झारखंड विधानसभा चुनाव 2024: झारखंड में जनता ने फिर जताया हेमंत सोरेन पर विश्वास, हुई बम्पर जीत

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झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में हेमंत सोरेन की अगुवाई में जेएमएम और उसके गठबंधन (कांग्रेस, आरजेडी, भाकपा-माले) ने जबर्दस्त सफलता हासिल की, खासकर दलितों और आदिवासियों के समर्थन से। इन समुदायों ने जेएमएम की नीतियों पर विश्वास जताते हुए उनकी सरकार को फिर से सत्ता में लाया। भाजपा को दलित और आदिवासी समुदायों का समर्थन नहीं मिला, जिससे वह अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर पाई। अब हेमंत सोरेन की सरकार इन वर्गों के अधिकारों और कल्याण के लिए नए कदम उठाने की दिशा में काम करेगी।

झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 के परिणामों ने एक बार फिर से हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री बनने की दिशा में महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं। इस चुनाव में राज्य की जनता ने एक बार फिर से झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और उसके गठबंधन सहयोगी दलों को भारी समर्थन दिया, जिनमें कांग्रेस, आरजेडी, और भाकपा-माले प्रमुख रूप से शामिल थे। हालांकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) और उसके सहयोगी दल आज़सू, जेडीयू, और लोजपा-आर को अपेक्षित सफलता नहीं मिली, लेकिन इस चुनाव में एक बहुत महत्वपूर्ण बात सामने आई— दलितों और आदिवासियों ने अपनी पूरी ताकत के साथ जेएमएम और उसके गठबंधन के पक्ष में मतदान किया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि राज्य में दलित और आदिवासी समुदाय की राजनीति में जेएमएम की पकड़ मजबूत हो गई है।

गठबंधन ने पिछले रिकॉर्ड को तोड़ दिया

झारखंड विधानसभा के इस चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेतृत्व वाले गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन करते हुए पिछले रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। गठबंधन ने कुल 56 सीटों पर जीत दर्ज की, जिसमें जेएमएम ने 34, कांग्रेस ने 16, और आरजेडी ने 4 सीटों पर जीत हासिल की। इसके अतिरिक्त, सीपीआई (एमएल) लिबरेशन ने भी दो सीटों पर जीत दर्ज की।

दूसरी ओर, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को केवल 24 सीटों पर संतोष करना पड़ा। भाजपा ने 21 सीटें, जबकि उसके तीन सहयोगी दल – आजसू पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), और जेडी (यू) ने एक-एक सीट पर जीत हासिल की।

पिछले चुनाव (2019) में जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन ने 47 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि इस बार यह आंकड़ा बढ़कर 56 सीटों तक पहुंच गया है। यह नतीजे राज्य में गठबंधन की बढ़ती पकड़ और एनडीए के कमजोर प्रदर्शन को दर्शाते हैं।

चुनाव परिणाम और दलितों का वोट बैंक

2024 के झारखंड विधानसभा चुनाव में तोर्पा और निरसा जैसी सीटों पर जेएमएम और भाकपा-माले की जीत ने यह स्पष्ट किया कि राज्य के दलित, आदिवासी और कमजोर वर्ग के वोटरों ने मुख्य रूप से हेमंत सोरेन और उनके गठबंधन को अपना समर्थन दिया। इन क्षेत्रों में दलितों का अहम वोट बैंक था, और उन्होंने अपने वोट का इस्तेमाल उन दलों के पक्ष में किया जो उनकी सामाजिक और आर्थिक भलाई के लिए काम करने का वादा करते हैं। जेएमएम और उसके सहयोगी दलों ने राज्य में आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा करने और उनके विकास के लिए कई योजनाएं पेश की हैं, जिनका असर साफ तौर पर दिखा।

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चुनावों में दलित और आदिवासी वोटरों का समर्थन हेमंत सोरेन की सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण टर्निंग प्वाइंट था। इन समुदायों ने जेएमएम पर विश्वास जताते हुए यह संदेश दिया कि वे अपनी आवाज को सुनने और उनके हितों को प्राथमिकता देने वाले नेताओं को समर्थन देंगे। इस समर्थन के कारण जेएमएम और उसके गठबंधन को व्यापक सफलता मिली। वहीं, भाजपा की दलित विरोधी छवि और उसकी योजनाओं के प्रति दलितों में एक गहरी असंतोष की भावना थी, जो इस बार उनके पक्ष में वोट न करने के रूप में सामने आई।

दलितों का बीजेपी से मोहभंग

इस चुनाव में एक और महत्वपूर्ण बात यह रही कि भाजपा ने अपने अभियान के दौरान दलितों और आदिवासियों के लिए बड़े वादे किए थे, लेकिन उन वादों को पूरा करने में पार्टी की नाकामी ने इन समुदायों को खासा नाराज किया। झारखंड में दलितों की एक बड़ी संख्या भाजपा के खिलाफ चली गई, खासकर उन स्थानों पर जहां पार्टी ने अपनी पिछली सरकार के दौरान दलितों और आदिवासियों के लिए अपनी नीतियों में बदलाव की कोशिशें की थीं। भाजपा के नेताओं द्वारा लगातार यह आरोप लगाए जाते रहे कि वे दलितों और आदिवासियों के मामलों में न केवल संवेदनशील नहीं रहे, बल्कि उनकी समस्याओं को नजरअंदाज करने का आरोप भी लगा। इसके कारण भाजपा को इन वर्गों का समर्थन हासिल करने में कठिनाई हुई।

हेमंत सोरेन की सरकार का दलितों के लिए दृष्टिकोण

हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने हमेशा से दलितों और आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करने का दावा किया है, और यह दावा चुनावी नतीजों में साकार होता दिखाई दिया। सोरेन सरकार ने झारखंड आदिवासी नीति, जातिगत आरक्षण, और आदिवासी भूमि अधिकार जैसे मुद्दों पर खास जोर दिया। राज्य सरकार ने झारखंड अनुसूचित जाति आयोग और अनुसूचित जनजाति आयोग की ताकत बढ़ाई और इन आयोगों के जरिए विकास योजनाओं को सही तरीके से लागू करने का प्रयास किया। इसके अलावा, आदिवासी इलाकों में स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए कई योजनाएं बनाई गईं, जिनका सीधा लाभ दलितों और आदिवासियों को मिला।

हेमंत सोरेन ने सत्ता में आते ही अपनी नीतियों के जरिए दलितों और आदिवासियों को एक मजबूत सामाजिक और राजनीतिक मंच दिया। उन्होंने कई ऐसे कदम उठाए, जिनसे इन वर्गों की सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। दलितों के अधिकारों को लेकर सरकार की नीतियों ने ही उनकी तरफ से समर्थन सुनिश्चित किया।

जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी-भाकपा-माले गठबंधन की सफलता

चुनाव में इस बार इंडिया गठबंधन (जेएमएम, कांग्रेस, आरजेडी, और भाकपा-माले) की ओर से समाजवादी और प्रगतिशील नीतियों को बढ़ावा दिया गया। इन नीतियों ने राज्य में दलितों और आदिवासियों के बीच काफी पैठ बनाई। विशेषकर, जेएमएम की आदिवासी और दलितों के प्रति प्रतिबद्धता ने इन समुदायों में अपनी नीतियों के लिए एक गहरा विश्वास पैदा किया। यही कारण था कि इन समुदायों ने बड़ी संख्या में जेएमएम और इसके गठबंधन के पक्ष में वोट किया, जिससे गठबंधन को शानदार सफलता मिली।

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भविष्य में दलित और आदिवासी राजनीति

झारखंड में दलित और आदिवासी राजनीति का बढ़ता प्रभाव आने वाले समय में हेमंत सोरेन सरकार के लिए नए अवसर लेकर आएगा। जहां एक ओर भाजपा की स्थिति कमजोर पड़ी है, वहीं जेएमएम अब एक सशक्त दलित और आदिवासी प्रतिनिधि के रूप में उभरी है। सरकार की अगली प्राथमिकताएं अब इन समुदायों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति को सुधारने पर केंद्रित होंगी। इसके अलावा, आगामी वर्षों में झारखंड में दलितों और आदिवासियों के लिए विशेष योजनाओं और योजनाओं को लागू करने की दिशा में और भी ठोस कदम उठाए जाएंगे।

झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में हेमंत सोरेन की सरकार की वापसी ने यह साबित कर दिया कि दलितों और आदिवासियों का समर्थन उनके लिए अहम है। जेएमएम और उसके गठबंधन ने अपनी नीतियों और योजनाओं के माध्यम से इन वर्गों का विश्वास जीता, जबकि भाजपा की रणनीतियाँ इसके विपरीत नकारात्मक साबित हुईं। हेमंत सोरेन की सरकार अब राज्य के दलितों और आदिवासियों के लिए एक मजबूत राजनीतिक मंच प्रदान करेगी.

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