी पर भी अत्याचार करना गलत है। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज से पहले घोषणा की जाती है। अगर ऐसा नहीं हुआ है, तो यह पुलिस की लापरवाही और बर्बरता को दर्शाता है।”
जांच और मुआवजे की मांग
आंबेडकरवादी कार्यकर्ताओं ने मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। उनकी प्रमुख मांगें हैं:
- मामले की जांच सीआईडी को सौंपना और न्यायिक जांच कराना।
- दोषी पुलिस कर्मियों पर सख्त कार्रवाई करना।
- सूर्यवंशी परिवार को 50 लाख रुपये की आर्थिक सहायता और एक सरकारी नौकरी देना।
- घायल नागरिकों का इलाज और उन्हें उचित मुआवजा उपलब्ध कराना।
- जिन लोगों की संपत्तियों और घरों को नुकसान पहुंचा है, उन्हें भी मुआवजा दिया जाए।
राजनीतिक दबाव के बावजूद सरकार का पक्षपाती रवैया
महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष ने इस मुद्दे पर महायुति सरकार को घेरते हुए न्यायिक जांच और दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की मांग की। बढ़ते दबाव के बीच मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने न्यायिक जांच और मृतक परिवार को 10 लाख रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की। हालांकि, उन्होंने यह भी दावा किया कि सोमनाथ को सांस की गंभीर बीमारी थी, जो विरोधाभासी बयान के रूप में देखा जा रहा है।
दलित समाज की मांग: न्याय और मुआवज़ा
दलित समुदाय और आंबेडकरवादी संगठनों ने घटना की सीआईडी जांच, दोषी पुलिसकर्मियों पर सख्त कार्रवाई, पीड़ित परिवार को 50 लाख रुपये की सहायता, और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की मांग की है।
राहुल गांधी का दौरा और सरकार पर बढ़ता दबाव
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी सोमवार को परभणी का दौरा करेंगे और पीड़ित परिवार से मुलाकात करेंगे। उन्होंने इस घटना को दलितों पर अन्याय करार दिया और इसे भाजपा की सरकार की विफलता बताया।
न्यायिक हिरासत में मौत: सरकार और पुलिस की जवाबदेही
सोमनाथ सूर्यवंशी की मौत ने महाराष्ट्र में दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचार और सरकार की विफलता को उजागर किया है। इस घटना ने न केवल दलित समाज को झकझोर कर रख दिया है, बल्कि पूरे देश में आक्रोश पैदा किया है।
इस घटना ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि न्यायिक हिरासत में मानवाधिकारों का उल्लंघन और जातिगत भेदभाव आज भी समाज में गहराई से मौजूद है।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।