Haryana Election: 35 सीटों पर गेम चेंजर बन सकता है दलित वोटर; BSP और INLD गठबंधन ने बढ़ाई बीजेपी-कांग्रेस की टेंशन

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हरियाणा चुनाव में मायावती ने दलित वोटर्स को केंद्र में लाते हुए बीजेपी और कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है। 35 सीटों पर दलित वोटर खेल बदल सकते हैं, जिससे सियासी संतुलन प्रभावित हो सकता है।

Haryana Election: हरियाणा में आगामी विधानसभा चुनावों में दलित वोटरों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो सकती है, खासकर तब जब बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) गठबंधन ने दलित वोट बैंक को केंद्र में रखकर अपनी चुनावी रणनीति तैयार की है। राज्य में लगभग 21 प्रतिशत दलित आबादी है, जो 17 आरक्षित विधानसभा सीटों और 35 सामान्य सीटों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसी दलित वोट बैंक को साधते हुए बीजेपी और कांग्रेस के सामने एक बड़ी चुनौती पेश कर दी है।

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मायावती की 4 रैलियां, आकाश आनंद का हरियाणा दौरा

हरियाणा में दलित वोटरों की अहमियत को समझते हुए मायावती ने अपने दलित वोट बैंक को एकजुट करने के लिए चार बड़ी चुनावी रैलियों की योजना बनाई है। मायावती की रैलियां 25 सितंबर से शुरू होंगी, जहां जींद में उनकी पहली रैली होगी। इसके बाद फरीदाबाद, करनाल और 1 अक्टूबर को यमुनानगर में उनकी अन्य रैलियां होंगी। इन रैलियों के जरिए बसपा ने हरियाणा में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने की ठोस कोशिश की है, खासकर उन सीटों पर जहां दलित वोट निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

मायावती के साथ उनके उत्तराधिकारी और भतीजे आकाश आनंद भी हरियाणा चुनावी अभियान में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। आकाश आनंद ने हरियाणा में दलितों के बीच अपने कनेक्ट को बढ़ाने के लिए गांव-गांव जाकर चौपाल करने का निर्णय लिया है, ताकि दलित समुदाय से सीधे संवाद स्थापित किया जा सके। यह रणनीति बसपा को न केवल दलितों का समर्थन दिला सकती है, बल्कि उन्हें हरियाणा की राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरने का अवसर भी दे सकती है।

कांग्रेस और बीजेपी के लिए बढ़ी टेंशन

दलित वोटरों का महत्व केवल आरक्षित सीटों तक सीमित नहीं है, बल्कि राज्य की 35 सामान्य सीटों पर भी इनका बड़ा प्रभाव है। 2019 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा ने 21 सीटें जीती थीं, कांग्रेस ने 15 सीटें, और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने 8 सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस-आप गठबंधन ने 68 प्रतिशत दलित वोट हासिल किए थे, जिससे कांग्रेस को बड़ी बढ़त मिली थी। इस बार कांग्रेस और आप गठबंधन की बढ़त को बसपा-इनेलो गठबंधन और भीम आर्मी चुनौती दे सकते हैं, जो दलित वोटरों पर सीधा प्रभाव डालने की रणनीति बना रहे हैं। मायावती और चंद्रशेखर आजाद दोनों ही दलित मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे चुनावों में त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति पैदा हो सकती है।

ये है BJP की टेंशन की वजह

बीजेपी के लिए यह स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण हो सकती है क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने दलित वोटरों में भारी गिरावट देखी थी। लगभग 68 प्रतिशत दलित मतदाताओं ने कांग्रेस-आप गठबंधन का समर्थन किया था, जबकि भाजपा के समर्थन में केवल 24 प्रतिशत दलित वोट ही आए थे, जो पिछले चुनावों की तुलना में 34 प्रतिशत की गिरावट थी। इस वजह से भाजपा ने 10 संसदीय सीटों में से 5 सीटें गंवा दी थीं।

खासकर अंबाला और सिरसा की आरक्षित सीटों पर भाजपा की हार ने पार्टी के अंदर दलित वोटरों को लेकर चिंता बढ़ा दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने हरियाणा दौरे के दौरान दलित आरक्षण का जिक्र करते हुए यह भी दावा किया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है, तो वह आरक्षण को खत्म कर देगी। यह भाजपा की तरफ से दलित वोटरों को फिर से आकर्षित करने की कोशिश मानी जा रही है, लेकिन बसपा और भीम आर्मी के मजबूत प्रयास इस योजना में रुकावट पैदा कर सकते हैं।

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बसपा का वोट 2 चुनावों में कैसे घटा

पिछले दो चुनावों में, हरियाणा में बसपा का वोट शेयर घटा है। 2014 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 4.4 प्रतिशत वोट शेयर लिया था और एक सीट पर जीत भी हासिल की थी। लेकिन 2019 में बसपा का वोट शेयर घटकर 4.2 प्रतिशत हो गया, हालांकि यह अभी भी राज्य के क्षेत्रीय दलों जैसे जेजेपी और इनेलो से अधिक है। ऐसे में बसपा का लक्ष्य इस बार अपने वोट शेयर को बढ़ाने और दलित मतदाताओं को एकजुट करने पर है।

सभी पार्टियों की दलित वोटरों की नजर

हरियाणा की राजनीति में दलित वोटरों का महत्व स्पष्ट है, और मायावती के नेतृत्व में बसपा इस बार राज्य में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है। चाहे वह उनकी चार बड़ी रैलियां हों या आकाश आनंद का सक्रिय चुनाव अभियान, बसपा हरियाणा में दलित मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए पूरी तरह तैयार है। अगर बसपा इस बार अपने दलित वोट बैंक को सही तरीके से साधने में सफल रहती है, तो यह न केवल कांग्रेस और बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी करेगा, बल्कि हरियाणा में राजनीतिक समीकरणों को भी पूरी तरह से बदल सकता है।

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