दलित राजनीति: ‘मायावती जी लाई थीं दलित राजनीति का गोल्डन पीरियड, सत्ता से सामाजिक बदलाव तक का सफर

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मायावती जी ने दलित राजनीति को नया आयाम दिया, 2007 में बसपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार के साथ दलित राजनीति का स्वर्णिम काल शुरू हुआ। कांशीराम जी के मार्गदर्शन में मायावती जी ने समाज में समानता और न्याय लाने के लिए संघर्ष किया, और सत्ता में बदलाव के साथ सामाजिक सुधारों की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनके नेतृत्व में दलित समुदाय को सत्ता में शामिल किया गया, जिससे भारतीय राजनीति में स्थायी बदलाव आया।

भारत की दलित राजनीति के सबसे प्रभावशाली चेहरों में से एक बसपा प्रमुख मायावती का नाम विशेष महत्व रखता है। कांशीराम जी के मार्गदर्शन में मायावती जी ने दलित राजनीति को नई दिशा दी और समाज में सशक्त परिवर्तन की प्रक्रिया को शुरू किया। 2007 में यूपी में पूर्ण बहुमत के साथ बसपा की सरकार बनना, प्रमुख मायावती के नेतृत्व में दलित राजनीति का स्वर्णिम काल था। यह न केवल उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी, बल्कि पूरे देश में दलित समुदाय के उत्थान और समाज में समानता की उम्मीदों को भी नया आयाम मिला।

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मायावती जी का प्रारंभिक जीवन और राजनीतिक यात्रा

मायावती जी का जन्म 15 जनवरी 1956 को दिल्ली में हुआ था। उनके पैतृक गांव बादलपुर (अब गौतमबुद्ध नगर) में था, जबकि वह दिल्ली के इंद्रपुरी इलाके में रहती थीं। युवावस्था में ही उन्होंने पढ़ाई के दौरान समाज सेवा की दिशा में कदम रखा और बामसेफ (बहुजन समाज पार्टी) से जुड़ गईं। इसी दौरान 1977 में दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में एक संगोष्ठी में मायावती जी का जीवन बदल गया।

कांशीराम जी से हुई मुलाकात: राजनीति का नया मोड़

इस संगोष्ठी के दौरान मायावती जी ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ जोरदार बयान दिया, जिसे कांशीराम जी ने सुना और उनके भीतर एक राजनीतिक नेता के गुण पहचान लिए। फिर कांशीराम जी ने उन्हें राजनीति में शामिल होने का आग्रह किया और मायावती जी ने अपना पारिवारिक संघर्ष सहते हुए कांशीराम जी के साथ बामसेफ कार्यालय में कदम रखा। उनके लिए यह एक बड़ा कदम था, क्योंकि घर वाले इस फैसले से सहमत नहीं थे। इस पारिवारिक संघर्ष के बावजूद, मायावती जी ने राजनीति में अपने कदम मजबूती से रखे और समाज में बदलाव की दिशा में काम करना शुरू किया।

मायावती जी का संघर्ष और नेतृत्व

मायावती जी ने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत 1995 में की जब वह पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। इस समय, सूबे की कमान पहली बार एक दलित नेता के हाथों में थी। हालांकि, उनका पहला कार्यकाल महज चार महीने का था, फिर भी यह एक ऐतिहासिक पल था। इसके बाद, 1997 में भाजपा और बसपा के बीच गठबंधन हुआ, जिसके बाद मायावती जी दूसरी बार मुख्यमंत्री बनीं।

मायावती जी का मुख्यमंत्री बनने का सफर

2002 में जब कोई पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी, तब भी भाजपा ने बसपा को समर्थन दिया और मायावती जी ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। हालांकि, इस दौरान लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा और 2003 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। फिर भी उनका यह राजनीति में बने रहना दलित समुदाय की आवाज को बुलंद करने का एक प्रयास था।

सोशल इंजीनियरिंग का सफल प्रयोग

मायावती जी के नेतृत्व में 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने एक नई रणनीति अपनाई। उन्होंने अपनी ‘सवर्ण विरोधी’ छवि को बदलते हुए दलित और ब्राह्मण समुदायों को एकजुट किया। इस सोशल इंजीनियरिंग के तहत, मायावती ने विभिन्न जातियों के बीच सामंजस्य स्थापित किया और पार्टी को एक सशक्त राजनीतिक ताकत बना दिया। बसपा को 2007 में पूर्ण बहुमत हासिल हुआ, और मायावती जी ने यूपी में सत्ता स्थापित की। इस सरकार का कार्यकाल 2012 तक चला, और इसे दलित राजनीति का स्वर्णिम काल कहा जाता है।

मायावती जी की राजनीतिक विचारधारा और महत्व

मायावती जी का मानना था कि केवल शिक्षा और सामाजिक बदलाव से ही दलित समुदाय का सशक्तिकरण संभव है। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कई योजनाओं को लागू किया और सरकारी नौकरियों में दलितों को आरक्षण का फायदा दिलवाया। इसके अलावा, उन्होंने समाज में समानता लाने के लिए कई अहम कदम उठाए। उनका कहना था कि अगर समाज में समृद्धि चाहिए, तो सभी वर्गों को समान अवसर दिए जाने चाहिए।

मायावती जी की राजनीति का भविष्य और चुनौतियाँ

हालांकि प्रमुख मायावती की पार्टी, बसपा, 2007 के बाद चुनावी राजनीति में कमजोर पड़ी है, लेकिन उनकी राजनीतिक विचारधारा और संघर्ष आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने समाज में समानता, भाईचारे और न्याय के लिए संघर्ष किया, और उनका योगदान दलित राजनीति को एक नई पहचान दिलाने में रहा।

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दलित राजनीति को एक नई दिशा

मायावती जी का राजनीतिक जीवन न केवल एक महिला दलित नेता के रूप में बल्कि एक सशक्त सामाजिक परिवर्तन के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। उन्होंने अपने नेतृत्व में दलित समुदाय को एक आवाज दी और समाज में न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक बदलाव भी लाया। उनके नेतृत्व में जो स्वर्णिम काल आया, उसने दलित राजनीति को एक नई दिशा दी, जो आज भी भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण है।

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