बिहार के नालंदा में एक मामूली विवाद के बाद दबंगों ने दलित मांझी परिवार की झोपड़ी में आग लगा दी, जिससे उनका घर और उसमें रखे सारे सामान जलकर राख हो गए। पुलिस ने चार आरोपियों पर मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
बिहार के नालंदा जिले के करायपरसुराय थाना क्षेत्र में एक बार फिर जातिगत भेदभाव और हिंसा का मामला सामने आया है। घटना छितर बिगहा गांव की है, जहाँ गुरुवार, 31 अक्टूबर को दो पक्षों के बीच हुए विवाद ने उग्र रूप ले लिया। दिवाली की रात छोटी-सी बात पर झगड़ा इतना बढ़ गया कि दबंगों ने दलित मांझी परिवार की झोपड़ी को आग के हवाले कर दिया। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है, लेकिन पीड़ित परिवार की झोपड़ी, और उसमें रखे सारे सामान जलकर राख हो गए। घटना के बाद पीड़ित परिवार के लोग डर और भय में जी रहे हैं। दलित मांझी परिवार की चीख-पुकार और आग की लपटों के बीच गांव में तनाव का माहौल बन गया।
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दिवाली की रात मामूली विवाद से बढ़ा तनाव
पुलिस के अनुसार, विवाद की शुरुआत दिवाली की रात एक मामूली बात को लेकर हुई थी। अन्नु महतो और गोलू मांझी के बीच माचिस न देने को लेकर कहासुनी हो गई थी। इस छोटी-सी बात ने जल्द ही झगड़े का रूप ले लिया और दोनों पक्षों के बीच मारपीट और गाली-गलौज हुई। इसके बाद बात इतनी बढ़ गई कि दबंगों ने मांझी परिवार की झोपड़ी में आग लगा दी। आगजनी में मंगल मांझी का घर पूरी तरह जलकर राख हो गया। उनकी पत्नी धर्मशीला देवी ने रोते-बिलखते बताया कि घर में रखी उनकी सारी मेहनत की पूंजी, बर्तन, कपड़े और अन्य सामान जल गए। अब उनके पास सिर छुपाने के लिए छत तक नहीं बची है।
पुलिस ने शुरू की जांच, चार लोगों पर मामला दर्ज
घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंच गई और घटना की जांच में जुट गई। पुलिस ने पीड़िता धर्मशीला देवी के बयान के आधार पर करायपरसुराय थाना में चार लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली है। मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने एफएसएल की टीम को भी बुलाया है, जो जांच में तकनीकी साक्ष्य एकत्र करेगी। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि गांव में स्थिति सामान्य है, लेकिन पीड़ित परिवार के डर को देखते हुए पुलिस चौकसी बनाए हुए है। पुलिस ने गांव में किसी भी तरह की अप्रिय घटना से बचने के लिए आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए लगातार छापेमारी भी शुरू कर दी है।
जातिगत भेदभाव और असहायता का प्रतीक
नालंदा की यह घटना दलितों के प्रति बढ़ते जातिगत भेदभाव और अत्याचार का ज्वलंत उदाहरण है। मांझी परिवार, जो समाज के कमजोर वर्ग से आता है, अपनी मेहनत से छोटे-छोटे संसाधन जुटाकर एक छोटी सी झोपड़ी में जीवनयापन कर रहा था। लेकिन एक मामूली विवाद को लेकर दबंगों ने उनकी मेहनत को राख में बदल दिया। यह घटना उन तमाम दलित परिवारों के लिए एक चेतावनी की तरह है जो अभी भी ग्रामीण इलाकों में असुरक्षित जीवन जी रहे हैं। नालंदा में दलित परिवार के साथ हुए इस हादसे ने सवाल खड़े किए हैं कि आखिर कब तक समाज में जातिगत भेदभाव का जहर फैलता रहेगा और कमजोर वर्ग के लोग दबंगों के सामने बेबस महसूस करेंगे।
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पुलिस की चौकसी, लेकिन पीड़ित परिवार के लिए राहत कब?
इस पूरे मामले में पुलिस की तत्परता को देखते हुए यह उम्मीद की जा रही है कि आरोपियों की गिरफ्तारी जल्द होगी और पीड़ित परिवार को न्याय मिलेगा। लेकिन यह सवाल अभी भी बरकरार है कि क्या इस घटना के बाद पीड़ित परिवार अपने जीवन को फिर से संवार पाएगा? मांझी परिवार ने जो खोया है, उसकी भरपाई आसान नहीं है। पुलिस की चौकसी और जांच के बीच पीड़ित परिवार को राहत कब मिलेगी, यह देखना अभी बाकी है।
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